
- July 24, 2025
- आब-ओ-हवा
- 2
रतन थियम: सांस्कृतिक प्रतिरोध की आवाज़
पंकज निनाद की कलम से....
सामाजिक सरोकारों के बिना कला उतनी ही हास्यास्पद लगती है, जितनी किसी नग्न आदिवासी के हाथ में सोने का कंगन। बहुत कम कलाकार ऐसे हुए हैं, जिन्होंने अपनी जड़ों को भी नहीं छोड़ा और सामाजिक चेतना से भी समझौता नहीं किया। 23 जुलाई 2025 को भारतीय रंगमंच ने अपना ऐसा ही एक महानायक खो दिया। मणिपुर के प्रख्यात नाटककार, निर्देशक और रंगमंच चिंतक रतन थियम का 77 वर्ष की आयु में इम्फाल के रिम्स अस्पताल में निधन हो गया। उनका जाना न केवल भारतीय रंगमंच के लिए, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक चेतना के लिए भी एक अपूरणीय क्षति है। पाँच दशकों से अधिक के अपने रंगकर्म से उन्होंने भारतीय रंगमंच को नयी पहचान दी और मणिपुरी संस्कृति को वैश्विक मंच पर पहुंचाया।
20 जनवरी 1948 को मणिपुर में जन्मे रतन थियम के पिता स्वयं मणिपुरी नृत्य के साधक थे। कला और संस्कृति का गहरा संस्कार उन्हें बचपन से ही मिला। धीरे-धीरे उनकी रुचि पेंटिंग, कविता, लघुकथाएँ और नाट्य लेखन में परिलक्षित होने लगी। रंगमंच के प्रति उनका आकर्षण उन्हें नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) तक ले आया, जहाँ उन्होंने रंगमंच की विधिवत शिक्षा प्राप्त की। शुरूआती दिनों में उन्होंने नाट्य समीक्षक के रूप में काम शुरू किया, लेकिन मंच की रचनात्मक संभावनाओं ने जल्द ही उन्हें अपनी ओर खींच लिया और रंगमंच ही उनका जीवन बन गया।
रतन थियम भारतीय रंगमंच में उस धारा के प्रतीक थे, जिसे “थिएटर ऑफ रूट्स” कहा जाता है। इस आंदोलन का उद्देश्य भारतीय पारंपरिक नाट्य और सांस्कृतिक रूपों को आधुनिक संदर्भों में पुनर्जीवित करना था। रतन थियाम ने विशेष रूप से संस्कृत नाटकों की आधुनिक व्याख्या प्रस्तुत की। भास के “कर्णभारम्” और “उरुभंगम्” का उनका मंचन आज तक याद किया जाता है। उनके रंगमंच में मणिपुरी नृत्य, थंग-टा (मार्शल आर्ट), लोक संगीत और पारंपरिक सौंदर्यबोध का अनूठा संगम दिखायी देता था।
थियम का मानना था रंगमंच केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना जगाने का सशक्त साधन है। अपने थिएटर ग्रुप “कोरस रेपर्टरी थिएटर” के माध्यम से उन्होंने अनेक अविस्मरणीय प्रस्तुतियाँ दीं। अपने नाटकों में उन्होंने मणिपुर की राजनीतिक अशांति, हिंसा और जातीय संघर्ष को गहरे रूपकों और प्रतीकों के माध्यम से व्यक्त किया। “चक्रव्यूह” में महाभारत के अभिमन्यु प्रसंग के ज़रिये मणिपुर की घेराबंदी और हिंसा की पीड़ा व्यक्त की। “उत्तर प्रियदर्शी” में सम्राट अशोक के जीवन के बहाने सत्ता, करुणा और आत्मपरिवर्तन की तलाश की। “नाइन हिल्स वन वैली” मणिपुर के जातीय संघर्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति है। इन प्रस्तुतियों में चित्रकार, कवि और नाटककार के रूप में उनकी बहुमुखी प्रतिभा झलकती थी।
जैसा कि वे स्वयं कहते थे— “थिएटर अपने जन्म से ही सत्ता और व्यवस्था का प्रतिगामी रहा है।” मणिपुर लंबे समय से अलगाववाद, जातीय संघर्ष और सैन्य दमन के बीच जूझता रहा है। थियाम ने इस उथल-पुथल को सांस्कृतिक प्रतिरोध की तरह मंच पर उतारा। उनके नाटक मौन जनता की पीड़ा की आवाज़ बनकर उभरे।
2023 में मणिपुर में भड़की जातीय हिंसा के बाद केंद्र सरकार द्वारा गठित 51 सदस्यीय शांति समिति में उन्हें शामिल किया गया, जो उनके सामाजिक सरोकार का प्रमाण है। रतन थियम को उनके अद्वितीय योगदान के लिए अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले। उन्हें 1989 में पद्मश्री, 1987 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 2012 में अकादमी रत्न फेलोशिप से नवाज़ा गया। उन्हें 1984 में इंडो-ग्रीक फ्रेंडशिप अवार्ड और 2008 में जॉन डी. रॉकफेलर पुरस्कार भी मिला। 2013 से 2017 तक वे एनएसडी के अध्यक्ष रहे और नई पीढ़ी के रंगकर्मियों को प्रेरित करते रहे।
रतन थियम का रंगमंच भारतीय सांस्कृतिक परिदृश्य की आत्मा है। उन्होंने अपनी जड़ों से जुड़कर आधुनिक भारतीय रंगमंच को अंतरराष्ट्रीय पहचान दी। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा— “रतन थियम की आत्मा उनकी कृतियों और उनके द्वारा प्रेरित अनगिनत जीवन में सदैव जीवित रहेगी।” उनका निधन भारतीय रंगमंच के लिए एक युगांतकारी क्षति है। किंतु उनकी कृतियाँ, उनका दृष्टिकोण और उनकी सांस्कृतिक चेतना आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेंगी। वे न केवल एक रंगकर्मी थे, बल्कि भारतीय रंगमंच के युगपुरुष और सांस्कृतिक प्रतिरोध की आवाज़ थे।
(कैलिफोर्निया के यूसीएलए कैंपस में रतन थियम के कोरस रेपर्टरी थिएटर की प्रस्तुति उत्तर प्रियदर्शी का एक दृश्य। इस नाटक में राजाओं की सनक के कारण होते युद्धों में पीड़ित विधवाओं और मांओं का क्रंदन दर्शाया गया। गेटी इमेज के माध्यम से कॉन केयेस की तस्वीर साभार)

पंकज निनाद
पेशे से लेखक और अभिनेता पंकज निनाद मूलतः नाटककार हैं। आपके लिखे अनेक नाटक सफलतापूर्वक देश भर में मंचित हो चुके हैं। दो नाटक 'ज़हर' और 'तितली' एम.ए. हिंदी साहित्य के पाठ्यक्रम में भी शुमार हैं। स्टूडेंट बुलेटिन पाक्षिक अख़बार का संपादन कर पंकज निनाद ने लेखन/पत्रकारिता की शुरूआत छात्र जीवन से ही की थी।
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रतन थियम की जीवन यात्रा एवं उनकी उपलब्धियों का बारीकी से विश्लेषण किया है। रतन थियम के लेखकीय सृजन की विरासत को बखूबी समेटा है पंकज निनाद जी ने।।
बहुत सराहनीय लेख है।
शुक्रिया जी
रतन थियम जी का रचनात्मक योगदान अतुलनीय है।उन्होंने बहुत विपरीत और कठिन समय में बहुत उल्लेखनीय काम किया है। दुर्भाग्य से हिंदी पट्टी के बहुत से लोग उनका नाम तक नहीं जानते हैं।