अभिषेक बच्चन, abhishek bachchan

सीधी सादी कहानी पर मर्मस्पर्शी फ़िल्म

            झटपट समीक्षा
फ़िल्म: कालीधर लापता
शैली: ड्रामा
अवधि: 1 घंटा 49 मिनट
लेखक-निदेशक: मधुमिता
कलाकार: अभिषेक बच्चन, दैविक भागेला, ज़ीशान अय्यूब, निमरत कौर

एक पंक्ति सार:

भूलने की बीमारी से ग्रस्त उम्रदराज़ होता कालीधर अपने ही परिवारजनों की बातें सुन लेता है, जिसमें वे उससे तंग आकर उसे कुंभ में छोड़ देने की योजना बना रहे होते हैं। वह घर से भाग निकलता है और रास्ते में बिंदास बल्लू से मिलता है। दोनों मिलकर कालीधर की अधूरी ख़्वाहिशें (बकेट लिस्ट) पूरी करने के लिए एक रोमांचक सफ़र पर निकल पड़ते हैं।

अभिनय, भाव और प्रस्तुति:

“अमीरों की बीमारी” (परिवारजनों के अनुसार) कहे जाने वाले अल्ज़ाइमर से जूझते कालीधर के किरदार में अभिषेक बच्चन का अभिनय प्रभावशाली है। जबसे वो स्टारडम, बॉक्स ऑफ़िस और रेटिंग के फेर से मुक्त हुए हैं तबसे उनके अभिनय में परिपक्वता और निखार दोनों का इज़ाफ़ा हुआ है। अलग-अलग विषयों की फ़िल्मों का चयन उनके लिए बेहतर नतीजे दे रहा है। बिंदास बालक बल्लू के किरदार में दैविक वाघेला का अंदाज़ दिलचस्प और क़ाबिले तारीफ़ है। अच्छे अभिनेता ज़ीशान के लिए ज़्यादा कुछ करने को था नहीं और निमरत अपनी छोटी सी भूमिका में न्याय करती हैं।

तकनीकी पक्ष:

एक सादगी भरी कथा पर बनी यह मर्मस्पर्शी फ़िल्म कुछ हिस्सों में असर छोड़ती है, विशेष रूप से तब जब बल्लू और कालीधर साथ होते हैं। कालीधर की याददाश्त जाना-आना कहानी के औज़ार की तरह प्रयोग किया गया है। ज़्यादातर शूटिंग मध्यप्रदेश में ही हुई है। निदेशक ने लोकेशन का बख़ूबी इस्तेमाल किया है। फ़िल्मांकन अच्छा है। भोपाल, भोजपुर और आसपास के दृश्य अच्छे लगते हैं। हालांकि प्रयागराज से इटारसी आते हुए बीच में भोजपुर पड़ना भौगोलिक रूप से भ्रम पैदा करता है। पटकथा और एडिटिंग में कसावट कम है। अमित त्रिवेदी का संगीत प्रभावहीन है। छोटे भाइयों का पात्र और बेहतर हो सकता था। पुरानी प्रेमिका निमरत के पात्र की कोई ज़रूरत नहीं थी।

अभिषेक बच्चन, abhishek bachchan

यादगार संवाद:

– “हर रिश्ते की एक एक्सपायरी डेट होती है।”
– “इंतज़ार मत करो, जो भी करना है ज़िंदगी में, अभी करो।”

निष्कर्ष:

कुल मिलाकर एक सादगी भरी फ़िल्म अच्छी है जिसे आराम से परिवार के साथ देखा जा सकता है वो भी बिना रोये-धोये ये फ़िल्म ज़ी-5 पर उपलब्ध है।

सुनिल शुक्ल, sunil shukla

सुनिल शुक्ल

भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान, पुणे से प्रशिक्षित सुनिल शुक्ल एक स्वतंत्र वृत्तचित्र फ़िल्मकार हैं। मुख्यतः कला, संस्कृति और सामुदायिक विकास के मुद्दों पर काम करते हैं। साथ ही, एक सक्रिय कला-प्रवर्तक, आयोजक, वक्ता, लेखक और डिज़ाइन शिक्षक हैं। युवाओं को रचनात्मक करियर के लिए परामर्श भी देते हैं। उनका कार्यक्षेत्र शिक्षा, अभिव्यक्ति और सामाजिक सरोकारों के बीच एक सेतु निर्मित करता है।

2 comments on “सीधी सादी कहानी पर मर्मस्पर्शी फ़िल्म

  1. अच्छी व्यख्या फ़िल्म की।
    इसी विषय पर कुछ समय पहले नाना पाटेकर की फ़िल्म भी आई थी।
    सब देखूंगी ये पिक्चर।

  2. अच्छी समीक्षा है। प्रयागराज से इटारसी और भोजपुर यह वाकई कंफ्यूजन पैदा करता है। स्क्रिप्ट और बेहतर की जा सकती थी। अभिषेक बच्चन का अभिनय अच्छा है।लेकिन दैविक बाघेला बाजी मार ले जाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *