
- June 15, 2025
- आब-ओ-हवा
- 0
मुक्त सिनेमा बनाम ग़ुलाम सेंसर बोर्ड
क़ैद में एक लड़की से पुलिस की सख़्त पूछताछ, शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना, पूछताछ में पुलिस के सवाल बौने और लड़की के जवाब उतने ही गंभीर। लड़की पर शायद ‘देशद्रोह’ का केस है। लड़की बड़े मुद्दे उठा रही है, तानाशाह और आज़ादी जैसे शब्द उसकी ज़ुबान पर हैं। हैरान जांच अफ़सर कह रहे हैं, इतने मुकम्मल और तेवर वाले जवाब एक सामान्य लड़की कैसे दे सकती है! ये ट्रेंड है! जांच एजेंसी जब कहती है, तुम्हारा कम्युनिस्टों से संबंध है, तो लड़की का सीधा सा जवाब है- आप प्रश्न करने वाले को भारतीय नहीं मान पा रहे हैं जो किसी और ख़ाके में फ़िट करना चाहते हैं!
‘मानुषी’ का ट्रेलर है यह। अपने समय के सवालों को केंद्र में रखते, एक विचारोत्तेजक सिनेमा की झलक दिखायी देती है। इस फ़िल्म को सेंसर बोर्ड ने रोक दिया है। प्रमाणपत्र देने में अवरोध खड़ा कर दिया है। लेकिन क्यों? इसका जवाब भी नहीं दिया। उच्च न्यायालय ने बोर्ड को लताड़ते हुए कहा यह क्या रवैया है? आप ऐसे-कैसे कोई वजह बताये बग़ैर किसी फ़िल्म को रोक सकते हैं? आख़िरकार फ़िल्म बनाना अभिव्यक्ति और मत रखने की आज़ादी है।
पिछले 8 साल से प्रसून जोशी केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड के प्रमुख हैं। उनके कार्यकाल में बोर्ड का रवैया बेहद पक्षपातपूर्ण दिखा है। सांप्रदायिक नफ़रत फैलाने वाले सिनेमा को एक तरफ़ खुली छूट मिली है तो समसामयिक प्रश्नों को उठाने वाले सिनेमा के पर कतरे गये हैं। जैसे किसी गाइडलाइन के तहत बोर्ड चल रहा हो! कुछ उदाहरण हैरतनाक रहे हैं।
भारत के बाहर दाद पा चुकी ‘संतोष’ की बात हो या धड़क-2 की, बोर्ड के ऐतराज़ मनमाने दिखे हैं। ‘नासिर’ का ट्रेलर लॉन्च हुआ था, लेकिन बोर्ड के ऐतराज़ों के बाद वह ग़ायब ही हो गयी। बोर्ड की ज़्यादतियों से ग़ायब हुई फ़िल्मों में ‘आधार’ का नाम भी है। ऐसी अनेक फ़िल्में हैं, जिन्हें सेंसरशिप की कैंची ने लहूलुहान कर दिया। इस सिलसिले में ‘पंजाब-95’ अहम है।
उग्रवाद के समय के पंजाब में हुई नागरिक हत्याओं की जांच हुई थी, उस पर आधारित है ‘पंजाब-95’। बोर्ड ने सवा सौ कट लगाने को कहा। इतना परेशान किया कि फ़िल्मकारों ने फ़िल्म की रिलीज़ का इरादा ही छोड़ दिया जबकि भारत के बाहर इसे प्रशंसा मिली। एना एम.एम. के लेख में ऐसी फ़िल्मों पर सेंसर के रवैये की विस्तृत विवेचना की गयी है। चिंताजनक पहलू यह बताया गया कि फ़िल्मकार, उद्योग, सिनेमाघरों, ओटीटी हर तरफ़ एक अजीब-सा डर फैला हुआ है। एक अजीब-सा दबाव है।
अनुभव सिन्हा के शब्द हैं: “360 डिग्री सेंसरशिप का नतीजा यह है कि फ़िल्म निर्माता अब रचनात्मक प्रक्रिया में पीछे हट रहे हैं।” “अदृश्य का डर” बताकर अनुराग कश्यप कहते हैं: “सेंसर कमेटियों के लोग भी डरते हैं कि उनके द्वारा पास कोई फ़िल्म किसी को नाराज़ न कर दे क्योंकि आजकल कोई भी किसी भी बात से नाराज़ हो रहा है।”
फ़िल्म उद्योग पर इस तरह के दबाव संबंधी शोध को लेकर जब एना ने बात की तो कई ने अपनी बात कहने के पहले अपना नाम या पहचान ज़ाहिर न करने की शर्त रखी। उच्च न्यायालय तभी अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा कर सकता है जब उसके सामने क़ानूनी प्रक्रिया के तहत कोई मामला आये। लेकिन नेपथ्य में जो एक पूरा माहौल रच दिया गया है, उसमें सिनेमा निर्माण की प्रक्रिया में अभिव्यक्ति की आज़ादी की गुंजाइश ही कितनी रह गयी है? इस स्थिति को बदलने के लिए न्यायालय की भूमिका नहीं हो सकती?
इस माहौल के बावजूद कुछ फ़िल्में अगर दिलेरी से बन रही हैं तो परदे तक पहुंचें कैसे? बीच में ‘प्रधानमंत्री की फ़कीरी’ के क़ायल प्रसून जोशी का सेंसर बोर्ड, छप्पन इंच की छाती लिये खड़ा है। संविधान, न्यायालय, लोकतंत्र जैसे सशक्त विचारों को मटियामेट किये जाने की प्रक्रिया में जो थोड़ी-बहुत उम्मीद कहीं बची हुई है, उसे सेंसर से बचाने के उपाय खोजने होंगे। क्या कला अपना रास्ता ख़ुद बना पाएगी? अनुराग की बात में बारीक़ इशारा है, ‘ये सब दबाव कहीं अदृश्य तो नहीं? झूठा, खोखला तो नहीं है?’ एक पत्थर तबीयत से उछाला जाये तो? निडर कलाकारों के सुर में सुर मिलाओ दोस्तो, बोलो कि हम बोलेंगे।
आपका
भवेश दिलशाद

भवेश दिलशाद
क़ुदरत से शायर और पेशे से पत्रकार। ग़ज़ल रंग सीरीज़ में तीन संग्रह 'सियाह', 'नील' और 'सुर्ख़' प्रकाशित। रचनात्मक लेखन, संपादन, अनुवाद... में विशेष दक्षता। साहित्य की चार काव्य पुस्तकों का संपादन। पूर्व शौक़िया रंगमंच कलाकार। साहित्य एवं फ़िल्म समालोचना भी एक आयाम। वस्तुत: लेखन और कला की दुनिया का बाशिंदा। अपनी इस दुनिया के मार्फ़त एक और दुनिया को बेहतर करने के लिए बेचैन।
Share this:
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Reddit (Opens in new window) Reddit
- Click to share on Pinterest (Opens in new window) Pinterest
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Bluesky (Opens in new window) Bluesky