
- June 23, 2025
- आब-ओ-हवा
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रूसी कवि अन्ना अख्मातोव की पांच कविताएं
अन्ना अख्मातोव रूस की प्रथम महिला कवि मानी जाती हैं। साथ ही रूस की महानतम कवियों में इन्हें शुमार किया जाता है। मुख्य रूप से कविताओं की ही रचना की। इनकी गद्य रचनाएँ बहुत कम संख्या में उपलब्ध हैं। गद्य के नाम पर कुछ अति महत्वपूर्ण संस्मरण तथा कुछ डायरी के पन्ने ही उपलब्ध हैं।
इनका जन्म 23 जून 1888 को यूक्रेन के ओडेसा में हुआ था और मृत्यु 1966 में। 1965 में इनका नाम नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। अन्ना अख्मातोव की कुछ पुस्तकों के नाम हैं: रेकि्वम, अ पोयम विदाउट अ हीरो, अ स्टैन्डर्ड टू हेवेन ऐण्ड अर्थ। यहां उनकी पांच कविताओं का अस्मिता सिंह द्वारा किया गया हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है :
तेरह पंक्तियां
अंतत: तुमने कहा…
कोई पिछलग्गू क़दमों पर झुका नहीं है
वे शब्द, वे प्राणहारी शब्द इस प्रकार कहे गये..
तुमने उनसे ऐसे कहा
जैसे एक क़ैदी
अपना बंधन तोड़कर, आंसुओं के धब्बों को मिटाकर
भाग गया हो
एक अछूती झाड़ी, जिसकी शाखाएं
रज़ामंदी में सिर हिला देख रही थीं
वह शान्त संगीत गूंजा और सूर्य की तीखी रौशनी
परछाइयों को काट रही है, और
अंधेरा लुप्त हो गया है
शराब का सपाट स्वाद बदल गया है और
वर्तमान विलुप्त हो गया है
एक दुनिया जादू के माध्यम से बनी हुई तुम्हारी नज़रों से मिलती है
और मैं जो एक हत्यारिन होने वाली थी
पर मैंने कठोरता से उस मुलायम सपने को खंडित कर दिया
उसे बढ़ाने को मैंने सोचा और उसे उच्चरित करने इनकार कर दिया
वे निर्मम शब्द जो सुख को विनष्ट कर देंगे
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उत्तर की उदासी
उत्तर की उदासी के बारे में;
एक भयंकर और दुर्भाग्यपूर्ण भाग्य के बारे में
बात मत करो
वस्तुत: यह एक उत्सव का अवसर है
तुम और मैं आज एक दूसरे से अलग हो रहे हैं
कभी मत सोचना कि चांद हमारा साथ छोड़ देगा
अरुणोदय के साथ हम लोग नहीं मिल पाएंगे
मेरे प्रिय,
मैं तुमको उपहारों से लाद दूंगा
वैसे अद्भुत और सुंदर उपहारों से जो
कभी दिखायी नहीं पड़ते,
मेरी इधर उधर हिलती डोलती, नाचती परछाइयों को
क़ैद कर लो
एक कांपते हुए शीशे की धारा में;
मेरी नज़रों को ले लो, जो
उन महान तारों के रूप में ऐसा लगता है मानो
आकाश की गिरफ़्त से छूटे हों
मेरी आवाज़ को लेते जाओ, उसकी खनक, उसकी गूंज
मेरा उपहार लेते जाओ, जो
अक्टूबर के गीले मास्को में चिड़ियों की बातचीत
सुनने से कोई दर्द नहीं देगी, मदद करेगी
और पतझड़ के अंधकार और धुंधलके को दूर कर देगी
और मई की मोहकता… ओह..
मेरे प्यारे मुझे याद करना और तब तक सोचना
जब तक पहली बर्फ़ का टुकड़ा हवा में नृत्य न करने लगे
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यह समय
यह समय है! भूल जाने का जूअकोवस्की स्ट्रीट को,
सफ़ेद दीवार वाले घर को, नगर की छत को, उसके मेहराबों को
उसके चिड़ियाघर जैसे कोलाहल को.. जो बहुत दूर है..
मिलने से बहुत दूर
आंखें मटकाते हुए कुकुरमुत्ते और सिर हिलाते हुए
शाही मास्को के पेड़ों को, जो चमक रहे हैं, तुषार गिर रहे हैं
दूर है आकाश बहुत, पत्ते और घास खड़खड़ा रहे हैं
और रोगोचोवस्की का उंचा रास्ता अभी भी धड़क रहा है
ब्लॉक के जीवन से परिपूर्ण प्रमत्त और स्वतंत्र सीटियों के साथ
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स्मृति के गहन अंधेरे से
स्मृति के गहन अंधेरे से आवाज़ आ रही है
मैंने पाया सेंट पीटर्सबर्ग की एक रसपूर्ण और चमचमाती रात,
एक रंगशाला, टंगे मखमली अंधेरे
उपर से दम घोंटने वाली सुगंध
खाड़ी से हवा के झोंके आ रहे हैं और जैसा कि वह था,
‘ओह’ और ‘आहों’ से भरा हुआ,
वह अहंकारयुक्त हंसी, धूमिल नहीं पड़ी है
जो ब्लॉक के पास है
हमारी इच्छा का दुखपूर्ण काल
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कितना सही है वह
कितना सही है वह — लैंप, नेवा
केमिस्ट की दुकान और एक मृगतृष्णा;
एक आदमी, एक खड़ा स्मारक
समय की घटनाओं को चिह्नित करने के लिए…
यह सब शाम को वह फिर देखता है
पुश्किन के घर को वह अलविदा करता है
और ऐसा आराम जो उसे नहीं मिलना चाहिए था
उसने दर्द को ओढ़े हुए, मौत का आलिंगन किया

अस्मिता सिंह
कहानीकार एवं आलोचक। लंबे समय तक मगध यूनिवर्सिटी और पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में हिन्दी-साहित्य का अध्यापन। प्रमुख पुस्तकों में 'रंग से बेरंग होती ज़िंदगी', 'इन्तज़ार तो ख़त्म हुआ' (कहानी-संग्रह), 'फुलिया' (उपन्यास), 'शमशेर: अभिव्यक्ति की कशमकश (आलोचना पुस्तक), नारी मुक्ति: दशा एवं दिशा (नारी विमर्श), दलित अनुभव का सच (दलित-विमर्श) हैं। साथ ही, लू-शुन के पत्रों के अनुवाद और अन्य संकलित व संपादित पुस्तकें भी। बहुपठित एवं बहुप्रकाशित लेखक अस्मिता सिंह इन दिनों एस.ए. डांगे इंस्टीट्यूट आफ सोशलिस्ट स्टडीज़ एंड रिसर्च में निदेशक-प्रमुख हैं।
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