
- May 30, 2025
- आब-ओ-हवा
- 2
दत्ताराम: आँसू भरी जीवन की राहों का संगीतकार
वर्ष 1958 में आई फ़िल्म परवरिश में राज कपूर पर फ़िल्माया गया गीत ‘आंसू भरी हैं ये जीवन की राहें’, तो सबको याद होगा। गीतकार हसरत जयपुरी के दिल को छू लेने वाले बोल और मुकेश का दर्द भरा अंदाज़, जैसे सुनने वाले का कलेजा चीरकर रख देते हैं। राग यमन में निबद्ध इस गाने को महज़ सारंगी और तबले पर रिकॉर्ड किया गया है। मुकेश के दस सर्वश्रेष्ठ गीतों का चयन किया जाये तो इसे पहले पाँच में रखना ही पड़ेगा, ऐसी कशिश है इस गाने में। मगर संगीत-प्रेमियों में भी ज़्यादातर लोग यह नहीं जानते होंगे कि इस गीत के संगीतकार शंकर जयकिशन नहीं, बल्कि दत्ताराम थे। इनका पूरा नाम दत्ताराम वाडकर था। 1929 में गोवा में एक ग़रीब परिवार में जन्मे दत्ताराम रोज़ी-रोटी की ख़ातिर मुंबई आये और क़िस्मत उन्हें शंकर जयकिशन की संगत में ले आयी। तबला, ढोलक और रिदम सैक्शन के अपने ज़बरदस्त हुनर के बल पर दत्ताराम न केवल शंकर जयकिशन के आर्केस्ट्रा में महत्वपूर्ण संगतकार बन गये, वरन् उन्होंने अनेक बड़े संगीतकारों के लिए ताल वाद्य संगत भी की।
फ़िल्म परवरिश में यूं तो अन्य गाने भी ख़ूब चले लेकिन कालजयी का तमग़ा ‘आँसू भरी हैं ये जीवन की राहें’ को ही मिला। दत्ताराम चाहते थे इस गाने को बहुत सारे वाद्यों की सिम्फनी बनाकर रिकॉर्ड किया जाये। पर जिस दिन रिकॉर्ड किया जाना था, उस दिन अचानक साज़िंदों की हड़ताल हो गयी। मजबूरी में एक सारंगी और तबले का मिलाप करके ही गाना रिकॉर्ड किया गया।
इस गाने के चित्रांकन में राज कपूर स्वयं सारंगी बजाते हुए गीत गाते परदे पर नज़र आते हैं। नायिका माला सिन्हा को अपनी मुफ़लिसी का हवाला देकर अपने से दूर जाने की सलाह नायक दे रहा है क्योंकि उसे पता है कि इसी में नायिका की भलाई है। लेकिन मन में बार-बार उन वादों का ख़याल भी आ रहा है जो किये गये थे। हसरत जयपुरी इस भाव को कितनी सादगी से अंतरे में कहते हैं-
वादे भुला दें क़सम तोड़ दें वो
हालत पे अपनी हमें छोड़ दें वो
ऐसे जहां से क्यूं हम दिल लगाएँ
कोई उनसे कह दे, हमें भूल जाएँ
यहां ‘कोई उनसे कह दे’ पर मुकेश की बेबसी सुनने वाले को भीतर तक झकझोर देती है। परदे पर राजकपूर इस पूरे गाने में बेहद संजीदगी से अपनी गहरी आँखों से भाव उभारते हैं। शंकर जयकिशन के म्यूज़िक अरेंजर रहे दत्ताराम को शंकर जयकिशन के कहने पर ही पहली बार राजकपूर ने फ़िल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ में बतौर संगीतकार मौक़ा दिया था। इस फ़िल्म का मोहम्मद रफ़ी का गाया ‘चुन चुन करती आई चिड़िया’ तो आज भी बच्चों के पसंदीदा गीतों में शुमार है।
आपको बता दें कि श्री 420 में मन्नाडे के गाये प्रसिद्ध गीत ‘दिल का हाल सुने दिलवाला’ में बेहतरीन डफ बजाने का कमाल दत्ताराम के हाथों ने ही किया था। ऐसे ही सलिल चौधरी के संगीत निर्देशन में फ़िल्म मधुमती के गानों में दत्ताराम की ढोलक और तबले की थाप का कमाल है। ‘चुन चुन करती आई चिड़िया’ में जो ठेका बजा है (धित्ता धित धा) वो तो इतना लोकप्रिय हो गया कि बाद के अनेक संगीतकार अपने तबलचियों को बस इतना ही निर्देश देते कि भई आपको इस गाने में ‘दत्ताराम ठेका’ बजाने का और तबला वादक समझ जाते थे कि उनको घोड़ागाड़ी ठेका बजाना है। कितने सारे गाने इसी मूल कहरवा के पैटर्न से बने हैं। इनमें- ‘मेरा जूता है जापानी’, ‘मांग के साथ तुम्हारा’, ‘लकड़ी की काठी’, ‘सोचेंगे तुम्हें प्यार करें कि नहीं’ जैसे दर्जनों गाने हैं। मगर इस ठेके के जन्मदाता को क़िस्मत से अपेक्षित साथ नहीं मिल सका। लिहाज़ा अनेक अच्छे और मधुर गीत देने के बावजूद दत्ताराम आँसू भरी जीवन की राहों पर चलने को मजबूर हुए।
भारतीय राष्ट्रीय फ़िल्म आर्काइव (NFDC-NFAI) ने यह तस्वीर सोशल मीडिया पर 4 मई 2019 को जारी की थी, जिसमें गायक मन्ना डे और रफ़ी के साथ बीच में नज़र आ रहे हैं संगीतकार दत्ताराम।
बाद के दौर में अनेक बी श्रेणी की फ़िल्मों में संगीत देकर ऊबे दत्ताराम वाडकर वापस गोवा चले गये, जहाँ बीमारी और ग़रीबी की अवस्था में वर्ष 2007 में उनका निधन हुआ।एक विशेष ख़ुलासा करना चाहूंगा कि दत्ताराम के पुत्र सुरेश वाडकर अवश्य हैं पर वे गायक सुरेश वाडकर नहीं हैं, जैसा कि अक्सर मान लिया जाता है। बल्कि वे फ़ैशन डिज़ाइनर हैं। दत्ताराम का स्वरबद्ध और राजेंद्रकुमार-मीनाकुमारी पर फ़िल्माया एक और शानदार दोगाना है- न जाने कहाँ तुम थे, न जाने कहाँ हम थे (ज़िंदगी और ख़्वाब)। अफ़सोस कि फ़िल्म औसत चली तो संगीतकार से भी फ़िल्मनगरी ने धीरे-धीरे किनारा कर लिया।

विवेक सावरीकर मृदुल
सांस्कृतिक और कला पत्रकारिता से अपने कैरियर का आगाज़ करने वाले विवेक मृदुल यूं तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्ववियालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं,पर दिल से एक ऐसे सृजनधर्मी हैं, जिनका मन अभिनय, लेखन, कविता, गीत, संगीत और एंकरिंग में बसता है। दो कविता संग्रह सृजनपथ और समकालीन सप्तक में इनकी कविता के ताप को महसूसा जा सकता है।मराठी में लयवलये काव्य संग्रह में कुछ अन्य कवियों के साथ इन्हें भी स्थान मिला है। दर्जनों नाटकों में अभिनय और निर्देशन के लिए सराहना मिली तो कुछ के लिए पुरस्कृत भी हुए। प्रमुख नाटक पुरूष, तिकड़म तिकड़म धा, सूखे दरख्त, सविता दामोदर परांजपे, डॉ आप भी! आदि। अनेक फिल्मों, वेबसीरीज, दूरदर्शन के नाटकों में काम। लापता लेडीज़ में स्टेशन मास्टर के अपने किरदार के लिए काफी सराहे गये।
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अत्यंत रोचक आलेख
बहुत बहुत धन्यवाद