
- May 15, 2025
- आब-ओ-हवा
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ओरिजनल 'एक चतुर नार' एक गीत क़िस्से बेशुमार
आज जैसे ही कोई गुनगुनाता है- ‘एक चतुर नार करके सिंगार’, हमारी आँखों के आगे फिल्म पड़ोसन का मज़ेदार दृश्य उभर आता है, जहाँ भाईजान मेहमूद एक दक्षिणात्य नृत्य गुरु मास्टर पिल्लै हैं, हरफ़नमौला किशोर कुमार नेपथ्य में छिपकर गा रहे हैं और आशिक़ भोला बने सुनील दत्त लिपसिंक कर नृत्य मास्टर और ख़ूबसूरत बिंदु यानी सायरा बानू को घोर विस्मय में डाल रहे हैं। आपको बता दें कि यह गीत भले ही राजेंद्र कृष्ण ने लिखा और इसके अंतरों के बीच में किशोर कुमार ने अनेक तरह के लयकारी दिखने वाले जुमले जोड़े, लेकिन मूलतः यह गीत फ़िल्म “झूला” के गाने से प्रेरित है। यह फ़िल्म आयी थी साल 1941 में और इसके संगीतकार थीं भारतीय हिंदी फ़िल्मों की पहली महिला संगीतकार ख़ुर्शीद जो सरस्वती देवी के नाम से मशहूर हुईं। इस पुरानी फ़िल्म “झूला” के नायक थे किशोर कुमार के अग्रज अशोक कुमार यानी दादामुनि। यह वो दौर था जब अभिनेता को ख़ुद ही परदे पर गाना होता था। लिहाज़ा ‘एक चतुर नार, कर कर शृंगार’ दादामुनि ने ही गाया था, जबकि इसके बोल लिखे थे हमारे बड़नगर, मध्यप्रदेश के रामचंद्र नारायण द्विवेदी उर्फ़ कवि प्रदीप ने।
जी हाँ, वही प्रदीप जिन्होंने “ऐ मेरे वतन के लोगो” जैसा अमर गीत हमें दिया। ख़ैर, हम आज बात करेंगे ख़ुर्शीद (पारसी उच्चारण ख़ोरशीद) की। ख़ुर्शीद मिनोचेर होमजी का जन्म तत्कालीन बम्बई के एक पारसी परिवार में 1912 में हुआ था। आपने संगीतकार पंडित विष्णु नारायण भातखण्डे से शास्त्रीय संगीत की गहन तालीम ली थी। 1920 के दशक के अंत में मुंबई में ऑल इंडिया रेडियो की स्थापना हुई तो ख़ुर्शीद अपनी बहन मानेक (बाद में ये चंद्रप्रभा कहलायीं) के साथ नियमित रूप से रेडियो स्टेशन पर गाने लगीं। उनकी शुरूआती पहचान होमजी सिस्टर्स के नाम से थी लेकिन उन्ही दिनों बॉम्बे टॉकीज़ के हिमांशु रॉय की नज़र उन पर पड़ी, जो अपनी फ़िल्मों के लिए कुशल शास्त्रीय वादक की खोज में थे। 1935 में “जवानी की हवा” से ख़ुर्शीद ने संगीतकार के रूप में सफ़र शुरू किया। वर्ष 1936 में फ़िल्म “अछूत कन्या” के लिए देविका रानी और अशोक कुमार द्वारा गया और गीत- ‘मैं बन की चिड़िया बन के बन बन डोलूँ रे’ तो आज भी यादगार है।
ख़ुर्शीद से सरस्वती देवी बनने की कहानी भी दिलचस्प है। उन दिनों बॉम्बे टॉकीज़ में अनेक पारसी कलाकार तकनीकी और महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत थे। उन्होंने पारसी समुदाय की लड़कियों के फ़िल्मों में काम करने को लेकर घोर आपत्ति दर्ज की। तब हिमांशु रॉय ने ख़ुर्शीद की प्रतिभा को कुंद होने से बचने के लिए उन्हें यह नाम रखने का सुझाव दिया था। सरस्वती देवी 1955 तक हिंदी फ़िल्मों के लिए संगीत देती रहीं। 1961 में राजस्थानी फ़िल्म “बाबासा री लाडी” में उन्होंने आख़िरी बार संगीत दिया। 9 अगस्त 1980 में उनका निधन हुआ। सरस्वती देवी को भारतीय फ़िल्मों की पहली पूर्णकालिक महिला संगीतकार का दर्जा दिया जाता है। वो इसलिए कि यूँ तो नर्गिस की मां जद्दन बाई ने भी 1935 की फ़िल्म “तलाश-ए-हक़” आदि में संगीत दिया पर मूलतः वह गायिका ही रहीं। जबकि सरस्वती देवी ने दो-चार नहीं बल्कि लगभग 35 फ़िल्मों में संगीत दिया था। आपको बता दें कि उनके संगीत से सजी फिल्म “जीवन नैया” में अशोक कुमार के गाये गीत ‘कोई हमदम न रहा…’ को ही किशोर कुमार ने अपनी फ़िल्म झुमरू में गाया था और धुन भी लगभग वही थी।
1941 की फ़िल्म “झूला” में अशोक कुमार ने कई गाने गए थे, जैसे ‘हमने किसी से सुनी कहानी’, ‘आज मौसम सलोना सलोना रे’, ‘न जाने किधर आज मेरी नाव’ आदि। ‘एक चतुर नार..’ गीत नायक अशोक कुमार तब गुनगुनाता है जब देखता है कि उसके घर के पड़ोस में एक सुन्दर युवती (लीला चिटणीस) रहने आयी है। इस मूल गीत के बोल पहली पंक्ति को छोड़ अलग हैं- ‘एक चतुर नार, कर कर शृंगार, ठाड़े अपने द्वार, जिया निकस जात, एक पलक मार, हँस मोरा मन लीनो’।
लगभग 27 साल बाद जब राहुल देव बर्मन यानी पंचम दा फ़िल्म पड़ोसन के लिए एक हास्य गीत की धुन पर गायक और फ़िल्म के सह अभिनेता किशोर कुमार से चर्चा कर रहे थे तब अनायास किशोर कुमार को अपने बड़े भाई के गाने का मुखड़ा स्मरण हो आया… फिर बस अनेक हफ़्तों की रिहर्सल, किशोर कुमार के ऐन वक्त पर जोड़े गए मसखरी भरे बेमतलब शब्दों (‘बढ़ के बुतन, चिर बी टकर.. सब चले गये चिता गुड़ चीतिंग’ आदि) के साथ मन्ना डे के लाजवाब शास्त्रीय गायन और मेहमूद के ज़ोरदार वाचिक स्वर के मेल से इस कालजयी गीत की रचना हुई।

विवेक सावरीकर मृदुल
सांस्कृतिक और कला पत्रकारिता से अपने कैरियर का आगाज़ करने वाले विवेक मृदुल यूं तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्ववियालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं,पर दिल से एक ऐसे सृजनधर्मी हैं, जिनका मन अभिनय, लेखन, कविता, गीत, संगीत और एंकरिंग में बसता है। दो कविता संग्रह सृजनपथ और समकालीन सप्तक में इनकी कविता के ताप को महसूसा जा सकता है।मराठी में लयवलये काव्य संग्रह में कुछ अन्य कवियों के साथ इन्हें भी स्थान मिला है। दर्जनों नाटकों में अभिनय और निर्देशन के लिए सराहना मिली तो कुछ के लिए पुरस्कृत भी हुए। प्रमुख नाटक पुरूष, तिकड़म तिकड़म धा, सूखे दरख्त, सविता दामोदर परांजपे, डॉ आप भी! आदि। अनेक फिल्मों, वेबसीरीज, दूरदर्शन के नाटकों में काम। लापता लेडीज़ में स्टेशन मास्टर के अपने किरदार के लिए काफी सराहे गये।
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इस स्तंभ के नये अंक का उत्सुकता से इंतज़ार रहता है ।
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