
- April 11, 2025
- आब-ओ-हवा
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फ़्रंट स्टोरी
स्टैंड लीजिए, आप अपने ही देश में हैं
भवेश दिलशाद
स्टैंडअप आर्टिस्ट कुणाल कामरा की एक पैरोडी और कटाक्ष भरे वीडियो पर महाराष्ट्र में भाजपा और पूर्व मुख्यमंत्री शिंदे के समर्थकों ने ख़ासा वबाल काटा। कुणाल ने माफ़ी मांगने से इनकार करके भीड़ को मुंहतोड़ जवाब दे दिया और मामला कोर्ट तक पहुंच गया। इस पूरे मामले ने हास्य, व्यंग्य, कला और अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर बड़ी बहस खड़ी कर दी। मीडिया से सोशल मीडिया तक प्रतिक्रियाओं का सैलाब है। कहीं आक्रोश, कहीं विरोध तो कहीं तंज़। हिंदी साहित्य और पत्रकारिता की दुनिया से कुछ हस्ताक्षरों की सोशल मीडिया की टिप्पणियों के अंश यहां प्रस्तुत हैं…
1. तुमने लोकतंत्र की इमारत ढहा दी तो फिर क्या बचा? ढहाओ, सब कुछ ढहाओ। नागपुर में घर गिराओ, इलाहाबाद में गिराओ, मुंबई में कुणाल कामरा का शो जिस स्टूडियो में हुआ, उसे गिराओ। जिस औरंगज़ेब की क़ब्र में (दै. भास्कर के अनुसार) ढहाने को कुछ नहीं है- वह भी तुम ढहाकर रहोगे, ऐसा लगता है। और भी ढहाने-मिटाने-बर्बाद करने का तुम्हारा जो एजेंडा चल रहा है, उसे और आगे चलाते जाओ। चलाओगे ही, रुकोगे थोड़े ही। हमें मालूम है अभी तो बस झांकी है, आगे और तबाही है।
– विष्णु नागर
2. कई साल पहले मैंने महान नेता के कुछ क़िस्से सुनाये थे। कुणाल कामरा प्रसंग में एक अनायास याद आ गया। आप भी ग़ौर फ़रमाइए…
जज साहब जब अपने चैम्बर में पहुँचे तो हँसते-हँसते बेहाल हो रहे थे और पेट पकड़कर कुर्सी से लुढ़के जा रहे थे। अर्दली के पूछने पर बोले, “बाप रे, ऐसा चुटकुला मैंने पूरी ज़िन्दगी में कभी नहीं सुना था।”
अर्दली ने पूछा, “कौन सा चुटकुला हुज़ूर?”
जज साहब बोले, “वो मैं नहीं सुना सकता। अभी उसी पर एक स्टैण्डअप कॉमेडियन को पाँच साल क़ैद बामशक्कत की सज़ा सुनाकर आ रहा हूँ। अपने महान नेता का ऐसा मज़ाक भला कैसे उड़ाया जा सकता है!”
– कविता कृष्णपल्लवी
3. हंसी के विरुद्ध बुलडोज़र न्याय। सवाल सिर्फ़ महाराष्ट्र का नहीं है। महाराष्ट्र की भाजपा सरकार का भी नहीं है। यह भारतीय जनता पार्टी का वर्तमान स्थितियों से डर है। भाजपा के पतन की शुरूआत हो चुकी है। मोदी की अमरीका की यात्रा में जिस तरह उनकी भद बनी उसने संघ और भाजपा के सारे उत्साह और उछाल को ज़मीन पर पटक दिया है। बाहरी दृश्य की बौखलाहट वास्तव में भाजपा की आंतरिक बौखलाहट का प्रतिबिम्ब है।
– राजेश जोशी
4. जनता को अपने मनोरंजन के लिए हॉलमार्क वाली शुद्ध सरकारी कॉमेडी का सेवन करना चाहिए… जनप्रतिनिधियों द्वारा जनहित में की गयी कॉमेडी से ज़्यादा अच्छी चीज़ इस दुनिया में और क्या हो सकती है। कुणाल कामरा तो लगातार क़ानून से खिलवाड़ करता आया है! उसके ख़िलाफ़ देशद्रोह की सारी धाराएं लगायी जानी चाहिए! दूसरी तरफ़ सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी तरफ़ से की जाने वाली कॉमेडी की आपूर्ति अबाध गति से जारी रहे। अध्यादेश लाकर एक कॉमेडी मंत्रालय बनाना कारगर क़दम होगा।
– राकेश कायस्थ
5. कुणाल कामरा ही नहीं बल्कि कुछ और स्टैंडअप हास्य कलाकार, यूट्यूबर लगातार स्तरीय कटाक्ष कर रहे हैं, पक्षधरता के लिए स्टैंड ले रहे हैं। साहित्य की जिस ‘व्यंग्य’ विधा का कारोबार काफ़ी बड़ा हो चला है, बेचारी होकर रह गयी है और परसाई के आगे बढ़ नहीं पा रही। इसी विधा की ‘सुविधाजनक दुविधाएं’ बड़ी वजहें हैं कि अब स्टैंडअप सटायर मुख्यधारा में है और ‘क़लम’ को ख़ामोश कर चुकी सत्ता का सिरदर्द भी यही है।
– भवेश दिलशाद
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