पुरानी कश्ती को पार ले कर फ़क़त हमारा हुनर गया है नये खिवैये कहीं न समझें नदी का पानी उतर गया है तुम होशमंदी के उंचे दावे किसी मुनासिब जगह पे करते ये मयक़दा है यहां से कोई कहीं गया बेख़बर गया है हुआ सफ़र में यही तजुर्बा वो रेल का हो या ज़िंदगी का अगर मिला भी हसीन मंज़र पलक झपकते गुज़र गया है न ख़्वाब बाक़ी हैं मंज़िलों के न जानकारी है रहगुज़र की फ़कीर मन तो बुलंदियों पर ठहर गया सो ठहर गया है जवान आंखों में कितने सपने सुनहरी धज के दिखायी देते सुबह के सूरज का अक्स जैसे नदी के जल में बिखर गया है उदास चेहरे की झुर्रियों को बरसती आंखें सुना रही थीं हमारे सपने को सच बनाने जिगर का टुकड़ा शहर गया है उदय के बारे में कुछ न पूछो पुरानी मस्ती अभी जवां है कि बज़्मे यारां में शब गुज़ारी पता नहीं अब किधर गया है
उदय प्रताप सिंह
राजनेता के रूप में राज्यभा व लोकसभा सदस्य रहे और साहित्यकार के रूप में काव्यजगत में प्रसिद्ध। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के प्रमुख रहे और साहित्य शिरोमणि पुरस्कार से नवाज़े गये। अनेक मुशायरों और कवि सम्मेलनों के मंच के लोकप्रिय कवि।