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समकाल का गीत विमर्श

नयी सदी की चुनौतियांँ और नवगीत कविता-4

राजा अवस्थी

      जबकि यह कुछ साक्ष्यों, उदाहरणों आदि के माध्यम से प्रमाणित ही नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति का अनुभूत तथ्य भी है कि जब भी कविता का कोई विचार या किसी कविता का ध्यान भी मन में आता है, तो भीतर एक लय स्वयंमेव ही गुनगुन करने लगती है। गीत छंद में लिखा जाता है और गीत से अलग भी काव्य की रचना छंद में हुई है, होती है। दरअसल छंद की सही पहचान पढ़ने, गुनगुनाने व सुनने से ही हो पाती है। इसी तरह गद्य में लिखी पंक्तियों की भी कविता होने की परख उसके पढ़ने, भावपूर्ण प्रवाह में पढ़ने और सुनने में होती है।

      गद्य कविता और छांदस कविता में प्राथमिक भेद यह है कि गद्य कविता में प्रवाह में कोई पैटर्न नहीं होता। छांदस कविता में पैटर्न की अनिवार्यता है। यह पैटर्न केवल लय या तुक का नहीं, बल्कि भाव, तथ्य और विषय वस्तु का भी होता है। नवगीत कविता की चुनौती यह है कि वह अपने रूपकात्मक विन्यास के साथ लय और प्रवाह के विन्यास को अक्षुण्ण रखते हुए अपने समय के मनुष्य का संघर्ष, समय का छल, मनुष्य की बेचैनी, उसका व्यक्तिगत राग, उसको छलने वाली शक्तियांँ और उसकी अपार सामर्थ्य को लिखे, पढ़े, गाये-सुनाये।

      नवगीत ने एक ख़तरा और पैदा कर लिया है। पूरी नवगीत कविता कहीं प्रतिरोध के लिए लिखी जाने लगी है। समस्या प्रतिरोध में नहीं है, किन्तु यह प्रतिरोध अधिकांशतः मात्र व्यवस्था को केन्द्र में रखकर लिखा जा रहा है।

      यह प्रतिरोध कुछ इस तरह भी लिखा जा रहा है, जिससे कवि व्यवस्था का प्रतिपक्ष रचता तो दिखता है, किन्तु उस प्रतिपक्ष से वह अनुभूति ग़ायब होती जा रही है, जो व्यवस्था का प्रतिपक्ष मात्र बनाने की बजाय ऐसी वास्तविक पीड़ा का संचार करती है, जिससे व्यवस्था की व्यवस्थित और जनपक्षी शक्ल गढ़ने की प्रेरणा मिलती है। कविता की प्राथमिकता समय के सारे छल को व्यक्त करते हुए लोक-मंगलकारी समाज की प्रबल आकांक्षा से समाज को भर देना है। ऐसा करने के लिए उसे अपने रूप, लय, कथ्य और विषय में लोक से जुड़े रहना पड़ेगा। लोक की दशा और उस दशा के कारणों के व्यक्ति के नितांत निजी राग, विराग, आशा-निराशा, प्रेम, आसक्ति आदि को अपने काव्य का विषय बनाना होगा।

        ऐसा करते हुए बराबर इस बात की आशंका भी बनी रहती है, कि कवि समाज को ऐसी अनुभूतियों और कल्पनाओं में उलझा दे कि वह उस निर्मम समय, निर्मम और शोषक व्यवस्था, उसे ही नहीं उसकी भावनाओं और अनुभूतियों तक को जिन्स में बदल देने वाले बाज़ार के बारे में सोचना छोड़कर मात्र काल्पनिक सुख के नशे में स्वयं को डालने की ओर बढ़ने लगे। ऐसी दशा से समाज को सावधान रखना और बचाना उसकी बड़ी और ज़रूरी ज़िम्मेदारी है।

      दरअसल यह चुनौती नवगीत ही नहीं गद्य कविता की भी है। नवगीत कविता को किसी भी एक प्रवृत्ति, समस्या, विचार, वाद आदि से आबद्ध होने से बचाना और लोक के बीच अपनी जगह बनाना समय की बड़ी ज़रूरत है। नवगीत कविता में यह सब कर सकने की संभावना और सामर्थ्य दोनों हैं, बशर्ते कि वह चुनौतियों को चुनौतियों की तरह ले।

राजा अवस्थी

राजा अवस्थी

सीएम राइज़ माॅडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कटनी (म.प्र.) में अध्यापन के साथ कविता की विभिन्न विधाओं जैसे नवगीत, दोहा आदि के साथ कहानी, निबंध, आलोचना लेखन में सक्रिय। अब तक नवगीत कविता के दो संग्रह प्रकाशित। साहित्य अकादमी के द्वारा प्रकाशित 'समकालीन नवगीत संचयन' के साथ सभी महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय समवेत नवगीत संकलनों में नवगीत संकलित। पत्र-पत्रिकाओं में गीत-नवगीत, दोहे, कहानी, समीक्षा प्रकाशित। आकाशवाणी केंद्र जबलपुर और दूरदर्शन केन्द्र भोपाल से कविताओं का प्रसारण।

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