महासमुंद, mahasamund

महासमुंद: पेड़ों की लाश पर बदस्तूर जारी है विकास

             शहर के बीच से गुज़र रहे राजमार्ग पर सैकड़ों पेड़ों को पेन्सिल की तरह तराशकर विकास की इबारत लिखने के कुछ बरसों बाद साहब लोगों का मूड इस बार शहर के एक प्रमुख पथ पर नये तौर से विकास की इबारत लिखने को मचल गया है। राजमार्ग से जुड़े शहर के इस उपेक्षित पथ को वर्षों पहले अचानक ‘गौरव पथ’ का नाम दे दिया गया था। अपने दोनों किनारों पर अनेक पेड़ों की सघन छाया में ऊंघता यह संकरा पथ अनायास ही इठलाने लगा क्योंकि ज़िला बनने के बाद कलेक्ट्रेट, ज़िला न्यायालय सहित अनेक प्रमुख कार्यालय और ज़िले के सर्वोच्च अधिकारियों के निवास इस पथ पर बनाये गये। ऐसी दशा में इस पथ का गौरव बढ़ाना स्वाभाविक भी था।

‘गौरव पथ’ योजना के नाम से मिली राशि से इस संकरे पथ के दोनों ओर लगे अनेक छायादार पेड़ काट दिये गये। हालांकि योजना में उपलब्ध राशि थोड़ी कम थी इसलिए पथ बहुत अधिक गौरवान्वित नहीं हो सका। दूसरी बार फिर कुछ जुगाड़ जमा और ‘गौरव पथ’ के पुनरुद्धार के लिए फिर कुछ राशि मिली तो ‘गौरव पथ’ को फिर से गौरवान्वित करते हुए किनारे पर क्षतिपूर्ति के लिए लगाये गये वे पेड़ फिर काट दिये गये, जो पूरी तरह पेड़ भी नहीं बन पाये थे।

इस बार जब इसे पुनः गौरवान्वित किया गया तो इसके किनारे फिर से सैकड़ों पौधे लगाये गये। कुछ वर्षों बाद इन हज़ारों पौधों में से बचे सैकड़ों पौधे पेड़ बन गये हैं और अपनी आदत के मुताबिक़ गहरी छाया देने लगे हैं। इनके नीचे अनेक फल-सबज़ी वाले, चाय- समोसे वाले, गन्ना रस वाले, चाट-पकौड़ी वाले भी शरण पा गये हैं। इस निश्चिंतता के साथ कि ‘गौरव पथ’ पर्याप्त गौरवान्वित हो चुका है और अब इसके गौरवान्वित होने की और कोई संभावना नहीं है। लेकिन पथ का गौरव अभी भी अधूरा ही था इसीलिए अब कुछ वर्षों बाद फिर से इसके गौरव वृद्धि की मुहिम शुरू हो गयी है। इस बार राशि भी करोड़ों में मिली है। गौरव पथ के केवल 2.3 कि.मी. हिस्से के लिए लगभग 9 करोड़ की राशि मिल गयी है। ‘गौरव पथ’ फिर गौरवान्वित होने जा रहा है। इस बार विकास की इबारत लिखने के लिए दो सौ से अधिक पेड़ और साठ से अधिक छोटे-मोटे रोज़गार वाले ठेले, कब्ज़े, दूकानें हटायी जाएंगी। जेसीबी और रोड रोलर विकास कथा लिखने के लिए तत्पर हो चुके हैं।

वर्तमान पथ के दोनों ओर काफ़ी चौड़ाई में गड्ढे कर दिये गये हैं। वर्तमान ‘गौरव पथ’ बड़े नाज़-नख़रे से जेसीबी की विंड स्क्रीन में झांकते हुए कल चमकने वाले अपने चेहरे की कल्पना से लहालोट हो रहा है। मुरझाये और सिहरे हुए हैं वही साठ-सत्तर ठेले-खोमचे वाले और इनके साथ फिर से अकाल मृत्यु की बाट जोहते दो सौ से अधिक पेड़, जो फिर से छाया और आसरा देने लगे थे।

महासमुंद, mahasamund

इस बीच आस-पास विभिन्न स्थानों पर पिछले पर्यावरण दिवस पर लगायी कुछ तख्तियां ज़मीन पर गिरी पड़ी हैं, जिनमें लिखा है ‘एक पेड़ माँ के नाम’… तख्तियों के पीछे लगाये गये पौधे न जाने कब सूख गये या बकरियां खा गयीं। पेड़ और माँ दोनों ही अपने दिवसों पर पर्याप्त सम्मानित होने के बाद अपनी-अपनी सद्गति को प्राप्त हो गये हैं। एक बार फिर ‘विकास’ रोडरोलर की छत पर बैठकर इठला रहा है। जो लोग अधिक भावुक हैं, वे श्रद्धांजलि के लिए शब्द टटोल रहे हैं। यह जानते हुए भी कि विकास के इस दौर में उनके आँसुओं से कोई ठूंठ हरा नहीं होगा। इकरार अहमद का शे’र है-

जिसको मैं अपना बनाता हूँ वो बिछड़ जाता है
मेरी बनती ही नहीं कभी तक़दीर के साथ

अशोक शर्मा, ashok sharma

अशोक शर्मा

छत्तीसगढ़ शासन से सेवानिवृत्त राजपत्रित अधिकारी अशोक शर्मा मिज़ाज से कवि, लेखक और साहित्य प्रेमी हैं। चार दशकों से अधिक सक्रिय लेखन, मूलतः ग़ज़ल लेखन तथापि अनेक गीत, दोहे, स्वतंत्र आलेख, कविताएं और कहानियाँ भी। एक स्वतंत्र ग़ज़ल संग्रह 'बाप से परिचय हुआ' तथा कुछ साझा ग़ज़ल संग्रह और दोहा संग्रह प्रकाशित। देश विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में अनेक रचनाएं नियमित प्रकाशित, आकाशवाणी, दूरदर्शन और अन्य टीवी चैनलों से नियमित प्रसारण।

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