मेराज अहमद मेराज, meraj ahmed

इंद्रधनुष-1 : मेराज अहमद मेराज

 

(उर्दू शायरी की दुनिया में मेराज अहमद मेराज का नाम अदब से लिया जाता है। दर्जन भर से ज़ियादा किताबें शाए हो चुकी हैं और सात बार पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी के पुरस्कार से आपको नवाज़ा गया है। यही नहीं, आप बंगाल में उस्ताद शायरों की फ़ेहरिस्त में शुमार हैं। साहिबे-दीवान मेराज के कलाम से गुज़रते हुए पहली नज़र में महसूस होता है कि उनकी एक आंख रवायती शायरी पर है तो दूसरी जदीद शायरी पर। दोनों ही क़िस्म के मफ़हूम उनके यहां सलीक़े से बरते जाते हैं। इंद्रधनुष आब-ओ-हवा काव्य खंड की एक सीरीज़ है, जिसमें हम एक शायर की सात रचनाओं को यहां प्रस्तुत करेंगे। पहली कड़ी में मेराज की ग़ज़लें पेश-ए-ख़िदमत… प्रस्तुति – ग़ज़ाला तबस्सुम)

मेराज अहमद मेराज, meraj ahmed

मेराज अहमद मेराज की सात ग़ज़लें

 

वतन का मसअला संगीन हो न जाये कहीं
हमारा मुल्क फ़िलिस्तीन हो न जाये कहीं

जिसे बनाये हुए हैं हम अपनी सजदागाह
वो अर्ज़ ख़ून से रंगीन हो न जाये कहीं

कुछ इस क़दर है फ़िज़ाओं में नफ़रतों का ज़ह्र
हर आदमी ही दयाहीन हो न जाये कहीं

ख़ुदा-ए-पाक तू क़ादिर है तू हिफाज़त कर
जहां से ख़त्म तेरा दीन हो न जाये कहीं

हमारे शेरों के क़रअत के बाद ऐ मेराज
जो बादशा है वो ग़मगीन हो न जाये कहीं

————*————

घटा बरस गयी है आब-आब हो गये हैं
हमारे गांव के रस्ते ख़राब हो गये हैं

जिधर भी देखिए ज़ुल्मो-सितम का मंज़र है
वो रस्मो-राह के नज़ारे ख़्वाब हो गये हैं

किसी छिपे हुए सूरज से नूर ले-लेकर
चिराग़ भी न थे जो माहताब हो गये हैं

जो एक शेर भी कहने में हिचकिचाते थे
वो शाइरी में अब अहले-किताब हो गये हैं

हमारे मसअले ही हो गये हैं हल जैसे
जो कल सवाल थे वो अब जवाब हो गये हैं

रवारवी में ग़ज़ल हो गयी मेरी मेराज
तमाम शेर मगर लाजवाब हो गये हैं

————*————

दुनिया को मेरी ज़ात से तकलीफ़ न पहुंचे
बोलूं तो मेरी बात से तकलीफ़ न पहुंचे

ये सोच के हम हार गये जीती हुई जंग
दुश्मन को कहीं मात से तकलीफ़ न पहुंचे

इस शह्र में मौजूद हैं मिट्टी के मकां भी
बादल तेरी सौग़ात से तकलीफ़ न पहुंचे

यूं मैंने बयां कर दिये अहवाले-दिलो-जां
तुमको मेरे हालात से तकलीफ़ न पहुंचे

ऐ दोस्त सवालात किये तुमने बहुत ख़ूब
अब मेरे जवाबात से तकलीफ़ न पहुंचे

मेराज ने अशआर सुनाये तुम्हें लेकिन
फ़रसूद: ख़यालात से तकलीफ़ न पहुंचे

————*————

शायद कि कोई शेर निकल आये ग़ज़ल से
तशबीह ज़माना दे जिसे ताजमहल से

मिल जाये मुझे गौहरे-अशआर ख़ुदाया
दरिया-ए-ख़यालात में ग़रक़ाब हूं कल से

तारीख़ के औराक़ तुम्हें देंगे गवाही
इंसान ही इंसान का दुश्मन है अज़ल से

नाकामियों के मुंह कभी देखोगे नहीं तुम
तक़दीर बनाओगे अगर जहद-व-अमल से

आते हैं रहेरास्त पे क्या सच में हम इंसान
होने को तो होते हैं बहुत शह्र में जलसे

मेराज मेरे दिल पे नहीं बोझ कोई शौक़
डाली तो शिकायत नहीं करती किसी फल से

————*————

ख़यालो-ख़्वाब का सारा जहान टूट गया
लगा जो संगे-हक़ीक़त गुमान टूट गया

अभी हयात का इरफ़ान होने वाला था
किसी के पांव की आहट से ध्यान टूट गया

नहीं संभल सकी हमसे निशानी-ए-तहज़ीब
चिलमची टूट गयी पानदान टूट गया

मैं जब था आईना महफूज़ था ज़माने में
अजीब बात है बनकर चट्टान टूट गया

ख़ुशी की बात कि ख़ुशबू बिखर गयी हरसू
मगर ये दुख है नया इत्रदान टूट गया

रवां थी नाव मेरी जिसके दम से ऐ मेराज
उसी हवा से मेरा बादबान टूट गया

————*————

ज़ू-फ़िशानी का हवाला नहीं होने वाला
शब की जुगनू से उजाला नहीं होने वाला

लाख बरसात के पानी से न क्यों भर जाये
रश्के-दरिया कोई नाला नहीं होने वाला

एक जगह जमा नहीं होंगे अगर सारे चिराग़
इस अंधेरे में उजाला नहीं होने वाला

जो भी कहना था ग़ज़ल में मेरी वाज़ेअ है वो
मेरा हर शेर मक़ाला नहीं होने वाला

ये मुहब्बत ही तेरी मुझको झुका देती है
सरनिगूं वरना हिमाला नहीं होने वाला

किसी हिकमत किसी तदबीर का दामन थामो
ज़ेर यूं सामने वाला नहीं होने वाला

इन्किसारी मेरी फ़ितरत से जुड़ी है मेराज
कि अलग चांद से हाला नहीं होने वाला

————*————

चीख उठती है डर रात के सन्नाटे में
कौन है महवे-सफ़र रात के सन्नाटे में

खिड़कियां सोयी हुई हैं मेरे हमसायों की
रो रहा है मेरा घर रात के सन्नाटे में

थक के फुटपाथ पे सोये हैं अभी कुछ मज़दूर
ऐ सड़क शोर न कर रात के सन्नाटे में

मेरी खिड़की नयी तस्वीरें दिखा देती है
जाग उठता हूं अगर रात के सन्नाटे में

दिन में हर मोड़ पे इक हश्र बपा रहता है
कितना गुमसुम है नगर रात के सन्नाटे में

दिन में मेराज मेरे दिल को सुकूं मिलता है
खु़द से डरता हूं मगर रात के सन्नाटे में

6 comments on “इंद्रधनुष-1 : मेराज अहमद मेराज

  1. आब ओ हवा का बेहद शुक्रिया जो मेराज़ साहब की ग़ज़लों से रु ब रु होने का मौक़ा मिला। सातों ग़ज़लें बेहद खूबसूरत और सामयिक हैं।

  2. बहुत सुंदर ग़ज़लें हैं वाह, बार बार पढ़ने को जी चाहता है, मेराज अहमद मेराज साहब को मुबारकबाद

  3. ماشاء اللّه

    کیا کہنے ہیں وااااہ ہر غزل بے مثال و عمدہ ہے معراج سر کی جتنی بھی تعریف کروں کم ہے

    بالخصوص غزالہ آپی کا بے حد شکریہ جن کی وجہ سے آب و ہوا میں اتنی خوبصورت غزل پڑھنے کا موقع ملا

  4. बेहतरीन इंतिख़ाब
    शानदार शायरी
    दिली मुबारकबाद

  5. गांव के रस्ते न खराब हो जाएं,,,सभी ग़ज़लें एक से बढ़कर एक। शानदार प्रस्तुति

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *