
- July 25, 2025
- आब-ओ-हवा
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ऑटिज़म पीड़ित की कहानी पर आधारित अनुपम खेर निर्देशित फ़िल्म को मध्य प्रदेश सरकार ने टैक्स फ्री किया है। क्या कहती है यह फ़िल्म?
सुनिल शुक्ल की कलम से....
डिफ़रेंट बट नो लेस - तन्वी: दी ग्रेट
झटपट समीक्षा
फ़िल्म: तन्वी: दी ग्रेट
शैली: ड्रामा
अवधि: 2 घंटा 40 मिनट
निदेशक: अनुपम खेर
कलाकार: अनुपम खेर, शुभांगी दत्त, जैकी श्रॉफ़, पल्लवी जोशी, बमन ईरानी, अरविंद स्वामी और इयान ग्लेन
पिछले कुछ वर्षों में जहाँ सिनेमा ने सामाजिक मुद्दों को गंभीरता से उठाना शुरू किया है, वहीं अब मानसिक विविधताओं को भी संवेदनशीलता से मंच मिल रहा है। आमिर ख़ान की “सितारे ज़मीन पर” के बाद अनुपम खेर ने भी ऑटिज़्म जैसे जटिल लेकिन ज़रूरी विषय पर ध्यान केंद्रित किया है।
तन्वी: दी ग्रेट हमें एक ऐसी ऑटिस्टिक युवती की दुनिया में ले जाती है, जो अपने शहीद फ़ौजी पिता के सपने को पूरा करने के लिए सियाचिन में तिरंगे को सैल्यूट करना चाहती है। यह फ़िल्म न केवल उस जज़्बे को दिखाती है, बल्कि दर्शक को सोचने पर मजबूर भी करती है।
एक पंक्ति सार:
एक ऑटिस्टिक युवती अपने शहीद फ़ौजी पिता के सियाचिन में तिरंगे को सैल्यूट करने की ख़्वाहिश पूरी करने की ठान लेती है।
अभिनय, भाव और प्रस्तुति:
शुभांगी दत्त ने तन्वी के किरदार को बेहद ईमानदारी से निभाया है- उनका अभिनय इतना स्वाभाविक है कि आप भूल जाते हैं कि यह अभिनय है।
अनुपम खेर, जो दादा की भूमिका में हैं, ऑटिस्टिक पोती के प्रति शुरूआती खीझ और बाद में भावनात्मक बदलाव को बहुत ही संतुलित और प्रभावी तरीक़े से निभाते हैं।
जैकी श्रॉफ़, बमन ईरानी और अरविंद स्वामी जैसे अनुभवी कलाकार अपने-अपने किरदारों में पूरी तरह जमे हैं। पल्लवी जोशी का अभिनय औसत है।
फ़िल्म की लय अच्छी है लेकिन इसकी लंबाई खटकती है। अंतिम सीन में मेलोड्रामा ज़रूरत से कुछ अधिक है।
तकनीकी पक्ष:
कहानी की बुनावट, लोकेशन का चयन और सिनेमैटोग्राफ़ी विशेष उल्लेखनीय हैं। संगीत और गीत फ़िल्म की संवेदना में योगदान करते हैं।
यदि फ़िल्म की अवधि 20–30 मिनट कम होती, तो यह और प्रभावशाली बन सकती थी।
यादगार संवाद:
- “डिफ़रेंट, बट नो लेस”
- “किसी को सपने देखने से तो नहीं रोक सकते न।”
- “हैंडल या मैनेज नहीं, डिस्कवर करें।”
व्यक्तिगत टिप्पणी:
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतनी ज़रूरी फ़िल्म को थिएटर में देखने के लिए केवल तीन दर्शक थे। मध्यप्रदेश सरकार ने इसे टैक्स फ्री ज़रूर किया लेकिन काफ़ी देर से। यदि किसी फ़िल्म को टैक्स फ्री करना ही है तो रिलीज़ के साथ ही किया जाना चाहिए— न कि हिट या फ़्लॉप होने के बाद।
निष्कर्ष:
तन्वी: दी ग्रेट एक सादगी भरी, दिल को छू लेने वाली और ज़रूरी फ़िल्म है। इसे हर परिवार को मिलकर देखना चाहिए- संवेदना को समझने और साझा करने के लिए।

सुनिल शुक्ल
भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान, पुणे से प्रशिक्षित सुनिल शुक्ल एक स्वतंत्र वृत्तचित्र फ़िल्मकार हैं। मुख्यतः कला, संस्कृति और सामुदायिक विकास के मुद्दों पर काम करते हैं। साथ ही, एक सक्रिय कला-प्रवर्तक, आयोजक, वक्ता, लेखक और डिज़ाइन शिक्षक हैं। युवाओं को रचनात्मक करियर के लिए परामर्श भी देते हैं। उनका कार्यक्षेत्र शिक्षा, अभिव्यक्ति और सामाजिक सरोकारों के बीच एक सेतु निर्मित करता है।
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