
- April 26, 2025
- आब-ओ-हवा
- 0
तह-दर-तह (विश्व साहित्य पर दृष्टि)
शिकारी व गौरैया
निशांत कौशिक
तुर्की में गेय लोक-कविता (Türkü) और परिकथा (Masallar)की एक समृद्ध परंपरा है। प्रस्तुत ‘गौरैया और शिकारी’ कहानी भी एक Masal है। इसमें सिर्फ़ एक जगह इंसानज़ादे (insanoğlu) सम्बोधन है, जो फ़ारसी, तुर्की और अरबी कथा परंपरा में बहुत सामान्य है और आगे चलकर मैंने उसकी जगह सिर्फ़ ‘इंसान’ लिखा है। मूल शीर्षक है “Minik Serçe ile Avcı”। यह (MasalOku)से ली गयी है और मूल तुर्की से हिंदी में अनूदित है।
— * — * — * —
बहुत समय पहले की बात है। एक शिकारी ने पक्षी पकड़ने के लिए एक जाल बिछाया और उसमें एक छोटी-सी गौरैया फँस गयी। शिकारी ने जब गौरैया को हाथ में पकड़ा, तो वह बहुत चौंका क्योंकि वह बोलने वाली गौरैया थी। गौरैया ने कहा:
“ओ इंसानज़ादे, तूने बहुत-से भेड़, भैंस, ऊँट खाये हैं; उनके मांस से भी तेरा पेट नहीं भरा। क्या तू मुझे खाकर संतुष्ट हो सकेगा? मैं तो एक कौर में भी न समाऊँगी। लेकिन मुझे छोड़ दे, तो मैं तुझे तीन सलाह दूँगी। ये सलाहें तेरे लिए मुझसे भी ज़्यादा फ़ायदेमंद हो सकती हैं। पहली सलाह तुझे यहीं दूँगी, दूसरी उस छत पर और तीसरी उस पेड़ की शाख़ पर। अगर तू मेरी सलाह मानता है तो तेरी ज़िन्दगी ख़ुशहाल होगी।”
शिकारी ने सोचा, “यह तो सच है कि इस छोटी-सी गौरैया के मांस से मेरा कोई गुज़र न होगा, लेकिन शायद सलाहें मुझे मदद कर सकें।” उसने कहा, “ठीक है, बताओ क्या सलाह है?”
गौरैया ने पहली सलाह दी: “पहली सलाह है: कभी भी ऐसी किसी चीज़ पर विश्वास मत करो, जो असंभव हो।”
इसके बाद गौरैया शिकारी के हाथ से उड़कर पास की छत पर बैठी और बोली: “दूसरी सलाह यह है कि जो मौक़ा हाथ से निकल गया, उनके लिए कभी पछताओ मत।”
गौरैया कुछ रुकी और फिर बोली: “बेवकूफ़ इंसान! अगर तू मुझे मार देता तो मेरी गर्दन में 250 ग्राम का एक मोती तुझे मिलता। वह मोती तुझे और तेरे बच्चों को अमीर बना देता। लेकिन मोती तेरी क़िस्मत में नहीं था। तूने वह खोया जो दुनिया में कहीं और न मिलता।”
शिकारी यह सुनकर दुःख में अपने बाल नोचने लगा।
“हाय! मैंने ख़ुद ही अपनी क़िस्मत खो दी। किस क़दर मूर्ख हूँ मैं…”
गौरैया ने शिकारी की हालत देखकर कहा:
“अरे बेवकूफ़ आदमी! मैंने क्या सलाह दी थी? अपनी हालत देख। मोती तेरे हाथ से निकल गया, तो क्यों दुखी हो रहा है? क्या मैंने नहीं कहा था, जो मौक़ा खो गया, उस पर कभी दुखी मत होना? और मैंने पहली सलाह में नहीं कहा था, जो असंभव हो, उस पर विश्वास मत करो? सोच जब मेरा ख़ुद का वज़न 250 ग्राम नहीं है तो इतना भारी मोती मेरे भीतर कैसे हो सकता है?
शिकारी को गौरैया की बातें समझ आयीं और उसने ग़लती मान ली।
“अच्छा गौरैया, ठीक है! अब तुम मुझे अपनी आख़िरी सलाह दो, फिर तुम जा सकती हो।”
गौरैया एक डाल पर बैठी और मज़ाक़िया लहजे में बोली:
“हैरानी की बात है! तूने मेरी पहली दो सलाहें क्या ख़ाक मानीं, जो तीसरी मानेगा?” इतना कहकर वह आसमान की नीली ऊँचाइयों में गुम हो गयी।

निशांत कौशिक
1991 में जन्मे युवा कवि एवं समालोचक निशांत ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली से स्नातक, तुर्की भाषा एवं साहित्य में मुंबई विश्वविद्यालय, से डिप्लोमा करने के साथ ही फ़ारसी, तुर्की, उर्दू, अज़रबैजानी और अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद किये जो पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। विश्व साहित्य पर टिप्पणियां, डायरी, अनुवाद, यात्रा एवं कविता लेखन में विशेष रुचि।
Share this:
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Reddit (Opens in new window) Reddit
- Click to share on Pinterest (Opens in new window) Pinterest
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Bluesky (Opens in new window) Bluesky