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(शब्द और रंग, दोनों दुनियाओं में बेहतरीन दख़ल रखने वाली प्रवेश सोनी हाल ही, क़रीब महीने भर की यूरोप यात्रा से लौटी हैं। कवि और कलाकार की नज़र से, आब-ओ-हवा के लिए अपनी इस यात्रा के कुछ विशिष्ट अनुभव क्रमबद्ध ढंग से वह दर्ज कर रही हैं। उनके शब्दों में ऐसी रवानी है कि शब्दों से ही चित्र दिखने लगते हैं। साप्ताहिक पेशकश के तौर पर हर बुधवार यहां पढ़िए प्रवेश की यूरोप डायरी - संपादक)

सैर कर ग़ाफ़िल...: एक कलाकार की यूरोप डायरी-2

          ऐम्स्टर्डम
          17/4/2025
          …रेल यात्रा

         नीदरलैंड की राजधानी ऐम्स्टर्डम बहुत सुंदर शहर है। इस नगर की स्थापना 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में एम्स्टल नदी के मुहाने पर एक मछली पकड़ने के केन्द्र के रूप में हुई थी।

फ्रैंकफ़र्ट से ट्रेन द्वारा ऐम्स्टर्डम पहुंचने में हमें लगभग पांच घंटे लगे। विदेश में यह हमारी पहली रेल यात्रा थी। रेल्वे स्टेशन साफ़ एवं सुनियोजित तरीक़े से सजा हुआ है, सजा हुआ यूं कहूंगी क्योंकि मुझे लगा ही नहीं कि यह रेल्वे स्टेशन है, ऐसा लग रहा था जैसे किसी बड़े मॉल में आये हों। लोग लगेज लेकर न चलते तो यह बात बिल्कुल सच होती। ट्रेनों के आने जाने की कंप्यूटराइज़ गूंजती उद्घोषणा यहां सुनायी नहीं दे रही थी। स्वचालित इलेक्ट्रिक बोर्ड पर ट्रेनों का समय और प्लेटफॉर्म नंबर लिखे आ रहे थे, जिन्हें देखकर यात्री अपने लगेज के साथ यथेष्ट प्लेटफ़ॉर्म पर जा रहे थे। कुली नामक प्राणी का कोई नामोनिशान नहीं था। सभी यात्री अपना लगेज स्वयं ले जा रहे थे। परिवार के साथ यात्रा करने वाले यात्री समूह में छोटे बच्चे भी। उनके कंधों पर छोटा शोल्डर बैग और ड्रैग करने वाला सूटकेस, जिसे वो आसानी से ले जा सकते हैं। बचपन से ही आत्मनिर्भरता सिखायी जाती है यहां।

हम भी अपने प्लेटफ़ॉर्म पर पहुंचे, यहां किसी भी प्रकार के चाय, पानी आदि की कोई शॉप नहीं थी, जैसे हमारे यहां होती है ।वही स्वचालित मशीन जैसा बॉक्स जिसमें कोल्ड ड्रिंक, पानी आदि रखा हुआ था। ज़रूरत के अनुसार चयन करके कार्ड स्वाइप करें या वहां की मुद्रा डालें, आपका सामान मशीन से बाहर आ जाएगा। ऐसा हमारे यहां एयरपोर्ट पर देखा मैंने।

ट्रेन अपने समय पर आयी, ऑटोमेटिक दरवाज़े खुले, यात्री क़तारबद्ध बिना धक्कामुक्की किये अपनी सीट पर पहुंच गये। अपने यहां ट्रेन में सामान लेकर चढ़ने की प्रैक्टिस मन ही मन ट्रेन आने से पहले कई बार करनी होती है और ट्रेन आने पर एक विजयी दौड़ जीतने के लिए ट्रेन के दरवाजे को घेरकर खड़ा होना पड़ता है ताकि जल्दी से जल्दी अपनी रिज़र्व सीट तक पहुंच जाएं। अपने यहां के जनरल डिब्बे का हाल यहां व्यक्त नहीं करूंगी क्योंकि इसमें ऐसा कुछ नहीं होता। ट्रेन पूरी वातानुकूलित और वाई फ़ाई सुविधायुक्त होती है। इसके अंदर भी आपको चायवाला, पानी वाला… आवाज़ें नहीं सुनायी देती हैं। सोने वाली बर्थ का कोई विकल्प नहीं है, सभी कुर्सियां हैं। द्रुत गति से चलती ट्रेन से बाहरी दृश्य बड़े मनमोहक लग रहे थे। सुंदर घर और हरियाली मन मोह रहे थे। लगभग पांच छः स्टेशन के बाद हम अपनी मंज़िल पर पहुंच चुके थे।

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ऐम्स्टर्डम नाम एम्स्टल नदी के नाम से उपगमित है। नहरें, कला संस्कृति, साइकिल, ऐतिहासिक इमारतें और आज़ाद सोच के लिए इसे जाना जाता है। यहां कुछ चीज़ें, जो दूसरे देशों में वर्जित हैं, क़ानून के अंतर्गत नियंत्रित तरीक़े से स्वीकार की जाती हैं, जैसे कुछ ड्रग का सीमित इस्तेमाल, रेड लाइट एरिया जिसे पर्यटक भी देखने आते हैं।

प्रसिद्ध ऐम्स्टर्डम निवासियों में “द डायरी ऑफ यंग गर्ल” की युवा लेखिका ऐनी फ्रैंक, कलाकारों में रिब्रांडेंट वैन रियंज़ और विन्सेन्ट वैन गॉफ़ (‘गॉग’ प्रचलित उच्चारण) और दार्शनिक बारूच स्पिनोज़ा शामिल हैं। यहां की मुख्य भाषा डच है लेकिन लोग अंग्रेज़ी भी बहुत अच्छे से बोलते हैं। लोग बहुत मददगार, खुले विचारों वाले और पर्यटकों के प्रति मैत्रीपूर्ण होते हैं।

साइकिल यहां ख़ूब चलायी जाती है, यहां की आबादी लगभग साढ़े नौ लाख है और साइकिलों की संख्या 10 लाख के क़रीब है यानी औसतन प्रति व्यक्ति एक से ज़्यादा साइकिल। हर दिन हज़ारों लोग साइकिल से ऑफिस, स्कूल या बाज़ार जाते हैं। शहर में 400 किलोमीटर से ज़्यादा साइकिल लेन है और वाक़ई इसे ख़ाली छोड़ा जाता है। साइकिल पार्किंग भी बहुत बड़ी-बड़ी है। यहां तक कि रेलवे स्टेशन के पास हज़ारों साइकिलों की पार्किंग बनी हुई है। अगर आप ऐम्स्टर्डम जाएं तो साइकिल किराये पर लेकर शहर घूमना एक बहुत अच्छा अनुभव रहेगा।

राजधानी होने पर भी सभी सरकारी कार्य यहां से लगभग चालीस किलोमीटर दूर “द हॉग” में होते हैं। हमारे रुकने की व्यवस्था वहीं थी। टैक्सी करके वहीं पहुंचे। ट्रेन से भी हम वहां जा सकते थे उसके लिए हमें दूसरी ट्रेन लेनी होती, लेकिन बिटिया ने सोचा कि सामान है तो टैक्सी कर ली जाये।

ऐम्स्टर्डम से दूर रुकने की वजह यहां की महंगाई। हालांकि द हॉग में भी तीन दिन रुकने के लिए हमें 500 यूरो देने पड़े थे, जो भारतीय मुद्रा में लगभग पचास हजार होते हैं। ईस्टर वीक होने की वजह से ऐम्स्टर्डम में यह चार्ज 800-1000 यूरो तक था। हमारे यहां इतने में तो अच्छे पांच सितारा होटल में रुकने की व्यवस्था हो सकती है। होटल में सुविधा के नाम पर कमरे में बिस्तर था। पीने के पानी की ज़रूरत हमने बाथरूम में आते पानी से पूरी की। पीने का पानी यहां हमारे हिसाब से बहुत महंगा है। 2 यूरो की 400 ml की बॉटल। पानी से सस्ती बीयर होती है। ये लोग उपयोग में भी वही लेते हैं।

हम होटल पहुंचे, तब तक रात्रि के 8 बज चुके थे। समुद्र का किनारा होटल के नज़दीक था, सोचा वहां भी घूम आएं लेकिन हवा के ठंडे ठंडे थपेड़ों ने बिस्तर में पनाह लेने को मजबूर किया। घर से लाया हुआ खाना खाकर सो गये, सुबह हमें वापस ऐम्स्टर्डम पहुंचकर आगे की यात्रा करनी थी।

क्रमशः…

प्रवेश सोनी, pravesh soni

प्रवेश सोनी

कविता और चित्रकला, यानी दो भाषाओं, दो लिपियों को साधने वाली प्रवेश के कलाकार की ख़ूबी यह है कि वह एक ही दौर में शिक्षक भी हैं और विद्यार्थी भी। 'बहुत बोलती हैं औरतें' उनका प्रकाशित कविता संग्रह है और समवेत व एकल अनेक चित्र प्रदर्शनियां उनके नाम दर्ज हैं। शताधिक साहित्य पुस्तकों के कवर चित्रों, अनेक कविता पोस्टरों और रेखांकनों के लिए चर्चित हैं। आब-ओ-हवा के प्रारंभिक स्तंभकारों में शुमार रही हैं।

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