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(शब्द और रंग, दोनों दुनियाओं में बेहतरीन दख़ल रखने वाली प्रवेश सोनी हाल ही, क़रीब महीने भर की यूरोप यात्रा से लौटी हैं। कवि और कलाकार की नज़र से, आब-ओ-हवा के लिए अपनी इस यात्रा के कुछ विशिष्ट अनुभव क्रमबद्ध ढंग से वह दर्ज कर रही हैं। उनके शब्दों में ऐसी रवानी है कि शब्दों से ही चित्र दिखने लगते हैं। साप्ताहिक पेशकश के तौर पर हर बुधवार यहां पढ़िए प्रवेश की यूरोप डायरी - संपादक)

सैर कर ग़ाफ़िल... : एक कलाकार की यूरोप डायरी-1

           जर्मनी
           फ़्रैंकफ़र्ट
           17/4/2025

सुबह के 5.30 बजे मोबाइल के अलार्म ने जगाया, वैसे नींद तो रात के दो बजे ही खुल गयी थी। भारत में सुबह जल्दी उठने की आदत है। फ़्रैंकफ़र्ट की लोकेशन के अनुसार मोबाइल में 5:30 अब बजे हैं, जबकि भारतीय समय यहां से 3:30 घंटे आगे है।
पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने के कारण विभिन्न देशों में समय का भिन्न होना शरीर आसानी से नहीं समझ पाता है।

बिटिया का रेंटेड घर छोटा मगर व्यवस्थित और सुंदर है। कमरे के बाहर बाल्कनी है। मैं बाहर आ गयी, सूरज की रोशनी सब ओर फैल चुकी है। यहां सूरज 9 बजे अस्त होता है और 5 बजे से पहले उदय हो जाता है।

बाहर का दृश्य मनोरम है। बड़े-बड़े पेड़ हैं, फूलों के रंग बिखरे हुए हैं। ज़्यादातर घर जो पुराने हैं, वो कोणीय हैं, नये घरों में भी छत का कोई प्रावधान नहीं दिखा। यानी कि छतें हैं लेकिन बिना दीवार की हैं। शायद यहां की भौगोलिक स्थिति के कारण ऐसा है। क्योंकि जब बर्फ़ गिरती है तो उसे पिघलकर बहने का रास्ता चाहिए। छतों पर दीवार हुई तो वो इकट्ठी होकर मकान में नमी भर देगी।

एक तरफ़ बड़ी बड़ी इमारतें भी दिखायी दे रही हैं, इन्हें स्काईलाइन कहते हैं। गिरजाघर का गुंबद भी दिख रहा है सामने। इसके रंग में मुझे धुएं की धूसर लकीर दिखायी दी। जो काले इतिहास की गवाही दे रही है।

दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर शहर घूमने निकल पड़े।

यहां आपको सिटी बस, ट्रेन, ट्राम में बैठने के लिए टिकिट पहले से ही ऑनलाइन ले लेने की सुविधा है। प्रतिदिन या ज़्यादा यात्रा करने वाले मंथली पास बनवा लेते हैं। कंडक्टर की कोई भूमिका नहीं होती है, यह ज़रूर होता है कि यदि आपने टिकिट नहीं लिया और चेकिंग दस्ता बीच में आ गया तो पेनल्टी के रूप में बड़ी रक़म देनी पड़ जाती है। क़ानून और नियम की पालना अति सख़्त है यहां।

सड़कें बिल्कुल साफ़ सुथरी हैं। कचरे का ढेर तो दूर की बात, मुझे कहीं भी ज़रा-सा फैला हुआ कचरा भी नहीं दिख रहा। कोई भीड़ नहीं, गाड़ियां अपनी निर्धारित क़तार में बिना शोर के चल रही हैं। यहां हॉर्न बजाना यातायात नियमों के अनुसार वर्जित है। दिन भर गाड़ियों की चिल्ल-पो और हॉर्न की भिन्न-भिन्न गड़गड़ाहट सुनने के आदी कान हिमालय-सी शांति महसूस कर रहे हैं।

हमें ट्राम में बैठना है, उसके आने का समय स्वचालित इलेक्ट्रिक बोर्ड पर दिखायी दे रहा है। 10 मिनिट हैं आने में, मुझे सड़क और आस-पास का दृश्य सुंदर लग रहा है तो स्वतः ही मोबाइल का कैमरा ऑन हो गया। कुछ अपनी और कुछ सड़क पर एक साथ चलती ट्रेन, बस, कार, साइ​किल और पैदल चलने वालों की तस्वीरें लीं।

कुछ समय लगा गंतव्य तक पहुंचने में, यह पुराने शहर का केंद्र है। यहां एक ओर संसद भवन है, जिस पर जर्मनी के कई झंडे लगे हैं, बाहर से इमारत की सुंदरता देखते ही बनती है। उसके सामने बड़ा-सा मैदान जैसा चौक है, कुछ रेस्टोरेंट, दुकानें हैं, जिनका विस्तार बाहर की और फैला हुआ है, टेबलों कुर्सियों पर लोग बैठे खा-पी रहे हैं और आनंदित होकर ज़ोर-शोर से अपनी ख़ुशी ज़ाहिर कर रहे हैं। मै सालों पहले के दृश्य को सोच रही हूं, तानाशाही के साये में यह हंसी किन तहख़ानों में दबी पड़ी होगी?

पास ही एक म्यूज़ियम है, इतिहास के पन्नों को हर कोई नहीं पढ़ना चाहता, आज में जीना ही सच लगता है। इसलिए मेरा मन होने पर भी बिटिया और पति जी ने वहां से आगे चलना तय किया। हां, बेटी ने बाहर से मेरी एक फ़ोटो ज़रूर ले ली।

कुछ आगे जाने पर नदी पर लोहे का पुल दिखायी दे रहा है, जो बहुत सुंदर है। पुल पर जाने के लिए सीढ़ियां और लिफ्ट है। अधिकतर लोग सीढ़ियों से जा रहे हैं, हमने लिफ्ट को चुना। लिफ्ट आयी तो उसमें से एक दो साइकिल सवार, छोटे बच्चों की गाड़ी और एक व्हीलचेयर पर बैठी वृद्ध महिला निकली। मुझे समझ आया कि लिफ्ट किसके लिए है। मन में गिल्ट आया, लेकिन घुटनों के दर्द ने लिफ्ट में क़दम रखवा ही दिये।

पुल से शहर किसी आर्टिस्ट का कैनवास लग रहा है। नदी साफ़ और शांत बह रही है। कहीं किसी भी प्रकार की गंदगी नहीं है, किनारों पर। कुछ बत्तख़ें भी नज़र आ रही हैं। सवारी बोट आ जा रही है।

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इस नदी को पूजने का मन हुआ। हम भारतीय नदियों को पूजते हैं क्योंकि उन्हें पवित्र कहा जाता है, लेकिन असली में उनकी दयनीय हालत देखकर लगता है कितने पाप धोती हैं ये हमारे। इनकी पवित्रता किताबों में बची है। किसी का लिखा हुआ याद आया…

“तुम नदियों को साफ़ मत करो, बस उन्हें गंदा करना बंद कर दो, वो स्वतः ही स्वच्छ हो जाएंगी।”

यह बात यहां लागू है, तभी तो इतनी सफ़ाई!

ठंडी हवा, पानी का साथ पाकर और ठंडी हो गयी है। जैकेट में भी कंपकंपी लग रही है।पुल पर असंख्य छोटे-बड़े ताले लगे हुए हैं, ये शायद मनौती के ताले हैं। आस्था के चिह्न भी लगे मुझे। कहा जाता है अपनी इच्छा का ताला लगाओ और चाबी नदी में फेंक दो, इच्छा पूरी होती है।

नदी के दोनों किनारों पर बड़े-बड़े पेड़ लगे हुए हैं, जिनमें नये पत्तों का आगमन हो रहा है। यह बसंत की शुरूआत है। सारे पेड़ मोटे तने और शाखाओं के सिरे पर बड़ी-सी गांठ वाले हैं। कम पत्तों में भी ये पेड़ बहुत सुंदर लग रहे हैं। मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं स्वप्नलोक में हूं।

थकान अहसास दिला रही है कि अब आराम किया जाये। तो कुछ फ़ोटो लिये और घर लौट आये। घड़ी रात्रि के आठ बजा रही है लेकिन सभी ओर उजाला अभी फैला हुआ है। भारतीय समयानुसार हम नींद की देहरी पर पहुंच चुके हैं।

घर आकर हल्का भोजन किया और सो गये। सुबह जल्दी ही हमें एम्स्टर्डम के लिए निकलना है।

क्रमशः…

प्रवेश सोनी, pravesh soni

प्रवेश सोनी

कविता और चित्रकला, यानी दो भाषाओं, दो लिपियों को साधने वाली प्रवेश के कलाकार की ख़ूबी यह है कि वह एक ही दौर में शिक्षक भी हैं और विद्यार्थी भी। 'बहुत बोलती हैं औरतें' उनका प्रकाशित कविता संग्रह है और समवेत व एकल अनेक चित्र प्रदर्शनियां उनके नाम दर्ज हैं। शताधिक साहित्य पुस्तकों के कवर चित्रों, अनेक कविता पोस्टरों और रेखांकनों के लिए चर्चित हैं। आब-ओ-हवा के प्रारंभिक स्तंभकारों में शुमार रही हैं।

20 comments on “सफ़रनामा: एक कलाकार की यूरोप डायरी-1

  1. Yeh diary padh kar khudke waha hone ki feel aati hai..bohot accha likha hai..proud of you!! ❤️

    1. So beautifully written
      ऐसा लगा में स्वय वहाँ hun
      Hats off to the writer Soni
      proud to be your acquaintance

  2. एक नाटक के दृश्य की भांति संवाद करता हुआ समय,

    ऐसा लगा हम भी यात्रा में साथ थे।

    मेरे विचार से इस विधा को आपने एक नया आयाम दिया
    रेखा चित्रिय डायरी।

  3. आत्मसंवाद करता डायरी का पहला पन्ना… इतना चित्ताकर्षक!
    बहुत-बहुत बधाई, दीदी

    1. धन्यवाद बबीता ,अच्छा लगा तुमने प्रतिक्रिया दी

  4. आत्मसंवाद करता डायरी का पहला पन्ना… इतना चित्ताकर्षक!
    बहुत-बहुत बधाई, दीदी।

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