एक चित्र : एकादश कविताएं

एक चित्र : एकादश कविताएं

छवि काव्य :किसी वस्तु से निकलने वाले विकिरण को किसी संवेदनशील माध्यम पर रेकार्ड करके जब कोई स्थिर छवि बनायी जाती है तो छायाचित्र बन जाता है। एक छायाचित्र भी संवेदना जागृत करने का सबब होता है। एक मौज़ूं तस्वीर न जाने कितने कितने विचारों को जन्म देती है। जो अभिव्यक्ति का एक सुन्दर और विरेचक प्रतिदर्श होता है। एक फ़ोटो/छवि में हमेशा कोई कहानी या कविता छिपी होती है… यहां प्रस्तुत है एक तस्वीर जिसे मैंने खींचा, उस पर आयीं इन कविताओं को पढ़कर हम और अधिक संवेदना समृद्ध होंगे।
– ब्रज श्रीवास्तव (संपादक-काव्य प्रस्तुति)

एक चित्र : एकादश कविताएं

1.

सर पर
एक गट्ठा नहीं
पूरा वन है
सूखती शाखों की स्मृति से भी भारी

बच्ची की पीठ पर
उग आया है पहाड़,
जिसकी तलहटी में
दबी हैं पगडंडियों की पुकारें

उसकी आँखें
धूप से पकी हुईं नहीं
बल्कि उस राख की तरह हैं
जो हर सुबह जलती हैं
बिना आग के

पाँव के तलवे
धरती की धड़कन सुनते हैं
मां की लोरी उलझ उलझ जाती है
इसी जलावन में

उसके बालों में अटकी
कुछ टहनियाँ
उस सपने की अधूरी स्केच हैं
जो कभी झूलाघर तक नहीं पहुँचा

यह बच्ची
शब्दों की दुनिया में
एक विराम की तरह मौन है
पर उसकी छाया में
पूरी सभ्यता जल रही है।

—दीप्ति कुशवाहा

2. जीवन का चोला

क्या हुआ जो
मैं लड़की हूँ
जंगल जंगल घूम रही हूँ
ये सूखी लकड़ियां
बीन रही हूं

ये लकड़ियाँ सिर्फ़ लकड़ियां ही नहीं
मुट्ठी में इनकी
बन्द आग है
जिन्हें सिर पर धर मैं आग लिये चलती हूँ

अनथके चलती रहती हूँ
बस ! जानती हूँ इतना जठराग्नि शीतल करने को
चलना बहुत ज़रूरी है
जंगली लोगों से मुठभेड़ करना ज़रूरी है

इसलिए सिर पर धारे ये सूखी लकड़ियां नहीं
एक बंद आग का गोला है
जो फिलवक्त
हर लड़की के
जीवन का चोला है

—अरुण सातले

3.

ये गट्ठर मात्र लकड़ी का गट्ठर नहीं
ये लड़की मात्र मजबूर लड़की नहीं

एक दिन बन जाएंगी ये लकड़ियां बंदूक का हत्था
और लड़की के हाथ में होगा वो हत्था
फिर कोई नहीं रंग पाएगा पहलगांव को लाल रंग से

—मधु सक्सेना

4. जीवन की विवशता

है विवश वो नन्हीं बाला
शिक्षा से दूर तक नहीं है नाता

पेट की आग जो है बुझाना
मां बैठी है, बाट जोहती

लकड़ी आवे तो रोटी बनेगी
लड़की नहीं लकड़ी है ज़रूरी

रोटी लेकर पिता को जाना
भाई को भी तो स्कूल पहुंचना

बुरी नज़रों से ख़ुद को बचाती
पिता, भाई के समय की क़ीमत समझती

ज़िम्मेदारी घर की, अपनी समझकर
स्कूल जाती बालाओं से नज़र चुराती

मां की उलझन वो ही समझती
मुंह अंधेरे जलावन लेने निकलती

सपने तो वो भी देखती है
पर उन्हें पंख देने से डरती है

—जया श्रीवास्तव

5.

पढ़ने की उम्र पर
सिर पर है ज़िम्मेदारी
छोटी सी उम्र में
गट्ठर लिये है भारी

गांव की लड़की है
दुर्गम राहों पर चलती है
जंगल से चुन-चुन कर
लकड़ियां बीनती है

जाने कौन कहता है
लड़की पढ़ेगी तो बढ़ेगी
बेटी लकड़ी लाएगी तो
चूल्हे पर हांडी चढ़ेगी

बड़ी-बड़ी बातों के बीच
जाने कैसे छूट जाती है
तस्वीर आज भी गांव की
वैसी ही नज़र आती है

—रीमा

6. पेट की ख़ातिर

मुनिया स्कूल गयी कि नहीं
चिंता नहीं किसी को
जठराग्नि को शांत करने
पहले ज़रूरी है
ईंधन का इंतज़ाम

तीन फुटिया मुनिया के सर पर
छह फुटिया लकड़ी का गट्ठर
कमाल है! इनकी जिजिविषा

उज्ज्वला योजना न सही
बिजली तो होनी चाहिए गांव में
और शिक्षा…

नहीं पंहुची है अभी
अंतिम व्यक्ति तक
विकास की सड़क

यक्ष प्रश्न रोटी का है
‘पहले पेट पूजा
फिर काम कोई दूजा’

हथियार डाल देते हैं
भूख के आगे
वो मुनिया का बचपन हो
या चुनिया का।

—ख़ुदेजा खान

7.

नित दिन सधे हाथों
सूखी लकड़ी की तरह
बीनती- बांधती- ढोहती
शुष्क हुए सपनों को…
मर्यादा के चूल्हे में
बिखरते, जलते और
धूं-धूं करते उड़ जाते…

—बबीता गुप्ता

8.

पकाया जाना है भात,
या रोटी सेकी जानी है
पहले
चूल्हा मांगता है
लकड़ी
जैसे कि हवन में समिधाएँ
घी और हवन सामग्री
अग्नि देवता
प्रफुल्लित होते हैं
लकड़ियां पाकर
और उनके लिए लकड़ियाँ
करती हैं व्यवस्था

एक आग बुझाने के लिए
जलाना होती हैं
लकड़ियां

जवाबदारी लड़कियों की है
लकड़ियां लाने की।

—सुधीर देशपांडे

9. जवान औरत

सड़क किनारे
पीठ पर
घास का गट्ठर लादे
देखी मैंने पहाड़ी जवान औरत
उस उतार चढ़ाव वाले रास्ते को
जिसे वह तय कर चुकी थी
और जिसे तय करना अभी बाक़ी था
मैं नहीं देख सका

उस मरियल सी गाय के लिए
जिसे वह घास खिलाकर
अपनी सुबह से शाम तक की
मेहनत सार्थक करेगी
मैं नहीं सोच सका !

ऐसे सैकड़ों प्रश्नों को
अनदेखा कर
देखी मैंने
पहाड़ी जवान औरत।

—विजय पंजवानी

10. लकड़ी की खोज

एक चुटकी सिंदूर की क़ीमत तुम क्या जानो
परिचर्चा में हो रही थी चर्चा

अनायास, एक फ़ोटोग्राफ़र ने
लकड़ियों की गठरी की फ़ोटो
साझा कर दी
अंतरिक्षविदों के बीच
जो खोजी मिशन में संलग्न थे
काफ़ी समय से

शक्तिशाली लैंसों से
तलाश रहे थे विराट् ब्रह्माण्ड को
अदद ग्रिड पैटर्न में
कर रहे थे कांबिंग ऑपरेशन

सोना मिला
चांदी मिला
हाइड्रोजन हीलियम आदि
अन्य तत्वों संग
भिन्न यौगिक मिले

पर,
निराश हो गये
हताश हो गये
थक कर
चूर-चूर हो गये

पर लकड़ी न मिली
आकाशगंगाओं में
ब्लैकहोल्स में
डार्क मैटर और डार्क एनर्जी से आच्छादित
पूरे ब्रह्माण्ड में…

केवल पृथ्वी को छोड़कर

हर हमेश, न कैमरा रहेगा
न लड़की रहेगी
न कैमरामैन की टिपिकल वामी भावना रहेगी

रहेगी तो भावनाशून्य लकड़ी..!!

—अजय कुमार श्रीवास्तव

11.

मुझे मजबूर मत समझो
पढ़ने की ख़ातिर
करती हूँ मैं हाड़-तोड़ श्रम
माना कि सरकारी स्कूल में फ़ीस नहीं लगती
पर
किताबों का ख़र्चा,
अन्य ज़रूरतों के लिए
मेहनत तो करनी ही पड़ेगी
पढ़ने-लिखने से मुझे
कौन रोक सकता है?
पढ़-लिखकर एक बार बड़ा आदमी बन जाऊँ…
फिर तो बस आराम-ही-आराम

—गूँज

ब्रज श्रीवास्तव

ब्रज श्रीवास्तव

कोई संपादक समकालीन काव्य परिदृश्य में एक युवा स्वर कहता है तो कोई स्थापित कवि। ब्रज कवि होने के साथ ख़ुद एक संपादक भी हैं, 'साहित्य की बात' नामक समूह के संचालक भी और राष्ट्रीय स्तर के साहित्यिक आयोजनों के सूत्रधार भी। उनके आधा दर्जन कविता संग्रह आ चुके हैं और इतने ही संकलनों का संपादन भी वह कर चुके हैं। गायन, चित्र, पोस्टर आदि सृजन भी उनके कला व्यक्तित्व के आयाम हैं।

16 comments on “एक चित्र : एकादश कविताएं

  1. सिर पर बोझ, पर न टूटे हौसला

    सिर पर लकड़ियों का भारी बोझ लिए,
    छोटी सी लड़की, बड़ी सी तकलीफ लिए।
    नन्हे कदमों से वो पहाड़ चढ़ती,
    पर आँखों में सपनों की चमक चमकती।

    हर पत्थर उसकी राह में कांटा सा,
    पर वह नहीं रुकी, न रोई कभी हँसते हुए।
    माँ की दुआओं और खुद की हिम्मत से,
    बनाती है वो अपनी दुनिया सच्चे दिल से।

    कितनी बार गिरती, फिर संभल जाती,
    दर्द को छुपा के फिर मुस्कुराती।
    जीवन की इस जंग में अकेली सही,
    पर उम्मीद की लौ कभी बुझती नहीं।

    ये तस्वीर नहीं बस कहानी है,
    उन लाखों बच्चों की, जो जीवन से लड़ते हैं।
    सपनों के पीछे दौड़ते हैं हर दिन,
    पर समाज के बोझ को अपने कंधों पर ढोते हैं।

    -नित्यानंद त्रिपाठी

  2. सभी कविताएँ बहुत सुन्दर। चित्र एक,विचार अनेक। सबको बधाई बेहतरीन प्रयास है यह आप का।

  3. “एक चित्र:एकादश कविताएं” मुझे बहुत पसंद आया । एक चित्र पर अनेक विद्वान कवियों के विचार एक ही जगह पढ़ने को मिले।
    ब्रज श्रीवास्तव जी की इस कार्य के लिए प्रशंसा करता हूं।

  4. ब्रज भाई की बहुमुखी प्रतिभा किसी परिचय की मोहताज नहीं है..वे अनेक विधाओं में साधिकार
    सक्रिय हैं और निरंतर हर विधा में अपना श्रेष्ठ प्रदान कर रहे हैं..यहां प्रस्तुत कविताओं का संपादन भी उसी का एक जीवंत प्रमाण है..बधाई भाई ब्रज!!

  5. सभी कविताएँ अपने कंटेंट और शिल्प में बेमिसाल हैं सम्पादक ब्रज श्रीवास्तव जी को हार्दिक बधाई

  6. सभी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर और सटीक हैं. अर्थपूर्ण हैं. चित्रानुसार, भावनाओं को उकेरा है. सो अत्यंत सहज़ और सरल बना पड़ी हैं.. आप सभी विद्वोजनों को एवं संपादक श्री ब्रज जी को अनेक शुभकामनायें एवं साधुवाद

  7. सभी रचनाएँ बहुत ही सुन्दर और सटीक हैं. अर्थपूर्ण हैं. चित्रानुसार, भावनाओं को उकेरा है. सो अत्यंत सहज़ और सरल बना पड़ी हैं.. आप सभी विद्वोजनों को एवं संपादक श्री ब्रज जी को अनेक शुभकामनायें एवं साधुवाद

  8. चित्र एक,,,एकादश कविताएं,,किसी भी परफॉर्मेंस आर्ट की यह खूबी होती है कि जब हम उस कला का शाब्दिक विश्लेषण/व्याख्या करते हैं तो हमें उस चित्र/पेंटिंग में कईं विचार या भाव दिखाई देते हैं।हर दर्शक/रचनाकार अपने भाव बोध से अपने विचारों से अपने मन की बात साझा करते हैं।ठीक उसी तरह इस चित्र को देखकर जितनी कविताएं लिखी गई,वे सब बहुअर्थी होकर अपने विचार हम तक साझा कर रही हैं।ब्रज श्रीवास्तव की यह चित्र श्रृंखला जिस पर ध्यान केंद्रित कर कविता लिखना एक अनूठी पहल है।इस हेतु सा की बा समूह को बधाई साथ ही एकादश कविताओं को प्रकाशित कर दिलशाद जी ने उसे एक बेहतरीन संकलन का आकार दे दिया इसके लिए उन्हें साधुवाद,,, अरुण सातले खंडवा

  9. इस तरह के प्रयोग के लिए साधुवाद

    चित्रों पर कविता लिखना नए सृजन को जन्म देगा साथ ही साथ लेखन के लिए नया रास्ता बनाएगा.

    बहुत सुंदर संयोजन है
    सभी रचनाकारों को बधाई

    ब्रज भाई को प्रणाम

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