भिखारी समस्या, भिखारियों का सर्वे, ​भीख मांगना अपराध, begging problem, begging in india, beggars survey, begging crime

भिक्षावृत्ति

             हम लगातार पेपरों में पढ़ रहे हैं कि भीख मांगने वाले और भीख देने वाले पर भी एफ़आईआर होगी। इसका कितना फ़ायदा होगा यह तो नहीं कहा जा सकता पर यह एक अच्छी पहल है। भिखारियों ने एक नया तरीक़ा अपनाया है। वे चीज़ें बेचने के बहाने भीख माँगते हैं। यह एक चिंताजनक स्थिति है जबकि लगातार आर्थिक उन्नति कर रहे हमारे भारत में एक तरफ़ मेहनतकश लोगों की लंबी क़तार बनती जा रही है, जो देश को संसार में एक नया मुक़ाम दे रही है तो दूसरी तरफ़ देश का एक बड़ा तबक़ा भीख माँगकर पेट भर रहा है।

इतिहास के पन्नों में प्राचीन काल से ही हमारे देश में भिक्षावृति की प्रथा चली आ रही है जिसमें साधु संत भिक्षा माँगते थे और गृहस्थ लोग उन्हें प्रसन्न होकर भिक्षा देते थे। उस समय भिक्षा देने को पुण्य का काम माना जाता था किंतु आज इसका स्वरूप बदल गया है। उस समय सांसारिक मोह माया त्याग, ज्ञान प्राप्ति के लिए साधु संत भिक्षा मांगकर जीवन यापन करते थे लेकिन आज भिखारियों का एक बड़ा वर्ग अपनी दिन भर की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भीख माँगता है।

भीख माँगना तुच्छ काम है जिसमें व्यक्ति का आत्मसम्मान नष्ट हो जाता है लेकिन कुछ मजबूर, लाचार, विकलांग अपनी भूख मिटाने और आजीविका न कमा सकने के कारण भिक्षा माँगते हैं। जैसे अकेले बुज़ुर्ग या छोटे यतीम बच्चे… लेकिन कुछ लोग अपने आलस्य और आराम के लिए भिक्षा माँगते है क्योंकि उन्हें भिक्षा माँगना कमाने से अधिक सरल लगता है। ऐसे लोगों की वजह से ही भिक्षावृति समस्या बन गयी है क्योंकि ये लोग अपंगों का स्वाँग भरके भिक्षा माँगते हैं और भिक्षा में मिलने वाले पैसों से नशा कर और अन्य अनैतिक कार्यों को अंजाम देते हैं।

भिक्षावृत्ति और अपराध

समाज में बढ़ती भिक्षावृत्ति बड़े पैमाने पर धंधा बन चुकी है, जिसके अन्तर्गत समाज में अनेक बुराइयाँ जन्म ले रही हैं। साथ ही, भिखारियों में बच्चों की तादाद भी अच्छी खासी है। बड़ी संख्या में बच्चे संगठित गिरोह का शिकार हो रहे हैं, जो उन्हें डरा-धमका कर तथा उनका अंग-भंग करके उनसे भिक्षावृत्ति करवा रहे हैं। इसके कारण बच्चों के शोषण व अपहरण की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है जिससे समाज में अनेक अपराध जन्म ले रहे हैं जैसे कि- मानव तस्करी, बाल अपराध तथा यौन शोषण आदि।

मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, हर साल जिन बच्चों का अपहरण किया जाता है, उन्हें भीख माँगने के अलावा कारख़ानों में अवैध बाल मज़दूरी, घरों व दफ़्तरों में नौकर, पॉर्न उद्योग, वैश्यावृत्ति, अंग बेचने वाले माफिया और जबरन बाल विवाह के जाल में फँसाया जाता है। इसके अलावा कुछ बच्चे आपराधिक गतिविधियों जैसे- ड्रग्स, हत्या और लूट में भी संलिप्त हो जाते हैं।

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भीख माँगने वाले लोग आमतौर पर ग़रीबी, बेरोज़गारी, बेघर, अशिक्षा और कई सामाजिक बुराईयों जैसे- अपराध, नशा व तस्करी से जुड़े रहते हैं, जिसके कारण वे शारीरिक व मानसिक रूप से विकलांग और बहुत से रोगों (कुष्ठ, मिर्गी, त्वचा) से पीड़ित होते हैं। उनमें मानसिक तौर पर अलगाव तथा कुण्ठा की भावना घर कर जाती है। महिलाएँ भी अश्लीलता, अनुचित शब्द, यौन शोषण तथा उत्पीड़न का शिकार होती हैं। इनके बच्चों का भी शारीरिक व मानसिक विकास नहीं हो पाता है और वे कुपोषण, अशिक्षा तथा अनेक रोगों (कम लम्बाई, वजन में कमी तथा मानसिक विकार) से पीडि़त होते हैं।

भिक्षावृत्ति में शामिल लोग

  • भिक्षावृत्ति करने वालों में पहली श्रेणी उन लोगों की है जो गंभीर शारीरिक अस्वस्थता, असाध्य रोगों, विकलांगता के साथ ही ग़रीबी से पीड़ित हैं और जीवित रहने के लिए उनके पास कोई और साधन नहीं है।
  • दूसरी श्रेणी में वे बूढ़े और असहाय लोग हैं, जिन्हें परिवारों से जबरन निष्कासित कर दिया गया है।
  • तीसरी श्रेणी में ऐसे बेरोज़गार शामिल हैं, जो पूरी तरह से निराश हो चुके हैं और जिनके पास आय का कोई अन्य साधन नहीं है।
  • चौथी श्रेणी में भिक्षावृत्ति करने वाले ऐसे भी लोग हैं, जिन्होंने इसे अपना धंधा बना रखा है और बिना कुछ किये, इसे ही अपनी कमाई का साधन मानते हैं।
  • पाँचवी श्रेणी में ठगी करके, पैसा इकठ्ठा करने की कोशिश करने वाले लोग हैं।
  • छठी श्रेणी में असामाजिक तत्वों के चंगुल में फंसे ऐसे लोग हैं, जिनसे अलग-अलग स्थानों पर, नियोजित ढंग से भीख मंगवायी जाती है और अपराधी तत्व, उस भीख का बहुत थोड़ा हिस्सा ही, उन भीख मांगने वालों को देते हैं।

भिक्षावृति के कारण

‘भिक्षावृत्ति मुक्त अभियान’ चलाने वाले एक शोध के अनुसार 31% भिक्षुक ग़रीबी की वजह से भीख मांग रहे हैं, 16% विकलांगता, शारीरिक अक्षमता, बीमारी, 13% बेरोज़गारी, 13% पारम्परिक, आलस्य और नाकारेपन की वजह से भीख मांग रहे हैं। संक्षेप में भारतीय समाज में भिक्षावृत्ति के पनपने के पीछे निम्न कारणों को रखा जा सकता है-

  • संसाधनों का असमान वितरण।
  • ग़रीबी व बेरोज़गारी का उच्चतम स्तर पर होना।
  • लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं (रोटी, कपड़ा व मकान) का पूरा नहीं हो पाना।
  • गंभीर स्वास्थ्य समस्या व अपंगता।
    कुछ आपराधिक संगठनों द्वारा ज़बरदस्ती भिक्षावृत्ति करवाना। इसमें बाल भिक्षावृत्ति सबसे प्रमुख है।

प्रोफेसर अमर्त्य सेन के अनुसार लोगों में अक्षमताओं का अभाव ही भिक्षावृत्ति व ग़रीबी का मुख्य कारण है। वर्ल्ड बैंक के अर्थशास्त्री गौरव दत्त के अनुसार आर्थिक उदारीकरण के साथ भारत में ‘ग्रामीण औद्योगिकीकरण’ पर ध्यान नहीं दिया गया, जिससे ग़रीबी ने धीरे धीरे गम्भीर रूप धारण कर लिया।

आर्थिक उदारीकरण के लागू होने के बाद विदेशी, निजी व सरकारी निवेश भारी मात्रा में आया, जिससे पूँजी की उपलब्ध मात्रा में बढ़ोतरी हुई। इसके कारण उत्पादन प्रक्रिया में श्रम के स्थान पर पूँजी के प्रतिस्थापन को अधिक बढ़ावा मिला। अतः अकुशल श्रमिक धीरे धीरे बेरोज़गार होने लगे और ग़रीबी के जाल में फँसते चले गये। बाद में ग़रीबी के इसी स्तर ने भिक्षावृत्ति का रूप धारण कर लिया।

भिक्षावृति का वर्तमान परिदृश्य

सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार भारत में वर्तमान में 14 साल तक की उम्र के लगभग 4 लाख बच्चे भिक्षावृत्ति के धंधे में लिप्त हैं और ख़ानाबदोश ज़िंदगी जी रहे हैं। यह एक ऐसा धंधा बन गया है जिसमें काम करने के घंटे, मुनाफ़ा-घाटा, दलाल और मैनेजर आदि सबकी एक श्रेणी बन चुकी है। अर्थात् यह कार्य एक संगठित अपराध में तब्दील हो चुका है।

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2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुल 3.72 लाख भिखारी हैं, इनमें से लगभग 79 हजार यानी 21 फ़ीसदी साक्षर हैं। हाई स्कूल या उससे अधिक पढ़े लिखे भिखारियों की संख्या भी कम नहीं है। इनमें से क़रीब 3000 ऐसे हैं, जिनके पास कोई न कोई टेक्निकल या प्रोफ़ेशनल कोर्स का डिप्लोमा है। इसके अलावा, शहरी इलाक़ों में भीख माँगने वालों की संख्या एक लाख पैंतीस हजार है जबकि ग्रामीण इलाक़ों में यह संख्या दो लाख पैंतीस हजार है।

2018 में सामाजिक कल्याण मंत्री थावरचंद गहलोत ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था देश में कुल 4 लाख 13 हजार 760 भिखारी हैं। जिनमें 2 लाख 21 हजार 673 भिखारी पुरुष और बाक़ी महिलाएं हैं। भिखारियों की इस सूची में पश्चिम बंगाल पहले नंबर पर है। बंगाल में भिखारियों की संख्या सबसे अधिक है। उसके बाद दूसरे स्थान पर है उत्तर प्रदेश और तीसरे पर बिहार।

भिक्षावृत्ति के लिए क़ानून

सरकार ने इनके लिए बहुत सी योजनाएँ बनायीं। कई समाजसेवी संगठन हैं जो इन जैसे लोगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं जिसका लाभ उठाया जा सकता है। अब ये भी कह सकते हैं कि ये सब दिखावा है, कोई दो चार संस्थाएं फ़र्ज़ी हो सकती हैं पर सब नहीं। इन्हीं नकारात्मक बातों का फ़ायदा ग़लत प्रवृत्ति वाले लोग उठाते हैं और इनसे ये धंधा कराने लगते हैं। सरकार ने भिक्षावृति रोकने के लिए कई क़ानून बनाये हैं भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम के तहत भिखारी के रूप में पहली बार भीख मांगते पकड़े जाने पर दो साल और दूसरी बार में 10 साल की जेल का प्रावधान है। इसकी ज़िम्मेदारी पुलिस के साथ सामाजिक न्याय विभाग की भी है। आईपीसी की धारा 133 में भीख मांगने को पब्लिक न्यूसेंस मानते हुए ऐसे दंड का प्रावधान है।

संशोधित किशोर न्याय कानून, 2015 में बाल भिक्षावृत्ति के ख़िलाफ़ सख़्त प्रावधान किये गये हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार सुरक्षा आयोग के अनुसार बाल भिक्षावृत्ति पर अंकुश लगाने हेतु संशोधित कानून की धारा-76 के तहत बाल भिक्षावृत्ति के लिए दोषी को पाँच साल की क़ैद और एक लाख रुपये जुर्माने की सज़ा का प्रावधान है। बच्चों के अंग-भंग करके उनसे भिक्षावृत्ति कराने के लिए दोषी को सात से दस साल तक की क़ैद और एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।

लोगों में नाकारेपन, आलस्य और कामचोरी की प्रवृत्ति भी भिक्षावृत्ति को बढ़ावा दे रही है। समाज को गर्त में ढकेलने में हम लोग भी कहीं न कहीं शामिल हो जाते हैं इन पर दया कर, तरस खाकर। मेरा सोचना है कि अनजाने ही हम अपना ही ईगो सैटिसफाइड करते हैं। स्वयं को दानी और ग़रीबों का तारणहार मानकर स्वयं की ही पीठ ठोकते है। ये कोई पुण्य का काम नहीं है, इसलिए जागिए… असहाय, लाचार, बीमार की मदद तो कीजिए पर कोशिश कीजिए कि नगद न दें। जब आप पैसे नहीं देंगे तो उनसे भीख मँगवाने वाले कमज़ोर पड़ेंगे। यदि उन्हें काम दे सकते हैं तो दें या फिर उन्हें किसी संस्था में पहुँचाया जा सकता है।

बदलाव की कहानी

अभी कुछ दिन पहले ही मैंने कहीं पढ़ा था, एक दस बारह साल का बच्चा किसी शादी समारोह में खाना चुरा रहा था। एक वेटर ने उसे पकड़ लिया। वह रोने लगा कि मैं अनाथ हूँ मेरा कोई सहारा नहीं है। तब वेटर ने उसे खाना खिलाया और अपने पास बैठा लिया। समारोह ख़त्म होने पर वहाँ पड़े कुछ गुलदस्ते दिये और कहा कल इन फूलों को बेचकर खाना खाना। बचे पैसों से फूल ख़रीदना फिर उन्हें बेचकर अपना पेट भरना। उस दिन के बाद बच्चे ने कभी चोरी नहीं की, न भीख माँगी। बाद में वह फूलों का व्यापार करने लगा।

इस तरह हम भिखारियों की प्रवृत्ति को बदलने में सहयोग कर सकते हैं। बूँद बूँद से घट भरता है, हमारा छोटा सा काम ज़रूर बदलाव लाएगा।

मधूलिका श्रीवास्तव, madhulika shrivastav

मधूलिका श्रीवास्तव

श्री अरविन्दो स्कूल, भोपाल की संस्थापक सदस्य व संचालिका मधूलिका संस्कृत, भाषा शास्त्र एवं पत्रकारिता में दक्ष हैं। उपन्यास, लघुकथा, कथा एवं कविताओं के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। अनेक साझा संकलनों में आपकी रचनाएं शामिल हुई हैं। मप्र हिन्दी लेखिका संघ समेत अनेक संस्थाओं से आप सम्मानित की जा चुकी हैं।

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