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लैंडस्केप का अद्भुत चितेरा हरिकृष्ण

 

अचेतन स्मृति और अवचेतन कलाक्रम का संगम है, हरिकृष्ण कदम का कला संसार… हरिकृष्ण कदम (25.01.1978-06.06.2025) के दुनिया से चले जाने की दुखद सूचना से ग्वालियर के कलाकार और मैं व्यक्तिगत रूप से आहत हूँ। उनके निवास पर उनकी अंतिम एकल प्रदर्शनी के चित्रों का पूर्वालोकन की स्मृति मेरी स्थाई धरोहर है। मैंने उस समय जो टिप्पणी लिखी थी, वह जस की तस उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत है।

स्मृति, परिदृश्य चित्रण का चौथा आयाम होती है। कलाकार की अचेतन स्मृति और अवचेतन कला कर्म का अद्भुत संगम देखने को मिलता है हरिकृष्ण कदम की पेंटिंग्स में। पेंटिंग करते हुए रंग और ब्रश से कैनवास पर उतरती क़ुदरत के परिदृश्य ऐसे लगते हैं जैसे हरिकृष्ण कदम के इशारों पर कदमताल करते हुए चले आ रहे हों। मैं ऐसे ही कुछ अवसरों का पूर्व में आनंद भी उठ चुका हूं। कल इत्तेफ़ाकन में अपने दो कलाप्रेमी मित्रों प्रताप सिंह और नवीन श्रीवास्तव के साथ ग्वालियर के ख्याति नाम कलाकार हरिकृष्ण कदम के घर जा धमका। वह वहां 25 अक्टूबर को होने वाली अपनी एकल प्रदर्शनी की तैयारी में जुटा था। घर के बाहर भी बहुत से कैनवास रखे थे और घर के भीतर जाने पर तो हमें सैकड़ों पेंटिंग देखने को मिलीं। पूरे कक्ष में प्रकृति वैविध्यपूर्ण कलाकृतियों में फैली थी।

पृथ्वी पर भू-दृश्यों की अनंत शृंखला है, जो दृश्यमान विशेषताओं ध्रुवीय क्षेत्र, बर्फ़ीले पहाड़, रेगिस्तान, बीहड़, समुद्र, समुद्री तटवर्ती परिदृश्य, पहाड़-पहाड़ियां, वाटर बॉडी, वनस्पति आदि-आदि का ऐसा जीवित संश्लेषण जो कलाकार और दर्शकों के सौंदर्यबोध को झंकृत कर दे। ऐसी ही टंकार हमें हरिकृष्ण की पेंटिंग्स देखकर महसूस हुई।

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लैंडस्केप शब्द का प्रथम उल्लेख 1598 में किया गया था। दो दशक बाद शब्द चित्रण के माध्यम से कविता में भी इसका प्रवेश हुआ। लैंडस्केप जो मूलतः डच भाषा का शब्द है, जल्द ही आंगल भाषा में अपना लिया गया और फिर आज तो लैंडस्केप कला जगत में व्यापक स्वीकृति अर्जित कर चुका है। पाश्चात्य कला जगत में प्राकृतिक चित्रण को रोमांटिक संज्ञा दी जाती है, वहीं पूर्व एशियाई कला दृष्टि ताओवाद सहित अन्य दार्शनिक परंपराओं से समृद्ध अध्यात्मवादी रूप में अंगीकार करती है। हरि कृष्ण की पेंटिंग्स देखने पर उत्तर प्रभाववादी कलाकार सेजान का कथन स्मरण हो आता है, “हमारा ज्ञान संकुचित है और हमारी अभिव्यक्ति आत्मवादी”। दरअसल कवि और लेखक के समान ही कलाकार की स्मृति भी परिदृश्य चित्रण में चौथे आयाम का काम करती है। हरिकृष्ण के भू-दृश्य चित्रण में उनका समूचा परिवेश सजीव हो जाता है।

अरसा पूर्व ग्वालियर नगर में सबसे बड़ी पेंटिंग बनाकर हरिकृष्ण कदम गिनीज़ बुक में कीर्तिमान दर्ज कर चुका है। समकालीन चित्रण पद्धति में महारत हासिल हरिकृष्ण रंगों से खेलते खेलते दम भर में चित्र तैयार कर देता है। उसे चलती फिरती लैंडस्केप फ़ैक्ट्री की संज्ञा दी जाये तो ग़लत न होगा। उसके लैंडस्केप में कोमल, कठोर और विरोधी रंगों का संतुलित संयोजन और संगति कलाकृति में दर्शक की दृष्टि को चलायमान रखती है। नीले रंग वाली पेंटिंग में परलौकिकता और सादे रंगों वाली पेंटिंग्स में विराट सत्यबोधिता परिदृश्य होती है। शारीरिक और भौतिक चुनौतियों के बावजूद कला के प्रति उनका समर्पण और अटूट साधना सबके लिए प्रेरणादायी है।

– सुभाष अरोड़ा

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