
- April 26, 2025
- आब-ओ-हवा
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उड़ जाएगा हंस अकेला
रॉबिन की धुन पर मन्ना दा का रूमान
विवेक सावरीकर मृदुल
निर्देशक बी.जे. पटेल की मज़ेदार बी श्रेणी फ़िल्म सखी रॉबिन, राजा-महाराजाओं के दौर में महल के आंतरिक षड्यंत्रों और एक सामान्य सिपाही की बहादुरी से होने वाले षड्यंत्र के ख़ात्मे पर आधारित थी। बी श्रेणी फिल्मों में ‘स्टंट वंट’ को ख़ासी तवज्जो मिलती थी। नायक का सरपट घोड़े दौड़ाकर पहाड़ की चोटी से दुश्मन के सिपाहियों पर वार करना, रस्सी के फंदे से इस छत से उस छत पहुंचना, हँसते-हँसते दुश्मन को चित करना और समय मिलते ही नायिका से प्यार भरी बातें करने या रूमानी गीत गाने आदि के प्रशंसक उस दौर में बहुत हुआ करते थे। जहां तक अभिनय की बात है, ऐसी फ़िल्मों में कम ही गुंजाइश हुआ करती। तो समझ लें कुछ ऐसी ही फ़िल्म थी सखी रॉबिन।
संभवतया यह नाम रखने के पीछे अंग्रेज़ी लोककथा के प्रमुख पात्र रॉबिनहुड की प्रेरणा रही हो। रंजन और शालिनी जैसे अनजान सितारों वाली इस श्वेत-श्याम फ़िल्म का अगर कोई उल्लेखनीय पक्ष था तो वह था इसका गीत और संगीत। गीतकार थे योगेश और संगीतकार रॉबिन बनर्जी। इस संगीतकार का शुमार बॉलीवुड के अनेक ऐसे संगीतकारों में किया जा सकता है जिन्हें मधुर संगीत देने के बावजूद काम और नाम नहीं मिला। आज तो न “सखी रॉबिन” फ़िल्म किसी को याद होगी, न ही उसके कलाकार और संगीतकार को कोई याद करता होगा। मगर जिस गाने का हम ज़िक्र करने जा रहे हैं, यह आज भी विविध भारती के फ़रमाइशी फ़िल्मी गीतों के कार्यक्रम में बराबर बजा
करता है। बोल हैं- ‘तुम जो आओ तो प्यार आ जाये, जिंदगी में बहार आ जाये’। कल्याण थाट में निबद्ध इस गाने में मन्ना दा की आवाज़ का जादू सुनने वाले को सम्मोहित कर देता है। यह कड़वी सचाई है कि बेहतरीन शास्त्रीय गायन की समझ रखने और मधुर कंठ के बावजूद मन्ना दा को रोमांटिक गाने बहुत कम मिले। लेकिन जितने भी गाने उन्होंने इस मूड में गाये, कालजयी बन गये। चाहे फिर वो राजकपूर-नर्गिस के लिए गाये ‘ये रात भीगी भीगी’ या ‘आ जा सनम मधुर चांदनी में हम’ हों या नवरंग फ़िल्म में महिपाल और संध्या पर फ़िल्माया दोगाना ‘तू छुपी है कहां’ हो अथवा फ़िल्म वक़्त में बलराज साहनी पर फ़िल्मायी क़व्वाली ‘ऐ मेरी ज़ोहरा जबीं हो’, मन्ना दा के गायन का रस कानों में हर बार अमृत घोलता है। यही बात ‘तुम जो आओ…’ पर लागू होती है।
योगेश के लिखे इस गाने का अंतरा देखिए- ‘जब तमन्ना शबाब पर आये, हर तरफ़ इक ख़ुमार सा छाये, ज़हे क़िस्मत कि यार आ जाये…’ इन पंक्तियों में भरी रूमानियत मन्ना डे की आवाज़ में और भी सजीव हो उठती है। ख़ास बात यह कि तार सप्तक में सहजता से विचरने वाले मन्ना दा ने पूरा गाना बहुत नियंत्रित स्वरों में गाया है, जिसके कारण मेलडी बढ़ गयी है।
अब रॉबिन बनर्जी पर चर्चा करते हैं। आपको गीत ‘नानी तेरी मोरनी को मोर ले गये’ तो पता ही है। इसे फ़िल्म मासूम (पुरानी) के लिए अपनी बेटी रानू की आवाज़ में संगीतकार हेमंत कुमार ने स्वरबद्ध और रिकॉर्ड किया था। पर अचानक ऐसा कुछ हुआ कि हेमंत दा को विदेश जाना पड़ा और शेष गानों को संगीतबद्ध करने का ज़िम्मा मिला उनके ही सहायक रॉबिन को। रॉबिन ने दो सुरीले गीत बनाकर अपनी प्रतिभा सिद्ध कर दी। इनमें से एक गीत तो बेहद मक़बूल हुआ- ‘हमें उन राहों पर चलना है, जहाँ गिरना और संभलना है’। इसे हेमंत दा की अनुपस्थिति में सुबीर सेन ने गाया, जिनकी आवाज़ हेमंत दा से इतनी मिलती थी कि सुनने वालों को हेमंत कुमार का ही भ्रम होता है।
पुनः सखी रॉबिन के सुमन कल्याण-पुर के गाये अंतरे पर आते हैं- ‘दिल पे मुझको तो ऐतबार नहीं, ये वो शय है जिसे क़रार नहीं, दिल अगर बेक़रार आ जाये’। कैसी-कैसी स्टंट फ़िल्में मिलीं रॉबिन को जंगली राजा, रॉकेट टार्जन, आंधी और तूफ़ान… लेकिन रॉबिन ने इन सबमें मधुर संगीत दिया। सुमन कल्याणपुर इनकी मुख्य गायिका रहीं। बहरहाल “तुम जो आओ” गीत उनकी बेहतरीन रचना है, इसमें शक नहीं। 27 जुलाई 1986 में इस गुमनाम से संगीतकार का निधन हो गया।

विवेक सावरीकर मृदुल
सांस्कृतिक और कला पत्रकारिता से अपने कैरियर का आगाज़ करने वाले विवेक मृदुल यूं तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्ववियालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं,पर दिल से एक ऐसे सृजनधर्मी हैं, जिनका मन अभिनय, लेखन, कविता, गीत, संगीत और एंकरिंग में बसता है। दो कविता संग्रह सृजनपथ और समकालीन सप्तक में इनकी कविता के ताप को महसूसा जा सकता है।मराठी में लयवलये काव्य संग्रह में कुछ अन्य कवियों के साथ इन्हें भी स्थान मिला है। दर्जनों नाटकों में अभिनय और निर्देशन के लिए सराहना मिली तो कुछ के लिए पुरस्कृत भी हुए। प्रमुख नाटक पुरूष, तिकड़म तिकड़म धा, सूखे दरख्त, सविता दामोदर परांजपे, डॉ आप भी! आदि। अनेक फिल्मों, वेबसीरीज, दूरदर्शन के नाटकों में काम। लापता लेडीज़ में स्टेशन मास्टर के अपने किरदार के लिए काफी सराहे गये।
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