
- April 30, 2025
- आब-ओ-हवा
- 0
मीर अम्मन का ‘बाग़-ओ-बहार’
फ़ोर्ट विलियम कॉलेज में जॉन गिलक्रिस्ट की फ़रमाइश पर मीर अम्मन देहलवी ने मीर हुसैन अता तहसीन की “नौ तर्ज़-ए-मुरस्सा” से लाभ उठाकर बाग़-ओ-बहार की दास्तान लिखी। आम ख़्याल ये है कि उन्होंने अमीर ख़ुसरो की फ़ारसी दास्तान “क़िस्सा चहार दरवेश” से उर्दू में अनुवाद किया, यह बात ख़ुद गिलक्रिस्ट ने भूमिका में की है। ख़ैर ये दास्तान उर्दू गद्य में मील के पत्थर की हैसियत रखती है और उसे आधुनिक उर्दू गद्य का पहला ग्रंथ क़रार दिया जाता है। पहली मर्तबा आसान उर्दू ज़बान में दास्तान बयान की गयी। उर्दू की उन चंद किताबों में इसे शुमार किया जाता है, जो हमेशा ज़िंदा रहने वाली हैं। जितनी शोहरत और मक़बूलियत इस दास्तान को मिली, ऐसी किसी और दास्तान की किताब को नहीं मिली।
पहली बार ये हिन्दुस्तानी प्रैस, कलकत्ता से 1803 में प्रकाशित हुई। अपनी आसान उर्दू और दिलचस्प लेखन शैली के कारण ये हर ख़ास-ओ-आम में आज भी उतनी ही लोकप्रिय है जितनी कि कोई सवा दो सौ बरस पहले थी। मीर अम्मन दिल्ली के रहने वाले थे और वहां की ज़बान पूरी तरह समझते थे। इतने वर्षों के बाद जब भाषा में बहुत से बदलाव आ गये हैं, आज भी इसे पढ़ने में कोई दिक़्क़त नहीं होती बल्कि आनंद आता है। ये सब उनके कमाल की मिसाल है। बिलकुल मुनासिब शब्दों का प्रयोग, न कहीं कुछ कमी महसूस होती है न ही कहीं कोई बेशी। रवानी ऐसी जैसे नदी बह रही हो। लेकिन यह सादगी सपाट नहीं है। न ही कहीं भौंडेपन की मिसाल मिलती है। उनके पास शब्दों का भंडार है। वो जिन शब्दों को जहां रख देते हैं, वो वहां की आवश्यकता बन जाते हैं। फ़ारसी और अरबी के मुश्किल अल्फ़ाज़ से बचकर उर्दू गद्य लिखना एक दुशवार काम था मगर मीर अम्मन ने ऐसा किया। इसे हम ठेठ भाषा कह सकते हैं। इस तरह इस दास्तान में स्थानीय रंग उभर गया है। ब्रजभाषा का भी इस्तिमाल है, हरियाणवी शब्द भी हैं। आम बोलचाल और कहावतों के प्रयोग से शैली में रंगा-रंगी आ गयी है। पात्रों के चरित्र चित्रण, घटनाओं के विवरण और दृश्यों की महीन प्रस्तुति से दिलचस्पी बनी रहती है। लोगों ने प्रयास ख़ूब किया लेकिन इस शैली को नहीं पा सके। ज़बान-ए-उर्दू के लिए ये किस क़दर ज़रूरी दास्तान है कि मौलवी अब्दुलहक़ ने कहा “मैं जब उर्दू भूलने लगता हूँ तो बाग़-ओ-बहार पढ़ता हूँ”।
इसमें दिल्ली की मजलिसों, महफ़िलों, घरों-बाज़ारों का तज़किरा है। मर्दाना, ज़नाना लिबासों की तफ़सील, रहन-सहन के तौर-तरीक़े, मौसमों और मेलों का विस्तृत उल्लेख, विलासिता और महफ़िल राग-ओ-रंग के नक़्शे, कई रस्म-ओ-रिवाज हैं, जो दिल्ली की सभ्यता और परंपराओं को ज़िन्दा कर देते हैं। यह अपने ज़माने का दस्तावेज़ है।
ये दास्तान चार दरवेशों पर आधारित है, जिनको इश्क़ ने दरवेशी की राह पर ला दिया था। दरअसल ये चार अलग-अलग कहानियों का संकलन है। हर कहानी ख़ुद में सम्पूर्ण है और एक-दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं है। शुरू में चारों दरवेशों को एक साथ दिखाया गया है, जो अपनी अपनी कहानी बारी-बारी से सुनाते हैं। पहला दरवेश यमन का, दूसरा फ़ारस का शह-ज़ादा, तीसरा मुल्क अजम का शहज़ादा और चौथा दरवेश चीन के बादशाह का बेटा। इसमें रूम का बादशाह आज़ाद बख़्त है। ख़्वाजा सग परस्त है, शरीफ़ और बेवक़ूफ़ इन्सान। महिला पात्रों में माह-रू, वज़ीर ज़ादी, सरान दीप की शहज़ादी, बसरा की शहज़ादी, पहले दरवेश की बहन, कुटनी वग़ैरह हैं। इस दास्तान का अंग्रेज़ी अनुवाद 1857 मैं डंकन फ़ौरबिस ने किया।
मीर अम्मन देहलवी
मीर अम्मन देहलवी 1748 के लगभग पैदा हुए। आर्थिक ऊंच-नीच से गुज़रते हुए पटना (अज़ीमाबाद) और कलकत्ता में नौकरी करते हुए फ़ोर्ट विलियम कॉलेज में नियुक्त हुए। यहीं रहकर यह अनुवाद किया, जिस पर कॉलेज की तरफ़ से 500 रुपये का पुरस्कार भी मिला। इंतिक़ाल 1806 में हुआ। मगर वो बाग़-ओ-बहार के सहारे क़ियामत तक ज़िंदा रहेंगे।

डॉक्टर मो. आज़म
बीयूएमएस में गोल्ड मेडलिस्ट, एम.ए. (उर्दू) के बाद से ही शासकीय सेवा में। चिकित्सकीय विभाग में सेवा के साथ ही अदबी सफ़र भी लगातार जारी रहा। ग़ज़ल संग्रह, उपन्यास व चिकित्सकी पद्धतियों पर किताबों के साथ ही ग़ज़ल के छन्द शास्त्र पर महत्पपूर्ण किताबें और रेख्ता से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग़ज़ल विधा का शिक्षण। दो किताबों का संपादन भी। मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी सहित अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं से सम्मानित, पुरस्कृत। आकाशवाणी, दूरदर्शन से अनेक बार प्रसारित और अनेक मुशायरों व साहित्य मंचों पर शिरकत।
Share this:
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Reddit (Opens in new window) Reddit
- Click to share on Pinterest (Opens in new window) Pinterest
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Bluesky (Opens in new window) Bluesky