
- May 26, 2025
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चंगेज
(इंडोनेशियाई कहानी - आबिदा अल ख़लीक़ी)
(जोन सुएनागा के अंग्रेजी अनुवाद से हिंदी अनुवाद: श्रीविलास सिंह)
मैं चंगेज हूँ, एक वेश्या जिसने पिछली रात पाक लुराह के मुंह पर थूक दिया था। कौन कहता है कि मैं पाक लुराह से डरती हूँ। मैं उससे कभी नहीं डरी, हज यात्रा पर उसके जाने से पहले भी नहीं और न ही उसके लौट आने के बाद। मैं किसी पद या रैंक से नहीं डरती क्योंकि मैं ऐसा कुछ देखती ही नहीं। मैं पाक लुराह का चेहरा भी नहीं देखती।
दो माह पूर्व, पाक लुराह, गांव के मुखिया, ने कहा था कि वह हज यात्रा से लौटने के पश्चात मुझे फिर से छुएगा भी नहीं। लेकिन पवित्र भूमि से लौटने के पश्चात वह वास्तव में अपनी पगड़ी के पीछे छुपा एक भेड़िया बन गया। जब भी वह बू मिनाह के ढाबे पर रुकता था, उसकी भूखी आंखें मुझे देखकर लार टपकाती सी होती थी।
मेरे परिवार, जिसमें एक लकवाग्रस्त छोटा भाई, एक और भाई, जिसका दिमाग़ पूरी तरह पटरी से उतरा हुआ था और एक विधवा और निर्धन मां, सम्मिलित थे, की बदहाली का लाभ उठाकर पाक लुराह मेरे साथ बलात्कार करने और मुझे लूटने के पश्चात मेरे बचे हुए आत्मसम्मान पर व्यंग्यात्मक ढंग से मुस्कुराता हुआ चला गया था। उसके चेहरे की यह मुस्कान ठीक WCW के उन पहलवानों की भांति थी जो अपने प्रतिद्वंदियों को नॉकआउट कर देते हैं।
मैं चंगेज हूँ। कौन कहता है कि मेरी देह “मिलेंजो” क्रैकर की भांति दुबली है? यह दुबली देह भी बहुत क़ीमती है क्योंकि मैं जानती हूँ कि मैं एक कैप्टन को बच्चे कि भांति रोने को मजबूर कर सकती हूँ जब मैं उसकी रखैल बनने के प्रस्ताव को मना कर देती हूँ। मेरे पास सौदा करने की शक्ति है। मैं एक रण्डी हूँ जो हाईस्कूल भी पास नहीं कर सकी। किंतु गंजे लोग जो अपने को प्रोफ़ेसर या डॉक्टर कहते हैं, दयनीय पियक्कड़ों की भांति हज़ारों प्रार्थनाएं बड़बड़ाते हुए मेरी जांघों पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
मैं चंगेज हूँ। मैंने पाक लुराह, जिसने मुझे वेश्या कहकर मेरी बेइज़्ज़ती की थी, के मुंह पर थूक दिया था। उसने कहा था कि मेरा पेशा असम्मानजनक है, लेकिन यह वही था जिसने मुझे इस गटर में डुबोया था। यह वही था जिसने मेरा कौमार्य एक हज़ार रूपिये में उस मामा वियोला को बेचा था, जिसका चेहरा कैक्टस की भांति है और जो दुष्ट कुंतीलंकन आत्मा (एक प्रतिशोधी स्त्री आत्मा, एक पौराणिक पात्र) की भांति मुस्कराता है।
जब मेरे क़द्रदानों के बढ़ने के कारण मेरी आय बढ़ी, पाक लुराह ने यह कहते हुए मेरा पैसा चुरा लिया कि यह उसकी सेवाओं का मेहनताना था। सेवाएं? मेहनताना? ठेंगा! मैंने उसके घड़ियाल जैसे चेहरे पर थूक दिया। इस बात से मुझे उल्टी सी महसूस होने लगी, और मैंने पुनः उस पर थूक दिया, उसके चेहरे पर थूक दिया जिस पर भय के कुछ चिह्न दिखने लगे थे क्योंकि मैंने उसे एक छोटे चाकू, जिसे मैं पिछले दो दिनों से अपने साथ रखती थी, से धमकाया था।
मैं चंगेज हूँ। मेरे घर के ठीक सामने के मैदान में एक हेलीकॉप्टर उतरा। निश्चय ही, यह मेरे लिए था। एक पायलट, जो दो दिन पहले डिस्को में रोया और गिड़गिड़ाया था, मुझे ले जाने के लिए वायुसेना के हेलीकॉप्टर का निजी उपयोग करता था।
दो दिन हुए, जब मैं गांव में अपने घर आयी थी, गांव की हवा की ताज़गी में अपने चेहरे को तरोताज़ा करने के लिए। मैं स्वयं को शहर की उबकाई लाने वाली गंदगी से मुक्त करना चाहती थी। शहर की बदबू से मुझे उबकाई आती है, मुझे निरंतर लगता रहता है कि मैं उल्टी कर दूंगी। अब इस छोटे से उड़नखटोले ने मेरी मां और अन्य गांव वालों की व्यस्त दिनचर्या को बाधित कर दिया था। इस कारण पाक लुराह बीच में पड़ा।
उस दिन के पश्चात मैं अपने गांव में प्रसिद्ध हो गयी — कोई बड़ी कलाकार या अन्य कुछ ऐसा ही होने के कारण नहीं, बल्कि एक वेश्या होने के कारण। एक वेश्या जिसके प्रति एक वायुसेना का कैप्टन लट्टू है और जिसे लेने के लिए हेलीकॉप्टर आता है। पहले गांव वाले सोचते थे कि मैं सुरबाया में एक ब्यूटीपार्लर की कर्मचारी के रूप में सफलता से जीविका अर्जित करती थी, किंतु तब उनकी आँखें उनके सिरों से बाहर आ गयीं जब उन्होंने वह सुना जो पाक लुराह ने उनसे कहा था।
पाक लुराह ने सबसे – सभी गांव वालों से – मेरा रास्ता न अपनाने को कहा। उसने उन्हें मेरे पेशे से दूर रहने की सलाह दी, एक अभिशापित पेशा जिसमें सिर्फ़ मुझ जैसी अभिशापित स्त्रियां ही आती हैं।
“नौजूबिल्लाह! अल्लाह हमें अपनी शरण में रखे!” पाक लुराह चिल्लाया।
“नौजूबिल्लाह !” सभी गाँव वाले मेरे मुंह पर, मेरे दुर्भाग्य पर थूकते हुए एक स्वर से चिल्लाये।
मेरी माँ सिकुड़कर और भी छोटी हो गयी और उसने शर्म से मर जाना चाहा। लगातार कई रातों तक मुझे अंतहीन दुःस्वप्नों ने पीड़ा पहुंचायी, जबकि मेरे दिन गालियों, अपमान और शापों की झड़ी से भरे हुए थे। बू मिनाह के ढाबे से कुछ खरीदने के लिए भी ऊर्जा और साहस की आवश्यकता थी जो मुझमें बिलकुल नहीं बची थी।
हमारी दुनिया सूखकर उजाड़ हो गयी थी। एकांत बिलकुल नहीं था जो हमें कुछ आत्मचिंतन करने अथवा सोचने का जरा सा भी समय देता। शोर मचाती आवाज़ें हमारी छत पर निरंतर बरस रही थीं, हमारे पेट में मरोड़ उठाती, हमारे गलों को रूंधती। मैं पसीने, भय, संभ्रम और हताशा के समुद्र में डूबी हुई थी।
मेरे हृदय की धड़कन रुक सी गयी जब एक भयानक रात को मेरे दरवाज़े पर दस्तक हुई। मेरी माँ उठ नहीं सकती थी क्योंकि उनके कपड़े भीगे हुए थे संभवतः पेशाब से, संभवतः भय के कारण निकले पसीने से। एकमात्र मैं ही थी जो दस्तक का जवाब दे सकती थी; कौन है वहां?
“पाक मोदिन!”
यह पाक मोदिन थे, मुअज्जिन जो मस्जिद से नमाज़ के लिए अज़ान दिया करते थे। मुझे भान हुआ कि इतनी रात को उनके आने का उद्देश्य कुछ गंभीर ही होगा।
“क्या बात है?”
“एक बात है चंगेज़। मुझे तुम्हें यह बताने का पाक लुराह ने आदेश दिया है कि जितनी जल्दी हो सके तुम यह कस्बा छोड़ दो! आज रात ही, यदि संभव हो। अपनी ख़ुद की सुरक्षा के लिए।”
“क्या? लेकिन क्यों?”
मैंने उनकी ओर दृढ़ता से देखा, किन्तु वे डरे हुए निरंतर मिट्टी के फ़र्श की ओर देख रहे थे, जैसे उसके छिद्रों में कोई जवाब छिपा हुआ हो। उन्होंने अपनी दृष्टि एक जगह से दूसरी जगह डाली, अपनी चप्पलों का परीक्षण करते हुए, पहले बायीं का फिर दायीं का। मुझे नहीं पता उन्होंने वहां क्या देखा, लेकिन उन्होंने जब पुनः अपना चेहरा ऊपर उठाया ऐसा लग रहा था जैसे उन्हें जवाब मिल गया हो।
“एर….. पाक लुराह ने कहा है कि….”
“क्या कहा है?” मैं ग़ुस्से में गुर्राई।
“एर……. कि तुम….. यह पाक लुराह ने कहा….”
“हाँ, पाक लुराह ने क्या कहा है?”
पाक मोदिन और भी अधिक भ्रमित लग रहे थे। यदि मैं एक फ़ोटोग्राफर होती, तो मैं इस सबसे उत्कृष्ट मानवीय अभिव्यक्ति की तस्वीर लेना चाहती। दुबले-पतले और बूढ़े पाक मोदिन तपेदिक से बचे थे, जिसने उनके शरीर को एक साल तक कुतरा था, और उन्हें दर्द में ऐंठते किसी कीड़े की भांति बना दिया था। लोग उन्हें दुबले मोदिन के नाम से पुकारते थे, जिसकी उपयुक्तता उस रात मुझ पर स्पष्ट हुई।
जो डर मुझे निरंतर परेशान कर रहा था वह मनोरंजन के साथ-साथ गांव के इस बुज़ुर्ग को हो रही असुविधा पर मुझे हो रहे गर्व से अचानक ही उड़ गया। पिछले कई दिनों से जो डर मुझ पर छाया हुआ था मैं उस पर क़ाबू पा लेने की छोटी सी जीत का आनंद उठा रही थी। यह आनंद से गाने का क्षण था।
“क्या आप इसे कहने से डरते हैं, पाक मोदिन?”
“आह! मुझे इसे कैसे कहना चाहिए?”
“हम्म, अगर आप कुछ कहने से डरते हैं, तो बेहतर होगा कि आप कुछ न कहें और बस घर चले जाएँ। यह और भी अच्छा रहेगा यदि कल सुबह आप मुअज़्ज़िन के रूप में अपने काम से त्यागपत्र दे दें।
“किसी को भी उसे बर्ख़ास्त करने का अधिकार नहीं है! मैं एकमात्र व्यक्ति हूं जिसे यह बताने का अधिकार है कि उसे क्या करना है। मैं तुम्हारा भाग्य भी अपने हाथों में रखता हूँ, तुम सभी का भाग्य!” अँधेरे में से आवाज़ आयी। आवाज़ आदेशात्मक और आश्वस्त थी। यह उत्पीड़न के स्थान से आयी थी, और क्रोध और जुनून से भरी हुई थी। मैं उस आवाज़ को ऐसे जानती थी जैसे क़ब्रिस्तान में लोगों की क़ब्रों को जानती थी; यह एक सड़ रही चेतना की आवाज़ थी।
उसके पीछे ग्राम सुरक्षा इकाई के प्रमुख पाक कैरिक और कई गार्ड थे। एक तरफ झुका हुआ हैट और दो चालाक आँखें पास आते ही चमक उठीं। यह पाक लुराह, डोलिमिन बिन कास्लान, डॉक्टरेंडस था। कुछ लोग कहते थे कि पाक लुराह ने अपनी डिग्री मुक्त विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी; मुझे कभी समझ नहीं आया कि उस विश्वविद्यालय का क्या मतलब था जो “मुक्त” था। यह बात समझी जा सकती थी क्योंकि मैंने जूनियर हाई स्कूल का मात्र दूसरा वर्ष ही पूरा किया था। मुझे गर्व था कि गाँव के सभी अधिकारी हमारे घर, हमारी बदसूरत सी छोटी झोपड़ी में आने के इच्छुक थे। लेकिन क्यों? मानो उसने मेरे विचारों को पढ़ लिया हो, पाक लुराह ने बोलना शुरू किया।
“गर्व मत करो कि हम लोग यहाँ आये हैं। हम यहां इसलिए आये हैं क्योंकि हमें प्रत्येक ग्रामीण और उनकी सुरक्षा का ध्यान है। आज शाम, पंद्रह लोगों ने ग्राम प्रशासन कार्यालय में शिकायतें दर्ज करायी हैं। उनका कहना है कि तुम्हारी यहां उपस्थिति से उनके घर की शांति भंग होती है। इसलिए मैं तुम्हें सुरबाया लौटने की सलाह देता हूं। क्या तुम्हारे लिए वहां रहना बेहतर नहीं है, जहां तुमको अपने काम में अधिक स्वतंत्रता होगी?”
“मुझे नहीं पता कि इस बात से तुम्हारा क्या मतलब है, पाक लुराह। मेरा जन्म और पालन-पोषण यहीं हुआ है, मेरा परिवार इसी जगह रहता है। यहीं पर मैंने अपना पहला क़दम रखा था, यहीं पर जहाँ मेरा घर …।”
“बस, बहुत हो गया! तुमको ज्यादा सफ़ाई देने की आवश्यकता नहीं है। यह तुम्हारी अपनी सुरक्षा के लिए है। गाँव में सब जानते हैं कि तुम एक वेश्या हो। तुम्हारा काम यहां के कई परिवारों के लिए बड़े संकट का कारण है। बेहतर होगा कि तुम गांव छोड़ कर शहर चली जाओ। तुम्हारी जगह वहीं है। अपने आचरण से इस गाँव को प्रदूषित मत करो।”
“मेरा आचरण ?”
“बस, बहुत हो गया, जैसा मैंने कहा है, वह करो!”
“तुम कहते हो ‘बहुत हो गया।‘ पर मैं कहती हूं ‘नहीं।‘”
“क्या? तुम रंडी! तुम मेरी अवज्ञा करने का साहस करोगी?”
मुझे अचानक निडरता, साहस और एक विचित्र से गर्व की अनुभूति हुई जिससे मेरा सीना भर सा गया। मैं नहीं जानती कि यह सब कहाँ से आया।
“तुम्हारा ‘अवज्ञा करने का साहस‘ से क्या मतलब है?” मैंने उसका मज़ाक उड़ाते हुए पूछा। “मैं बस तुम्हारी बात को सही कर रही हूँ, पाक लुराह।”
“अशिष्ट! गिरी हुई, वेश्या!
“सच में। मैं एक वेश्या हूँ। इसमें ख़ास क्या है?”
“यह बहुत घृणित है! तुम एक शापित स्त्री हो! एक ऐसी स्त्री जो कोई लज्जा नहीं जानती।”
“घिनौनी? शापित? क्या यह सब सच है? क्या आप सभी ने वह सुना? मैं घृणित और शापित हूँ। क्या यह सचमुच सच है?”
पाक लुराह के पीछे खड़े सभी लोग चौंक गये, अवाक रह गये। रात का सन्नाटा ऐसा था मानो कोई भूत अपने शिकार का पीछा कर रहा हो। दस गहरी साँसें एक साथ निकलीं।
“तू हमारे साथ खेल रही है, कुतिया!” पाक लुराह चिल्लाया, जैसे उसे उसकी सीमा से परे धकेल दिया गया हो।
पूह ! पाक लुराह हांफने लगा था। उसके पास नफ़रत के थूक से बचने का मौक़ा नहीं था, मैंने उसके चेहरे का निशाना साधा, और उसकी उभरी हुई आंखों, उसके मगरमच्छ जैसे मुंह और उसकी गंदगी तथा उसके पाखंड को छिपाने वाली गर्वीली पगड़ी पर थूक दिया। पाक लुराह, हाजी ने बेतहाशा पलकें झपकायीं; इस समय वह बेतुकी मूर्खता का प्रतीक सा लग रहा था। मैं हँसी से चिल्ला उठी।
यहाँ तक कि रात भी झींगुरों के साथ मेरे हँसने में शामिल हो गयी थी, जब वे अपने बिलों में हँस रहे थे।
— आबिदा अल ख़लीक़ी

श्रीविलास सिंह
अनेक वर्षों से लेखन। दो कविता संग्रह, तीन संग्रह अनूदित कविताओं के, एक कहानी संग्रह, तीन संग्रह अनूदित कहानियों के, कविताएँ, कहानियाँ और देशी विदेशी साहित्य के अनुवाद और लेख विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित, साहित्य और संस्कृति की पत्रिका “परिंदे” का अवैतनिक संपादन।
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