
- May 26, 2025
- आब-ओ-हवा
- 7
प्यार का भूत
इंडिया हैबिटैट सेंटर फ़िल्म फ़ेस्टिवल में कई फ़िल्मों की स्क्रीनिंग हुई, इनमें से एक फ़िल्म “Kottukkaali, the adamant girl” को दर्शकों ने ख़ूब सराहा।
यह फ़िल्म प्यार से नफ़रत करते उन सभी लोगों की है जो पितृसत्ता समाज और जातिगत भेदभाव के शिकार होने के साथ शिक्षा को चरित्र बिगाड़ने के लिए ज़िम्मेदार मानते हैं। और ऐसे समाज में रहती हुई उन लड़कियों की कहानी भी है, जो प्यार, शिक्षा और बराबरी में यक़ीन रखती हैं।
फ़िल्म के पोस्टर में लीड ऐक्टर की सिर्फ़ आँखें दिख रही थीं। 100 मिनट की इस फ़िल्म में भी ऐक्टर ने सिर्फ़ इन्ही आँखों से सारी बातें, भाव और सोच बतायी। उनके हिस्से एक भी डायलॉग नहीं था। फिर भी सभी एहसास, सभी ख़याल और सारी सोच ऑडियंस तक भली-भाँति पहुँच गये।
फ़िल्म के पहले, लंबे सीन से ही निर्देशक ने ऑडियंस को बता दिया था कि आपको इस पेस से और इसके परेशान करने के टोन से दोस्ती कर लेनी है। पूरी फ़िल्म में बेचैनी का यह एहसास चलता रहा। फ़िल्म में सिर्फ़ एक सीन ऐसा है जहां कुछ ख़ुशनुमा और आस बंधाता दिखाया गया। सफ़र में ऑटो एक पुलिया पार करता है– लीड ऐक्टर उसके बाहर देखती है और नदी किनारे उसको एक लड़की चलती दिखती है, लड़की पीछे से दिख रही है, खुले बाल उड़ रहे हैं। चलते-चलते वह लड़की पलटकर देखती है और वह मीना ही होती है। देर तक ठहरा कैमरा देर तक सोचने देता है और फिर मीना मुस्कुराती है। जैसे कह रही हो कि ये सब क्या ही नौटंकी कर रहे हैं, हम तो प्यार में हैं और ये सब झेल ही लेंगे।
फ़िल्म जहाँ ख़त्म होती है, वहाँ भी राहत नहीं मिलती। फ़िल्म अचानक मीना के होने वाले पति (पांडी) से सबके सवाल करने पर ख़त्म हो जाती है कि तुम क्यों नहीं आ रहे, क्या हुआ तुम्हें? और पांडी चुप है, जैसे उस पर अब किसी का वश है।
फ़िल्म एक दिन की कहानी है जिसमे एक गाँव का परिवार अपनी बेटी और आदमी अपनी होने वाली बीवी को किसी बाबा से झाड़-फूँक के लिए ले जा रहे हैं। किसी दूसरे गाँव में जाने के लिए परिवार के लोग एक ऑटो और तीन दोपहिया से जाते हैं। फ़िल्म इस पूरे सफ़र में होती बातचीत से खुलती है। पता चलता है कि लड़की को छोटी मानी जाने वाली जाति के लड़के से प्यार हुआ है; प्यार की जगह किसी साये का वश मानकर सभी बाबा से उसका भूत उतरवाने ले जा रहे हैं।
फ़िल्म के दौरान आदमियों की बातें, अचानक ग़ुस्से से परिवार की सभी औरतों को हाथ-लात मारने वाले आदमी और लड़की को पढ़ाये जाने पर कोसने से आपको कहानी के आधार का पता चलता है।
फ़िल्म की खास बात सभी की ऐक्टिंग है। सभी ऐक्टरों ने उम्दा काम किया है। ख़ासतौर पर लीड ऐक्टर ने जिस प्रकार अपना ग़ुस्सा, दुख, ढीठपन, सवाल, बेचारगी, सपने, उम्मीद सब अपनी आँखों से दर्शाया है, वह बेमिसाल है। फ़िल्म ज़रूरी होने के साथ सिनेमाई नज़र से भी एक लाजवाब काम है।

आकांक्षा त्यागी
अपने करियर में पहले क़रीब 10 वर्ष पत्रकार रहीं आकांक्षा पिछले क़रीब 15 वर्षों से शिक्षा में नवाचार के क्षेत्र में सक्रिय हैं। शोधकर्ता और ट्रेनर के रूप में वह राष्ट्रीय स्तर तक के प्रोजेक्ट लीड कर चुकी हैं। वर्तमान में एलएलएफ़ के साथ बच्चों की शिक्षा से जुड़े विषयों पर अपनी सेवाएं दे रही हैं। साहित्य, कला और सिनेमा में गहरी रुचि रखती हैं और गाहे ब गाहे सरोकार से जुड़े विषयों पर लेखन में भी।
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शानदार लेखन ।
ऐसी उत्कृष्ट फ़िल्म की जानकारी देना जरूरी भी है जिसमे समाज के लिए सन्देश भी छुपा हो ।
धन्यवाद आकांक्षा ।
प्रिय मधु जी,
प्रशंसा के लिए शुक्रिया. प्रतिक्रिया मिलने से जोश और बढ़ता है.
स्नेह
बेहतरीन फिल्म की शानदार समीक्षा। बधाई। ऐसी समीक्षा पढ़कर फिल्म देखने की इच्छा होती है। इस समीक्षा की ताकत को सोचते हुए ग़ालिब का एक शे’र याद आता है –
क्या बने बात जहांँ बात बनाए न बने
उसपै बन आए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने।
यह समीक्षा बहुत संक्षिप्त है किन्तु ऐसी है कि बिना फिल्म देखे चैन नहीं आएगा। बधाई आकांक्षा जी।
शुक्रिया राजा जी,
क्या बात कही आपने, वाह! अगर ऐसा लगा तो यह फिल्म Amazon प्राइम पर भी उपलब्ध है. आप भी उसका लुत्फ़ लें.
यह शेर और पूरी ग़ज़ल मेरी भी पसंदीदा है.
आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद!
शानदार समीक्षा, फिल्म के प्रति उत्सुकता पैदा करती है।
धन्यवाद अशोक जी.
यह फिल्म Amazon प्राइम पर उपलब्ध है. आशा है आपको भी यह शानदार लगेगी.
बताइएगा कैसी लगी!
बहुत बढ़िया। पूरी कहानी के साथ-साथ, संदेश भी समझ में आ गया। जबरदस्त समीक्षा।