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कहार कहो डोला उतारे कहां...

             फ़िल्मी दुनिया के आकाश में जाने कितने सितारे आते और चले जाते हैं। यूं कहें कि कम रौशनी वाले तारे न हों तो अकेले चन्द्रमा के होने से आसमान कितना सूना हो। नासिर ख़ान भी इस फ़िल्मी दुनिया में एक ऐसा ही सितारा थे।

ब्रिटिश हुकूमत के समय पेशावर, ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत की राजधानी था। इस शहर को फूलों का शहर भी कहा जाता था। सैन्य छावनी होने के बावजूद एक प्रमुख व्यापारिक व सांस्कृतिक केंद्र, इसी शहर के अफ़गान परिवार में 11 जनवरी 1924 को नासिर खान का जन्म 6 भाई 6 बहनों के परिवार में हुआ। नासिर, यूसुफ़ ख़ान यानी दिलीप कुमार के छोटे भाई थे।

नासिर के लिए फ़िल्मी दुनिया अजनबी नहीं थी। पिता सरवर ख़ान मुंबई व पुणे में फल व्यापारी थे तथा बड़े भाई उनसे पहले ही बॉम्बे टॉकीज़ की मालिक देविका रानी की बदौलत इस दुनिया में आ चुके थे। नासिर को अपनी प्रतिभा पर भरोसा था। उनकी पहली फ़िल्म थी “मज़दूर”, जिसमें उन्होंने अपनी अदायगी के गहरे अंदाज़ व सादगी से दर्शकों का दिल जीतने में कामयाबी हासिल की। इसी बीच 1947 के भारत पाकिस्तान विभाजन के कारण नासिर पाकिस्तान चले गये और वहां फ़िल्म “तेरी याद” में अभिनय किया। यह चली तो नहीं पर इसने पाकिस्तान की पहली फ़िल्म होने का इतिहास क़ायम किया। उनकी अगली फ़िल्म भी नहीं चली, लिहाज़ा वे भारत लौट आये।

नासिर का भारत लौटना फ़ायदेमंद रहा। आते ही उन्होंने “नगीना”, “आगोश”, “शीशम” जैसी कामयाब फ़िल्मों में नूतन के साथ काम किया। नासिर के अभिनय की सादगी और नूतन की मासूमियत से भरी दिलकश अदा ने एक बड़े दर्शक वर्ग में दोनों के प्रति अलग अनुराग भर दिया।लेकिन नासिर की अदाकारी का नया रंग फ़िल्म “गंगा जमुना” में दर्शकों को देखने को मिला। नितिन बोस के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म में बड़े भाई दिलीप कुमार डाकू बने और छोटे भाई नासिर इंस्पेक्टर। त्याग, प्रेम की उच्चतम भाव-भूमि पर भारतीय ग्रामीण परिवेश में रची – बसी इस फ़िल्म ने न केवल दिलीप कुमार बल्कि नासिर को हमेशा के लिए भारतीय दर्शकों के दिलों में बसा दिया। बाद के वर्षों में इसी फ़िल्म की रीमिक्स के रूप में अमिताभ-शशि कपूर अभिनीत फ़िल्म दीवार आयी, उसे भी दर्शकों ने ख़ूब सराहा।

हालांकि नासिर का जीवन तमाम उतार चढ़ाव से भरा रहा था। जीवन में बहुत कुछ मिलने के बाद भी कुछ कमी बनी ही रही। नासिर की पहली शादी मशहूर फ़िल्म निर्माता नज़ीर अहमद खान की बेटी सुरैया नज़ीर से हुई, परन्तु यह शादी ज़्यादा दिन नहीं चली और नासिर ने बेगम पारा, जिन्हें फ़िल्मों में अपनी बिंदास छवि के लिए जाना जाता था, से दूसरी शादी “आदमी” फ़िल्म की रिलीज़ के बाद की थी।

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बाद के वर्षों में नासिर एक अजीब बीमारी से घिर गये थे, जिससे उनके सिर के बाल नहीं रहे। लिहाज़ा वे कुछ दिन फ़िल्मी दुनिया से दूर अपने ख़ानदानी व्यापार में लग गये। उन्होंने कुछ दिन पोल्ट्री फ़ार्म भी चलाया। नासिर ने कुल 29 फ़िल्मों में काम किया और अपनी आखिरी फ़िल्म “वैराग” के रिलीज़ होने पहले ही 50 साल की कमउम्र में ही दुनिया को अलविदा कह गये। फ़िल्मी दुनिया के आकाश का यह सितारा अपनी अलहदा पहचान, अपनी दमदार अदा व सादगी के लिए फ़िल्म प्रेमियों के दिलों में सदा जगमगाता रहेगा।

Mithilesh Rai

मिथलेश रॉय

पेशे से शिक्षक, प्रवृत्ति से कवि, लेखक मिथिलेश रॉय पांच साझा कविता संग्रहों में संकलित हैं और चार लघुकथा संग्रह प्रकाशित। 'साहित्य की बात' मंच, विदिशा से श्रीमती गायत्री देवी अग्रवाल पुरस्कार 2024 से सम्मानित। साथ ही, साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका "वनप्रिया" के संपादक।

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