
- July 15, 2025
- आब-ओ-हवा
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ग्राफ़िक चित्रकार संगीता पाठक का भाव-विश्व
संगीता पाठक – चिरपरिचित चेहरा, एक ग्राफ़िक्स चित्रकार। ग्राफ़िक्स के साथ इनके श्वेत-श्याम स्केचेज़ भी अद्भुत हैं। कलाकार ने रंग और कैनवास माध्यम में भी काफ़ी काम किया है। तीनों माध्यमों की सशक्त पकड़ से कलाकार ने अपनी विशिष्ट पहचान और शैली कला जगत में गढ़ी है। चित्रों के विषय सरल और सहज हैं, जो मानवाकृतियों से व्यक्त होते हैं। कलाकार की चित्रशैली की विशेषता ही मानवाकृतियाँ हैं, जो ख़ुद अपने अंतर्मन की कथा, व्यथा आपके सामने कहती नज़र आती हैं। रोज़मर्रा के सहज क्षण, जिन्हें हम कैमरे में क़ैद करते हैं, ठीक वैसे ही सरल दृश्य, व्यवहार करते लोग, सम्पूर्ण रूप से इनके चित्रों में दिखायी देते हैं।
कलाकार अपने अतीत के झरोखे में क़ैद गतियों और आसपास के ताज़ा वातावरण को अपने माध्यमों में उकेर रही हैं। अतीत कहें या पुरानी यादें, जो आज भी स्थाई रूप से कलाकार के इर्द-गिर्द जमी हैं, यही उनके कला की प्रेरणा भी है और यही संगीता के चित्रों के मुख्य विषय भी। विषयानुसार, भावानुसार सही माध्यम का चयन कर चित्र में उतारना ही इनके चित्रों की रोचकता है। सशक्त और स्वप्निल, तो कहीं धूमिल होती रेखाएँ इनके चित्रों को इतर से अलग करती हैं।
कला, संगीत, साहित्य में स्त्री सौन्दर्य और नारी महिमा हम देखते-पढ़ते रहे हैं। आकारों में अंकित उन्हें देखते हैं, पर संगीता के चित्रों की एक महत्वपूर्ण विशेषता है कि उनके सौन्दर्य बोध का मानक पुरुष रूप है। पुरुष के दैनंदिन व्यवहार, गतिविधियाँ और उनके हाव-भाव, विचारों को अपने सौन्दर्य बोध का विषय बनाकर वह अपने चित्र बनाती हैं। आकर्षक रेखाओं और कम रंगों से बहुत ही उत्कृष्ट कलात्मक कृतियाँ तैयार की हैं। चित्रों में रेखाओं को अति महत्वपूर्ण स्थान होने से कहीं-कहीं चेहरे के भाव उकेरने में ज्यामितीय आकार दिखायी पड़ते हैं। सुख-दुख, हंसी-ख़ुशी, तनाव, उदासी, संवेदनाओं की सारी कहानी इनका रचा गया हर एक चेहरा कहता है।
आज के समय में अति आधुनिक चित्रण से मानवाकृतियाँ क्या आकार भी ग़ायब हो रहे हैं, पर इनके चित्रण का मुख्य आधार ही मानवाकृतियाँ हैं। रेखाओं से श्वेत-श्याम माध्यम में अत्यंत सरल विषय लेकर बहुत ही प्रासंगिक आकारों का बैकग्राउण्ड में अंकन और पुरुष आकारों का चित्रण इनकी अपनी विशिष्ट पहचान बन चुका है।
कैनवास के चित्र, लीथोग्राफ़ी और ग्राफ़िक्स के पेपर प्रिंट और श्वेत-श्याम के बेजोड़-सधे स्कैचेज़ अर्थात चित्रकार संगीता पाठक।
लकीरों में उकेरी मानवाकृतियां, चित्र में अपनी बॉडी लैंग्वेज और चेहरे के भाव से अपनी मनोदशा ख़ुद व्यक्त करती हैं। यूं कहें कि आप देखें तो ये चित्र आपसे बातचीत करते नज़र आते हैं। बशर्ते कि आप उन्हें सुन सकें।
गॉसिप (बातचीत) के सशक्त चित्र, जिसमें समूह में खड़े पुरुषों के चेहरे पर गप्पबाज़ी के भाव स्पष्ट दिखते हैं। कलाकार की अपनी संवेदनाएँ, जो इर्द-गिर्द पुरुष पात्रों में ख़ूबसूरती देखती है। यह कलाकार की निजी अनुभूतियां हैं, पर संवेदनात्मक सौन्दर्य भी संगीता की रंग-रेखाओं में उतरने मचलता है। कलाकार के छोटे, बड़े सभी चित्र अपनी कहानी सशक्त रूप में ख़ुद ही बयां करते हैं, ये कलाकार की सफलता का मानबिन्दु हैं। सजीव चित्रण, संयोजन और सही माध्यम का चयन, मानवाकृति के अव्यक्त को व्यक्त करता है। इस तरह कि संगीता पाठक के रचे चित्रों को बोलता कैनवास कहा जा सकता है।
अनेक मूर्धन्य कलाकार और कलागुरुओं के सान्निध्य में शांति निकेतन (पश्चिम बंगाल) से स्नातकोत्तर, ग्राफ़िक्स विषय में डिग्री प्राप्त संगीता की कला निखरते हुए आज अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई है। अतः स्वभाविक रूप से राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय मंच पर कलाकार ने शिरकत की है। पाँच अंतरराष्ट्रीय ट्रनाल और डिनाल (पुर्तगाल, रिपब्लिक ऑफ मैकेडोनिया, दिल्ली, भोपाल) में सम्मिलित रही हैं।
12 एकल प्रदर्शनियाँ मुम्बई, कोलकाता, भोपाल, नई दिल्ली में आयोजित हुईं और 16 राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, रीजनल और प्रदेश स्तर पर आर्ट कैंपों में हिस्सेदारी की। 11 राष्ट्रीय और प्रदेश स्तरीय अवॉर्ड प्राप्त संगीता पाठक को मैरिट स्कॉलरशिप भी हासिल हो चुकी है।इनके चित्रों का संग्रह देश-विदेश में बहुतेरी जगहों पर है।

प्रीति निगोसकर
पिछले चार दशक से अधिक समय से प्रोफ़ेशनल चित्रकार। आपकी एकल प्रदर्शनियां दिल्ली, भोपाल, इंदौर, उज्जैन, पुणे, बेंगलुरु आदि शहरों में लग चुकी हैं और लंदन के अलावा भारत में अनेक स्थानों पर साझा प्रदर्शनियों में आपकी कला प्रदर्शित हुई है। लैंडस्केप से एब्स्ट्रैक्शन तक की यात्रा आपकी चित्रकारी में रही है। प्रख्यात कलागुरु वि.श्री. वाकणकर की शिष्या के रूप में उनके जीवन पर आधारित एक पुस्तक का संपादन, प्रकाशन भी आपने किया है। इन दिनों कला आधारित लेखन में भी आप मुब्तिला हैं।
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Well written.. One can visualize Sangeeta Pathak ji.