
- July 13, 2025
- आब-ओ-हवा
- 4
पुरुष क्यों करते हैं बलात्कार? एक अध्ययन
सब ताक़त का खेल है। ताक़त का स्रोत है पितृसत्ता। बलात्कार के कारणों को समझना इतना आसान भी नहीं है। सामाजिक और सांस्कृतिक कारणों के साथ ही मनोवैज्ञानिक परतों तक की पड़ताल ज़रूरी हो जाती है जब यह समझना हो कि आख़िर पुरुष किसी स्त्री पर बलात्कार क्यों करते हैं। मनोवैज्ञानिक फ्रायड ने कहा था, ‘शरीर का विज्ञान ही आपकी नियति/क़िस्मत है’। तो क्या सिर्फ़ शरीर के स्तर पर ही इस सवाल का जवाब मिल सकता है? या मन और व्यवस्था में भी बलात्कार की वजहों के कुछ सूत्र छुपे हैं?
पितृसत्तात्मक समाज में लैंगिक आधार पर परवरिश में अंतर किये जाने, आचार-विचार में भेदभाव किये जाने और अवसरों में भी पक्षपात किये जाने वाले कोणों को कई बार विभिन्न संदर्भों में दोहराया जा चुका है। ‘क्या भारत में बलात्कार आम बात हो गयी है’, शीर्षक वाले लेख में पीपल्स यूनियन आफ़ सिविल लिबर्टीज़ की महासचिव कविता श्रीवास्तव कहती हैं, “यह नया भारत है जहां क़ानून का राज बुरी तरह ध्वस्त हो चुका है और यह महिलाओं के लिए सबसे ज़्यादा कठिनाइयां पैदा कर रहा है क्योंकि यह पितृसत्ता की बेधड़क पैरोकारी का समय भी है।”
इसी लेख में महिलाओं के मुद्दे से जुड़े एक एनजीओ की निदेशक जया वेलनकर बलात्कार के पीछे के तीन कारक बताती हैं। एक, महिलाएं अपनी क्षमताओं से अनेक क्षेत्रों और सार्वजनिक स्थानों पर खुलकर पुरुष आधिपत्य को चुनौती दे रही हैं; दो, ज़्यादातर पुरुषों को अपने ज़ख़्मी ईगो को हैंडल करना नहीं आता है, उस पर बेरोज़गारी जैसी समस्याओं ने हताशा और बढ़ा दी है; तीन, बलात्कार के मामलों में जिस तरह शुरूआती जांच पड़ताल में तथ्यों को नज़रअंदाज़ किया जाता है, सबूत जुटाने में तत्परता नहीं होती, तो ऐसी लचर जांचों से यह संदेश जाता ही है कि सत्ता या सियासी कनेक्शन हो तो ऐसे अपराध करने पर भी कुछ ख़ास दंड होता नहीं है।”
पुरुष बलात्कार क्यों करते हैं, यह अनुसंधान बहुत संक्षेप में संभव है भी और नहीं भी। आप अपनी समझ से किसी एक बात को ही ब्रह्म वाक्य के रूप में कह और मान सकते हैं और आप चाहें तो इसकी विवेचना पर अनेक किताबें पढ़/लिख सकते हैं, जैसे तारा कौशल ने किताब लिखी, ‘व्हाय मॅन रेप?’ (तारा इस किताब और विषय पर बातें भी करती रही हैं, इनमें से एक इस वीडियो में)।
इस विषय पर एक लेख मैंने तब लिखा था, जब हाथरस के बलात्कार मामले सुर्ख़ियों में थे। अब कोलकाता में बलात्कार की घटनाओं के चलते यह लेख फिर प्रासंगिक हो जाता है। न्यूज़18 पर छप चुके इस लेख (लिंक: https://rb.gy/chz0fm) का एक हिस्सा यहां पढ़ते हैं:
भ्रांतियां, मन की ग्रंथियां
रेप करने के कारणों के बारे में चर्चा से पहले कुछ बातें स्पष्ट हो जाना ज़रूरी है। एक तो यह कि किसी समाज या पद या वर्ग विशेष के लोगों से ही यह अपराध या मनोवृत्ति संबद्ध नहीं है। अनपढ़ से लेकर विद्वान, ग़रीब से लेकर अमीर तक और किसी भी धर्म, जाति या नस्ल के अंतर से कोई अंतर नहीं पड़ता, हर जगह यह अपराध देखा जाता है। सबसे पहले रेप से जुड़ी कुछ गलतफहमियों के बारे में जानें:
- ना का मतलब हां! मर्दों की मानसिकता यह है कि स्त्री तो ‘ना’ ही कहेगी, आपको ज़बरदस्ती ना को हां में बदलना चाहिए.
- महिलाओं को मर्द का ताक़त इस्तेमाल करना अच्छा लगता है यानी औरतें इसे मर्दानगी समझकर मर्द की इज़्ज़त करती हैं.
- जो औरतें शराब या सिगरेट पीती हैं, बाहर खुलकर घूमती हैं, उन्हें नये नये एक्सपेरिमेंट करना पसंद होता है.
- औरत अस्ल में मर्द की जायदाद होती है इसलिए वह मर्द का विरोध नहीं कर सकती.
इस तरह की और भी तमाम बातें ‘प्रो रेप’ मानसिकता के लोगों ने कई बार स्वीकारी हैं और कई शोधों में इनका ज़िक्र है। दिल्ली विश्वविद्यालय में विधि विभाग की प्राध्यापक वागेश्वरी के लेख में स्पष्ट शब्दों में कहा गया कि कई बार तो बलात्कार की शिकार लड़की या औरत को पता ही नहीं होता कि उसके साथ यह हुआ क्यों?
क्या कहता है मनोविज्ञान?
विज्ञान में इस सवाल के वैज्ञानिक जवाब की परंपरा फ्रायड के शोधों से शुरू होती है। ‘एनाटमी इज़ डेस्टिनी’ के सिद्धांत में फ्रायड की थ्योरी को समझें तो प्राकृतिक तौर पर पुरुष में शारीरिक ताकत ज़्यादा होती है इसलिए वह इस बल के प्रयोग से नहीं हिचकता। इसे फ्रायडवादियों ने ‘नेचर’ तक कहकर परिभाषित किया। दूसरी थ्योरी कहती है कि सेक्स के साथ हिंसा का स्वाभाविक रिश्ता रहा है।
मनोविज्ञान आधारित पोर्टल के एक लेख के मुताबिक़ मनोवैज्ञानिक तौर पर, सेक्स के साथ हिंसा का प्राकृतिक संबंध रहा है। भाषा में भी आप इसके उदाहरण देख सकते हैं। ‘जीतना, हारना और समर्पण कर देना या बाज़ी मारना’ जैसी शब्दावली सेक्स के साथ जुड़ती है। इसी मानसिकता का एक नतीजा गालियों में दिखता है।
सामाजिक कारण क्या हो सकते हैं?
निर्भया केस, हाथरस गैंग रेप मामला या बलात्कार के हालिया मामले हों, भारतीय संदर्भ में एक बहुत कॉमन बात यह निकलकर हर बार आती है कि लड़कियां कपड़े उत्तेजक पहनती हैं या फिर लड़कों को उकसाने वाली हरकतें करती हैं। बलात्कार को जायज़ ठहराने के लिए मर्दों की दुनिया के पास कई तरह के ‘जस्टिफ़िकेशन’ बहुत आसानी से मिलते हैं। समाज के संदर्भों में कुछ कारणों को समझना बेहद ज़रूरी है…
- महिला के साथ सेक्स उसकी और उसके परिवार की इज़्ज़त से जुड़ा है इसलिए महिला के साथ बलात्कार करने से एक पूरे परिवार से बदला लेने या सबक़ सिखाने जैसी अवधारणा जुड़ी है.
- नियंत्रण करना, अपनी मर्ज़ी से चलाना या फिर अपनी हुकूमत चलाने जैसी भावनाओं के कारण रेप वर्चस्व की लड़ाई में प्रमुख हथियार बनता है। यह गांवों की मामूली लड़ाइयों से लेकर विश्वयुद्ध तक दिखा है.
- सेक्स एजुकेशन का अभाव एक बड़ा कारण है, दूसरे शब्दों में लड़कों की परवरिश ग़लत मानसिकता के साथ किया जाना लड़कियों को एक असुरक्षित समाज देने की बड़ी वजह है.
- क़ानून और अपराध के बारे में पूरी और गंभीर समझ की कमी एक महत्वपूर्ण वजह है.
विशेषज्ञों की राय क्या है?
रेप के अपराधियों, उन अपराधियों से जुड़े लोगों के साथ लंबे समय तक बातचीत करने के बाद निकले निष्कर्षों के आधार पर किताब ‘व्हाय मॅन रेप’ कई पहलुओं को उघाड़ती है। लेखिका के हिसाब से कई मामलों में पुरुषों को पता ही नहीं था कि रेप क्या होता है! जी हां, औरत से ज़बरदस्ती करना उनके लिए इतना आसान और मामूली बात थी। यही नहीं, इस किताब में उन्होंने एक जगह दर्ज किया कि आक्रामकता से औरत को अपनी पूंजी समझना ही सच्चे प्यार की निशानी है, यह तक मानने वाले पुरुष भी हैं।
दो और मुख्य बातें किताब उद्घाटित करती है, एक प्रमुख सामाजिक कारण यह है कि जिस समाज के लोग प्रताड़ित, शोषित और कुंठित रहे हैं, अपने ग़ुस्से, खीझ और कुढ़न को निकालने के लिए वो एक रास्ता खोजते हैं और यह रेप का कारण बनता है। दूसरा प्रमुख पहलू यह भी है कि जिस समाज को आप बेसिक शिक्षा और समझ तक नहीं दे सके हैं, उसके हाथों में इंटरनेट पर तक़रीबन मुफ़्त में अनलिमिटेड पॉर्न दे दिया गया है। तो, यह ग़ुस्सा और पॉर्न जो मानसिक समीकरण बनाते हैं, समझना ज़रूरी है।
अध्ययन क्या कहते हैं?
यही नहीं, बलात्कार के आरोपियों के साथ बातचीत पर आधारित शोध करने वाली क्रिमिनोलॉजी की लेक्चरर मधुमिता पांडेय ने एक केस के बारे में बात की थी। 2010 में पांच साल की बच्ची से रेप के दोषी 23 साल के क़ैदी का कहना था कि उस भिखारन बच्ची ने, पांच साल की बच्ची ने उसे ग़लत तरह से छूकर उत्तेजित किया था। उसकी मां के चरित्र को लेकर भी उसने ठीक बातें नहीं सुनी थीं इसलिए सबक़ सिखाने के लिए रेप किया। हैरत यह कि इस तरह का ‘जस्टिफिकेशन’ कई केसों में देखा गया।
अपराधियों के मन को समझने वाली पांडेय की स्टडी में पाया गया कि रेप के अपराधियों में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता बहुत कम और अपनी शारीरिक ताक़त को लेकर एक घमंड ज़्यादा था। इस स्टडी में एक और अफ़सोसनाक बात यह निकली कि कई अपराधी रेप की ज़्यादा से ज़्यादा सज़ा यह मान बैठे थे कि उन्हें उस लड़की से शादी करने को कहा जाएगा। बहरहाल, पांडेय के शब्दों में रेप का अपराध जटिल मानसिकता वाला है, इसे हर केस में अलग सिरे से समझना होता है।
पुरुष बलात्कार क्यों करते हैं? इस प्रश्न के उत्तर की खोज की तरफ़ जाते हुए इस लेख से विमर्श के अनेक पहलू और सिरे तो खुलते ही हैं। ऐसे अध्ययन लगातार चल रहे हैं। इधर, स्थितियां लगातार चिंताजनक हैं। भारत में हर दिन क़रीब 100 महिलाएं बलात्कार की शिकार हो रही हैं। यौन अपराध अलग। ये वो मामले हैं जो क़ानून के सामने आते हैं। और विडंबना यह कि ‘नये भारत’ के दैत्याकार बैनरों के बावजूद अब भी इन मामलों में कनविक्शन रेट एक चौथाई के आसपास ही है।
इस बारे में और समझने के लिए लेख में ऊपर बताये गये अध्ययनों, पुस्तकों के अलावा आप कुछ और साहित्य भी पढ़ सकते हैं। चिंतक डॉ. केट मैन लिखित In Down Girl: The Logic of Misogyny, सूज़न ब्राउनमिलर लिखित Against Our Will, मनोवैज्ञानिक डॉ. निकलस ग्रॉथ लिखित Men Who Rape: The Psychology of the Offender… इन पुस्तकों के अलावा एक अध्ययन शरण्या बसु रॉय और सायंतन घोष ने किया है, शीर्षक है Why do men rape? Understanding the determinants of rapes in India, इसकी पीडीएफ़ भी गूगल सर्च पर आसानी से उपलब्ध है।

भवेश दिलशाद
क़ुदरत से शायर और पेशे से पत्रकार। ग़ज़ल रंग सीरीज़ में तीन संग्रह 'सियाह', 'नील' और 'सुर्ख़' प्रकाशित। रचनात्मक लेखन, संपादन, अनुवाद... में विशेष दक्षता। साहित्य की चार काव्य पुस्तकों का संपादन। पूर्व शौक़िया रंगमंच कलाकार। साहित्य एवं फ़िल्म समालोचना भी एक आयाम। वस्तुत: लेखन और कला की दुनिया का बाशिंदा। अपनी इस दुनिया के मार्फ़त एक और दुनिया को बेहतर करने के लिए बेचैन।
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सार्थक
विचारणीय आलेख।
बहुत गहराई से पड़ताल की आपने।
इस विषय पर बात होनी चाहिए और लिखा जाना चाहिए ।