संध्या कुलकर्णी और प्रतिभा गोटीवाले के साथ शाहनाज़ इमरानी (बीच में)

याद बाक़ी

शाहनाज़ इमरानी, एक यादगार कहानी

प्रतिभा गोटीवाले

 शाहनाज़ दी से मेरी मुलाक़ात सन्ध्या दीदी के मार्फ़त हुई… इन दोनों के पास भोपाल की तहज़ीब के इतने मज़ेदार क़िस्से थे कि मैं अक्सर दोनों से कहती, आप लोगों को तो एक-एक उपन्यास लिखना चाहिए। फिर उपन्यास के नाम भी तय होते। शहनाज़ दी के पास शीशमहल में गुज़रे उनके बचपन और युवावस्था के अनगिन क़िस्से थे। अपने उपन्यास का नाम वे रखती ‘क़िस्से तो और भी हैं’, लेकिन फिर वही काहिली। अगली बार का वादा होता, फिर हवा में उड़ जाता।

शाहनाज़ दी अच्छे खाने की बहुत शौक़ीन थीं। खाना बनाती भी बहुत लज़ीज़ थीं। उनके हाथ के कबाब और शीर खोरमा का स्वाद भुलाया नहीं जा सकेगा। रमज़ान के महीने में मेरे और बच्चों के लिए शीरमाल और बाकरखानियाँ लाना कभी न भूलती थीं।

लेखनी उनकी कमाल थी ही, एक बार मैंने उनसे कहा, आपकी कविताएँ कितनी अच्छी हैं, मैं कब ऐसा लिख पाऊँगी? तो अपने भोपाली अंदाज़ में उन्होंने कहा, ख़ाँ यार तुम्हारी कविताओं में जो मोहब्बत है, जो नरमाई है उसे बचाकर रखना। वर्ना यहाँ तो ये हाल हो गया है कि कमबख़्त मोहब्बत लिखने भी जाओ तो इन्क़लाब लिखा जाता है और इसी बात पर फिर चाय का एक दौर चल निकलता। जिस दिन हम लोग मिलते थे, तीनों अपनी-अपनी उस दिन की सारी इच्छाएँ पूरी करके ही घर लौटते थे। चाहे वह कोई किताब ख़रीदने की हो या कुछ और। कोई भी अपनी इच्छा को वापस अपने साथ लेकर नहीं जाता था…. आख़िर को हम सब इंसान हैं, हम सबमें कुछ न कुछ कमियां भी हैं। मसलन, वह ग़ुस्सैल थीं लेकिन मुझे उनका अथाह स्नेह मिला। हम तीनों ने अपने साथ का बहुत आनंद लिया…

कोरोना के समय लगे लॉकडाउन के बाद से सब सिमट गया। फ़ोन पर लगातार बातें होती रहीं लेकिन मिलना तो जैसे बीते समय का कोई सच बनकर रह गया था। दो बार उन्हें कोरोना हुआ। उसके बाद उनसे कुछ मुलाक़ातें। फिर एक दिन फ़ोन आया, ‘ख़ाँ हमें तो कैंसर हो गया है’। सुनकर सबको धक्का लगा पर हम सब हिम्मत बंधाते रहे। वह लड़ती रहीं। लेकिन फिर कीमो के सेशन चलने लगे उसके बाद उन्हें बेइंतेहा थकान हो जाती थी। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाने की वजह से भी मिलना कम होने लगा। एक दिन फ़ोन किया तो बताने लगी, ख़ाँ यार अबीर ने हमारे बाल कटवा दिये। अपना ही चेहरा बड़ा अजनबी-सा लग रहा है।

मैंने कहा अब आप और स्मार्ट लग रहे होंगे अब तो आना बनता ही है। उस दिन हम खाने का कुछ सामान लेकर घर पहुँच गये थे। तीनों ने साथ खाया और बहुत बातें कीं, कटे बालों में वे थोड़ी हैरान-परेशान लग रही थी लेकिन जल्द ही सहज हो गयीं। उनके जाने के दस-बारह दिन पहले जब उनसे मिली, तो उनके चेहरे पर थकान थी। लड़ते-लड़ते अचानक हौसला पस्त पड़ जाने की थकान। उस दिन पहली बार वह फूट-फूट कर रोयीं, बात करते-करते अचानक कहीं और टकटकी लगाकर देखने लगतीं। उस दिन मैं उन्हें देखकर भीतर तक सिहर गयी थी।

फिर एक दिन वह चली गयीं… हम कितने भी नज़दीक रहें लेकिन यह नहीं बता पाते कि कोई अपनी मौत से पहले कितनी बार मरा और उसकी मौत के बाद हम उसकी याद में कितनी बार…

बड़ा क़ब्रिस्तान के दरख़्तों की छाँव में दीवार के किनारे उन्हें सुलाकर लौटे तो एक सन्नाटा-सा छाया था, जो लगातार तारी रहा और उस दिन टूटा जब श्रद्धांजलि सभा में उन्हें सामने दीवार पर चस्पां पाया। दोस्त जो हमेशा बग़ल की कुर्सी पर बैठा करती थी, अब हमेशा के लिए दीवार पर चस्पां हो गयी है। यह ख़याल ही बड़ा हौलनाक था।

कुछ भी सुनना मुश्किल हो रहा था, कुछ भी कहना नामुमकिन। बहुत पहले जब तीनों साथ थे तो एक कविता लिखी थी जिसकी पहली पँक्ति थी: ‘मेरे शहर में अक्सर कविताओं के बहाने से मिलती हैं तीन कहानियाँ’, आज जब एक कहानी अपनी जिल्द में लौट चुकी तो बाक़ी कहानियों में उसका अस्तित्व उसका ज़िक्र बनकर हमेशा मौजूद रहेगा।

संध्या कुलकर्णी और प्रतिभा गोटीवाले के साथ शाहनाज़ इमरानी (बीच में)
संध्या कुलकर्णी और प्रतिभा गोटीवाले के साथ शाहनाज़ इमरानी (बीच में)
प्रतिभा गोटीवाले

प्रतिभा गोटीवाले

भोपाल के साहित्यिक वातावरण में प्रमुख स्त्री कवियों में शुमार। साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से प्रसारित। सद्य प्रकाशित संग्रह 'समय के यातना शिविर' चर्चा में है।

1 comment on “शाहनाज़ इमरानी, एक यादगार कहानी

  1. आज पन्ने पलटते हुए शहनाज़ की कहानी पढ़ने को मिली,हम भी कभी कहानी हो जाएंगे…..

    कभी मुलाकात नहीं हुई,एक बार होते होते रह गई,उन्होंने किसी कारण फोन नहीं उठाया और मैं मायूस होकर कोटा लौट आई ।फिर फोन पर शिकवा किया,उन्होंने अफसोस जताया ।
    फोन पर हो बात होती थी ,बीमारी का भी उन्होंने बताया और जाने के एक सप्ताह पहले खूब बात की हालांकि उनकी थकान बातों से लग रही थी ….

    बहुत जल्दी चली गई आप ,हमेशा याद रहेगी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *