
- June 15, 2025
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नूतन: गायन की 'समर्थ' बानगी
वर्ष 1960 में शोभना पिक्चर्स के बैनर तले फ़िल्म आयी ‘छबीली’। इसका निर्माण अपने ज़माने की मशहूर अभिनेत्री शोभना समर्थ ने अपनी छोटी बेटी तनुजा को लॉन्च करने के लिए किया था। इसके पहले बड़ी बेटी नूतन को वे 1950 में फ़िल्म ‘हमारी बेटी’ के ज़रिये बड़े परदे की नायिका बना चुकी थीं। ‘हमारी बेटी’ में नूतन को एक गीत ‘तुझे कैसा दूल्हा भाये री’ गाने का अवसर मिल चुका था। इस तथ्य को आज कम ही रसिक जानते होंगे कि नूतन एक संवेदनशील अभिनेत्री होने के साथ गायन में भी कुशल थीं और उन्होंने कंठ संगीत का थोड़ा-बहुत प्रशिक्षण भी लिया था।
अब ‘हमारी बेटी’ में तो शोभनाजी को ज़्यादा गुंजाइश नहीं मिल सकी मगर ‘छबीली’ बनाते समय माँ ने बतौर निर्देशक इस बात का पूरा ध्यान रखा कि परदे के अलावा नेपथ्य में भी नूतन की प्रतिभा का भरपूर उपयोग हो सके। गीतकार रतन शर्मा (एस. रतन) के शब्दों और संगीतकार स्नेहल भाटकर की धुनों के साथ पूरा न्याय करते हुए नूतन ने कुल चार युगल गीत और दो सोलो गाने इस फ़िल्म में गाये। इनमें एक हेमंत कुमार के साथ का युगल गीत ‘लहरों पे लहर, उल्फत है जवाँ’ तो आज भी रेडियो पर श्रोताओं के फ़रमाइशी प्रोग्राम में बजा करता है। अब याद कीजिए कि आपको क्या गायिका का यह स्वर गीता दत्त या सुधा मल्होत्रा का तो नहीं लगता रहा!
यूं सुधा मल्होत्रा के साथ भी उन्होंने इसी फ़िल्म में दोगाना- ‘मिला ले हाथ, ले बन गयी बात’ गाया है जबकि गीता दत्त के साथ गाया है- ‘यारों किसी से ना कहना’। एक गाना महेंद्र कपूर के साथ भी है, बोल हैं- ‘ओ माय डार्लिंग ओ माय स्वीटी’। सारे गाने मधुर हैं और नूतन की चहुँमुखी प्रतिभा की बानगी देने वाले। फिर भी जिस गाने में नूतन ने अपने सरनेम के अनुरूप समर्थ अभिव्यक्ति दी है, वो है- ‘ऐ मेरे हमसफ़र ले, रोक अपनी नज़र’। इस गाने के बारे में बात करने से पहले नूतन की आवाज़ और अदायगी पर बात करें।
नूतन का कंठ मीठा है और उसे सुनते हुए सुधा मल्होत्रा या सुमन कल्याणपुर का आभास होता है। उनके गले में एक अनूठा रेज़ोनेन्स है जिसकी वजह से उनका गाना मेलोडियस लगता है। निश्चय ही गले की रेंज कम होने से वे मध्य सप्तक में ही अपना गाना ले जाती हैं पर संगीतकार भाटकरजी ने इस बात का पूरा ख्याल रखा है कि उनसे ऐसी तान न गवायी जाये कि गायन कर्कश हो जाये। ये वही भाटकर हैं जिन्होंने मुबारक बेगम से “हमारी याद (याssssद) आएगी” जैसा लंबा आलापी और तानकारी वाला गीत गवाया और रागदारी का भी अच्छा उपयोग किया। पर नूतन के लिए गाने स्वरबद्ध करते समय भाटकर जी ने पाश्चात्य जमावट वाला आर्केस्ट्रा रखा ताकि गाते समय नूतन को अधिक मेहनत न करना पड़े। इस गाने के बोल देखिए – ‘ऐमेरे हमसफ़र ले, रोक अपनी नज़र ले, न देख इस क़दर, ये दिल है बड़ा बेसबर’।
इस धुन की ख़ास बात यह है कि स्थाई की पहली तीन पंक्तियों के अंतिम अक्षर “ले, न” को इस तरह स्वरबद्ध किया गया है कि वो स्वाभाविक रूप से ठेके की रिदम तय करने का काम करते हैं। यक़ीन न हो तो एक बार इस गीत को सुन देखिए।

विवेक सावरीकर मृदुल
सांस्कृतिक और कला पत्रकारिता से अपने कैरियर का आगाज़ करने वाले विवेक मृदुल यूं तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्ववियालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं,पर दिल से एक ऐसे सृजनधर्मी हैं, जिनका मन अभिनय, लेखन, कविता, गीत, संगीत और एंकरिंग में बसता है। दो कविता संग्रह सृजनपथ और समकालीन सप्तक में इनकी कविता के ताप को महसूसा जा सकता है।मराठी में लयवलये काव्य संग्रह में कुछ अन्य कवियों के साथ इन्हें भी स्थान मिला है। दर्जनों नाटकों में अभिनय और निर्देशन के लिए सराहना मिली तो कुछ के लिए पुरस्कृत भी हुए। प्रमुख नाटक पुरूष, तिकड़म तिकड़म धा, सूखे दरख्त, सविता दामोदर परांजपे, डॉ आप भी! आदि। अनेक फिल्मों, वेबसीरीज, दूरदर्शन के नाटकों में काम। लापता लेडीज़ में स्टेशन मास्टर के अपने किरदार के लिए काफी सराहे गये।
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