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ग़ज़ल तब

औरों के लिए जीना अपने लिए मर जाना
यूं टूटते रहने से बेहतर है बिखर जाना

कश्ती को सिखायी हैं मल्लाह ने दो बातें
तूफ़ां से गुज़र जाना साहिल पे ठहर जाना

सब कर्ज़ हमारे हैं सब फ़र्ज़ हमारे हैं
मौजों से लड़ेंगे हम तुम पार उतर जाना

फूलों ने महकने की कैसी ये सज़ा पायी
हर सुब्ह संवर जाना हर शाम बिखर जाना

मासूम परिंदों को आता ही नहीं नक़हत
आग़ाज़ से घबराना अंजाम से डर जाना

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डॉ. नसीम निक़हत

शायर मुनव्वर राना ने सदी के बेहतरीन शायरों में नसीम निक़हत का नाम शुमार करते हुए उन्हें पद्मश्री से नवाज़े जाने की मांग की थी। 1958 में बाराबंकी में जन्मीं और लखनउ में पली बढ़ीं नसीम उर्दू शायरी का प्रमुख स्त्री स्वर रहीं। कई किताबों में उनकी शायरी संकलित हुई और मुशायरों के सिलसिले में अनेक देशों की यात्राएं उन्होंने कीं। दो स्ट्रोक के बाद 2023 में जब उन्होंने अंतिम सांस ली तो उनके आख़िरी शब्द थे, 'ख़ुदा हाफ़िज़'।

1 comment on “ग़ज़ल तब

  1. औरों के लिए जीना अपने लिए मर जाना
    यूं टूटते रहने से बेहतर है बिखर जाना

    कश्ती को सिखायी हैं मल्लाह ने दो बातें
    तूफ़ां से गुज़र जाना साहिल पे ठहर जाना
    क्या कहने, बहुत खूब

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