
- June 16, 2025
- आब-ओ-हवा
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शिवानी: आउटर शेप से अंतस की सोच तक
आज हम कलाकार ‘शिवानी’ की बात कर रहे हैं, जो कला में इतनी मग्न हैं कि आसपास की हर वस्तु, व्यक्ति और भाव में ऐसे कनेक्ट होती हैं कि उन्हें अपने चित्रों का आकार मान लेती हैं। फिर वे आकार, रंग, व्यक्ति तथा वस्तुएं स्वयं ही अंतस का बोध कराती हैं। उनके चित्र व्यक्ति या वस्तुनिष्ठ होकर आस-पास की कहानी कहते हैं जिसका केंद्रीय किरदार स्वयं वही हैं। चित्रण जिसमें कलाकार का भावात्मक उहापोह, सोच या व्यक्तित्व बोध होता है।
उनकी ही भाषा में उन्हें समझें तो वह कहती हैं- मेरा काम मोटे रूप में कन्टेम्परेरी, फ़िगरेटिव केटेगरी में है। बचपन से रिलेट होती मेरी स्टाइल आज सिम्पल, कॉन्सेप्चुअल आर्ट-सी दिखायी देती है। मैं कला को अपनी तरह से साकार करती हूँ। कला को देखते लोग मेरी पेंटिंग से कनेक्ट होते हैं क्योंकि मेरे चित्रों में सामान्य से आदमी-औरत के फ़ॉर्म हैं, जिन्हें मैं प्रतीकात्मक तौर पर बनाती हूँ। जैसे वो मैं ही हूँ और मेरे इर्द-गिर्द का माहौल, जो मुझसे कुछ कहता है, उसे साधारण से प्रतीकों से बनाती हूँ। मेरे चित्रों में आउटर शेप होते हैं जो मेरे अंतस की सोच को ज़्यादा उभारते हैं। मैं ख़ुद नहीं जानती कि मेरे चित्र कैसे कैनवास पर अपने आप बनते चले जाते हैं और पूर्ण होने पर अंदर के व्यक्तित्व से मुझे ही अवगत कराते हैं। इस तरह ये चित्र फ़िगरेटिव और कन्शेप्सनल के बीच उभरते हैं।
शिवानी के चित्र में आया फूल कमल ही क्यों हैं? उसका वहाँ अर्थ है, अगर उन्होंने बुद्ध बनाया है तो वह मटेरियलिस्टिक लग्ज़री के बीच का उनका चिंतन है। इस तरह उनके चित्रों में स्प्रिचुअलिटी की ओर खिंचाव है। यह प्रक्रिया स्वत: है या… वह बताती हैं, मैंने अभी तक किसी का इन्फ्लुएन्स नहीं लिया, जो अंतरात्मा ने कहा, वही करती आ रही हूँ। जैसे- मैंने पतंग बनायी, तो कहीं साथ चाय पीते या अकेले में चाय का स्वाद लेते हुए मैंने चित्रण किया है। ये सारे आनंद मेरे मन के भाव हैं। इन आकारों के संयोजन में जैसे चिड़िया मेरी फ़्रीडम को दर्शाती है, वहीं शक्ति के लिए मैंने घोड़े के आकार को लिया, कहीं अनार को फर्टिलिटी रूप में तो कहीं एप्पल को वर्जिनिटी के लिए चित्रित किया है। आजकल चित्रों में मेरे योग का भी असर है। मेरे चित्र अब आपको अच्छी स्पिरिट की तरफ़ ले जाते हैं। वुमन इम्पावरमेंट भी चित्रों में एक विचार की तरह है, ये सारे मूर्त संकेत जो मेरे चित्र में दिखायी देते हैं वे अमूर्त-सी कहानी कहते हैं। दसियों देखने वाले इनमें अपनी-अपनी कहानियाँ ढूंढ लेते हैं। यही मेरे चित्रण की स्टाइल है।
अमूर्त को परिभाषित करती हैं शिवानी कि मान लीजिए आप बाहर से हँस रहे हैं पर अंदर क्या चल रहा है.. यह अमूर्त है, इसलिए मूर्त भी मुझे अमूर्त दिखायी पड़ता है। इस तरह मैंने आकारों में अपनी शब्दावली बना रखी है। अव्यक्त को चित्रित करने के लिए व्यक्त का सहारा। किसी दीवार पर लगा मेरा चित्र देखने वाले से कुछ संवाद करता है,जिससे अनायास ही देखने वाले की आर्ट-थेरेपी हो जाती है.. तो यह है चित्रकारी के हुनर में शिवानी होना। अगली कड़ी में एक और कलाकार की बात।

प्रीति निगोसकर
पिछले चार दशक से अधिक समय से प्रोफ़ेशनल चित्रकार। आपकी एकल प्रदर्शनियां दिल्ली, भोपाल, इंदौर, उज्जैन, पुणे, बेंगलुरु आदि शहरों में लग चुकी हैं और लंदन के अलावा भारत में अनेक स्थानों पर साझा प्रदर्शनियों में आपकी कला प्रदर्शित हुई है। लैंडस्केप से एब्स्ट्रैक्शन तक की यात्रा आपकी चित्रकारी में रही है। प्रख्यात कलागुरु वि.श्री. वाकणकर की शिष्या के रूप में उनके जीवन पर आधारित एक पुस्तक का संपादन, प्रकाशन भी आपने किया है। इन दिनों कला आधारित लेखन में भी आप मुब्तिला हैं।
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