
- April 26, 2025
- आब-ओ-हवा
- 0
बात वरधन की (कला चर्चा)
कला में एब्स्ट्रैक्शन - 2
धृतिवर्धन गुप्त
गत अंक में कही गयी बात- हर वस्तु की अपनी मौलिक और सूक्ष्म पहचान होती है। आगे की बात यहीं से प्रारंभ करेंगे…
वस्तु की वह पहचान उसके स्थूल आकार में निहित होती है। उस स्थूल आकार को पहचानना, पहचान कर प्रदर्शित करना, फिर दिखायी दे रहे स्थूल आकार में परिवर्तन करना-तोड़ना, बिखेरना, घटाना और अन्त में मूल आकार को हटाकर कुछ नया बना देना, इन्हीं सब क्रियाओं के बीच में आधुनिक कला का कारोबार निहित है। जिसे समझने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत है…
आपने एक संतरे का फल लिया और उसे एक प्लेट में रख दिया, आपके सामने एक चित्रण का आधार तैयार हो गया। आप उसे यथावत चित्रित करके प्रदर्शित सकते हैं, चित्र प्लेट में रखे हुए संतरे का होगा- यह हुआ पहला चित्र।
फिर हमने प्लेट में रखे संतरे को उठाया। धीरे-धीरे उसका छिलका उतार दिया- छिलके के टुकड़े भी प्लेट में रख लिये, अब प्लेट का दृश्य पहले से भिन्न नज़र आने लगा। अब आप जो चित्र बनाएंगे, वह बदल जाएगा परन्तु पहचान संतरे और प्लेट की फिर भी बनी रहेगी उसे भी प्लेट में रखा हुआ संतरा ही कहा जाएगा। चित्र बदल गया लेकिन चित्र की मूल पहचान संतरा और प्लेट नहीं बदली। यह हुआ दूसरा चित्र।
आगे उस गेंद जैसे संतरे की फांकें अलग-अलग करके प्लेट में फैला दीं अब वह संतरा अपने पहले स्वरूप से एकदम भिन्न हो गया जो संतरा प्लेट में एक स्थान पर थोड़ी सी जगह में रखा हुआ था- उसका गोल आकार टुकड़े-टुकड़े होकर पूरी प्लेट में फैल गया, प्लेट का दृश्य फिर बदल गया लेकिन पहचान नहीं बदली! यह बना तीसरा चित्र- प्लेट में रखा संतरा।
अब प्लेट में रखे हुए छिलके हटा दिये और उन फांकों के ऊपर की पतली पर्त उतार कर बीज निकाले, बीज प्लेट में रखते गये तथा एक-एक करके फांकें खाना शुरू कर दिया। बस प्लेट में एक फांक और कुछ बीज शेष रह गये अर्थात् उठाते समय संतरा जिस रूप और आकार में था वैसा नहीं बचा। अब एक अकेली फांक बच गयी और प्लेट में बिखरे हुए कुछ बीज- पूरी प्लेट खाली हो गयी, दृश्य पूरी तरह बदल गया! लेकिन संतरे की पहचान उस अकेली फांक और प्लेट में बिखरे बीजों में भी मौजूद रही। यह हुआ चौथा चित्र।
अपने पूर्ण और स्थूल आकार में न होते हुए भी संतरे की फांक, संतरे की पहचान सहेजे रहती है। उस संतरे की फांक को देखकर भी संतरे के पूर्ण आकार का साक्षात्कार हो जाता है। यह बना पांचवाँ चित्र।
अब इसके और आगे चलेंगे – हमने उस संतरे की फांक को भी खोल दिया अब उसके अंदर छोटे-छोटे केले के आकार के रसकोष दिखाई देने लगे, अब वह गेंद के आकार का संतरा उन रस कोषों के स्वरूप में सामने आ गया, जो अपने पूर्णाकार से बिल्कुल भिन्न है फिर भी संतरे की पहचान उस रूप में मौजूद होती है। यह एक और चित्र तैयार हो गया।
यदि छिले हुए संतरे को निचोड़ कर उसका रस निकाल लिया जाये तो संतरे का स्थूल रूपाकार पूरी तरह समाप्त हो जाएगा- सामने होगा संतरे का रस।
संतरे के रस का मतलब- संतरे का सार “अर्थात् संतरे की सूक्ष्म पहचान” इस रस को देखकर भी संतरे के संपूर्ण स्वरूप का साक्षात्कार हो जाता है, जाने अनजाने उस रूपाकार को हम महसूस करने लगते हैं।
उपरोक्त स्थितियों से गुज़रते हुए हमने संतरे के स्थूल रूप को परिवर्तित, विखंडित और विलुप्त होते देखा परन्तु उसकी मूल और सूक्ष्म पहचान यथावत रही।
मुझे लगता है- स्थूल रूपाकार से आगे जाकर वस्तु की सूक्ष्म पहचान को प्रदर्शित करने की कोशिश को ही कला में एब्स्ट्रेक्शन और उसके परिणाम को एब्स्ट्रेक्ट कहा जा सकता है।
अर्थात् किसी भी जीव, निर्जीव वस्तु या दृश्य के स्थूल आकार को घटाते, जोड़ते, तोड़़ते, छोड़़ते, हटाते हुए- उस मूल वस्तु की पहचान को सहेजकर एक सर्वथा भिन्न स्वरूप के चित्रण को एब्स्ट्रेक्ट तथा इस घटाने, जोड़ने, तोड़ने, छोड़ने, हटाने की प्रक्रिया को हम कला में एब्स्ट्रेक्शन कह सकते हैं।

धृतिवर्धन गुप्त
मूर्तिकार , चित्रकार, लेखक, सम्पादक। 1947 में जन्मे धृतिवर्धन ने 1977 में ललित कला महाविद्यालय ग्वालियर से स्नातक किया। 1976 से 2001 तक ग्वालियर, देहली, मुंबई में मूर्ति एवं चित्रों की दस एकल प्रदर्शनियां। अन्तिम एकल प्रदर्शनी जहांगीर आर्ट गैलरी, मुंबई में। जापान, इण्डो-ताइवान एग्ज़ीबिशन आदि में चित्र प्रदर्शन सहित अमरीका, कनाडा में कृतियों का संग्रह। प्रदेश सरकार एवं अनेक महत्वपूर्ण संस्थाओं से सम्मानित धृतिवर्धन मानते हैं जब उनके गुरु श्री मदन भटनागर ने अपने मूर्तिकला के औज़ार उन्हें सौंपे और चित्रकला के शिक्षक श्री देवेन्द्र जैन ने अपने संग्रह के लिए उनका एक चित्र खरीदा, वह सबसे बड़े सम्मान थे। 2005 में 'संगत:कुछ दोहे कुछ और' काव्य संग्रह प्रकाशित। अनेक कला एवं सामाजिक संस्थाओं से संबद्धता एवं सक्रियता
Share this:
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Reddit (Opens in new window) Reddit
- Click to share on Pinterest (Opens in new window) Pinterest
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Bluesky (Opens in new window) Bluesky