आत्महत्या, सुसाइड, आत्महत्या के कारण, आत्महत्या से कैसे बचें, suicide, suicide reasons, suicidal thoughts

आत्महत्या : प्रश्नों पर विचार ज़रूरी

         “न जाने कितनी ख़्वाहिशें ख़ाक हुई होंगी
न जाने कितनी आग लगी होगी दिलों में
न जाने कितने टूटे होंगे दिल
ऐ ज़िन्दगी!
तू इतनी बेवफ़ा न होती”…

           हमारी यह जिन्दगी ईश्वर का दिया हुआ सबसे ख़ूबसूरत तोहफ़ा है और इसे बेवजह, बेवक़्त यूँ मौत के हवाले कर देना अव्वल दर्जे की बेवकूफ़ी भरी सोच है या मानसिक अवसाद का लक्षण, या किसी उन्मादी मनोग्रंथि का बढ़ जाना है?… यह आज का ज्वलन्त प्रश्न है। न जाने कितनी हताशा, अवसाद और कुंठाओं में जीता है वो इंसान? ऐसी कौन सी मनोस्थिति हो जाती है जो पल भर में ही वह आत्मघाती क़दम उठा लेता है? ऐसा कौन सा मानसिक दबाव उसके ऊपर हावी रहता है जिसके कारण वह विवेक को भूलकर घर परिवार, अपनों को छोड़कर मौत को गले लगा लेता है?

कई वर्षों पूर्व बुराड़ी के एक संभ्रांत प्रतिष्ठित परिवार में ग्यारह लोगों ने आत्महत्या की। एक साथ ग्यारह लोगों की एक सी सोच या तांत्रिक क्रिया या सम्मोहन क्रिया का परिणाम, इसे जो चाहे नाम दें मगर लोगों को दिग्भ्रमित करना उनके दिमाग़ को वाशआउट करना और परिणाम में आत्महत्या! क्या यह क़दम समाज को ग़लत दिशा में ले जा रहा है?…क्या एक हँसता खेलता परिवार किसी साज़िश का शिकार हो सकता है? या सिर्फ़ मिस्ट्री कहकर इसे भुलाया जा सकता है?

हरियाणा में परिवार के सात सदस्यों द्वारा आत्महत्या का समाचार हाल ही, प्रकाश में आया है। क्या अबोध उम्र की बच्चियां आत्महत्या के मायने जानती होंगी? या यह सब किसी षड्यंत्र के शिकार बन रहे हैं? प्रश्न बैचैनी भरा है, गुत्थियाँ उलझी हैं और उलझनें हज़ार हैं मगर मौत का तमाशा बरक़रार है। अब एक नज़र कुछ प्रतिष्ठित, सफल व्यक्तित्वों के मामले पर डालते हैं।

कुछ व्यक्ति अपने व्यक्तित्व से जाने जाते हैं। ऐसे ही भय्यू महाराज एक पढ़े लिखे प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखते थे। ऐसे कौन से हालात थे, कौन सी मानसिक परेशानियाँ थी जिसके कारण उन्होंने कनपटी पर गोली मार कर अपनी जान दे दी? ज़िन्दगी में समस्या है तो उनके समाधान भी हैं। मगर मौत किसी भी बात का समाधान नहीं हो सकती। सुसाइड के संबंध में घर की सारी बातें आज हॉट न्यूज़ बन सड़क पर, चाय के ठेले पर चुस्कियों के साथ पेश हो रही हैं।

दैनिक भास्कर देश का एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र है। जो जन-जागरूकता के लिए सदैव आगे रहता है। कल्पेश याग्निक सम्पादक समूह के सभ्य, सुसंस्कृत, जागरूक सक्रिय और सुलझे व्यक्ति के रूप में लम्बे समय तक जुड़े रहे, जिनके सम्पादकीय लेख लोगों को दिशा निर्देश देते आये थे। अचानक ऐसा क्या हुआ जो वह आत्महत्या जैसे प्राणघाती क़दम उठाने के लिए मजबूर हो गए? क्या मानसिक अवसाद, तनाव और मानसिक दबाव इंसान की सोच को इतना परेशान कर देता है कि वह जीवन से हार मान ले? फ़िल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत अपने अभिनय और मुस्कान से सबको लुभाते थे। अपने कुशल अभिनय से उन्होंने स्थापित एक्टरों की हवा निकाल दी थी। ऐसा क्या हुआ जो उन्होंने मौत को गले लगाया?

आये दिन फ़िल्म और टीवी के कलाकारों के सुसाइड के समाचार जितने दुखी करते हैं उससे कहीं अधिक आश्चर्य चकित करते हैं। क्या यही है पढ़े लिखे बुद्धिजीवियों की पढ़ाई का स्तर? या अवसाद, कुंठा और मनोरोग का प्रचंड दुष्प्रभाव?

स्कूल कालेज के विधार्थी अगर आत्महत्या जैसे क़दम उठाते हैं तो हमे हमारे संस्कारों पर शर्मिंदा होना चाहिए। ख़राब रिज़ल्ट, लव अफ़ेयर में असफलता या बलात्कार, बदनामी का डर आत्महत्या का कारण हो सकता है पर सुलझे विचार वाले, परिपक्व, समझदार इंसान ऐसा क़दम क्यों और क्या सोच कर उठाते हैं? यह आम आदमी की सोच से परे है।

समाचारों, अख़बारों, टीवी चैनल्स में ऐसी ख़बरों को सनसनी बनाकर पेश किया जाता है जो सिर्फ़ टीआरपी बटोरने के सिवा कुछ नहीं करते। मौत किसी की भी सगी नहीं होती। इंसान के मरने के बाद न जाने कितने मनगढ़ंत किस्से कहानियां छोड़ जाती है। कई सच्चाई से परे होती है और कई सिर्फ क़िस्सागोई के लिए बनती है और अंततः मौत एक तमाशा बन जाती है। पुलिस वालों के लिए एक दिलचस्प केस, जिसमें परत दर परत इज़्ज़त तार तार होती है।

सभी यह जानते हैं कि आत्महत्या बुज़दिली का काम है। क्या हमारा समाज इस बिगड़ी मानसिकता का इलाज कर पाएगा? नादान करे तो क्षमा का विकल्प है और समझदार करे तो माँ-बाप, पति-पत्नी, बच्चों के लिए ज़िन्दगी भर का नासूर, जहां दुःख, अपमान, आत्मग्लानि के साथ सिर्फ़ आंसू ही पास रहते हैं।

आत्महत्या, सुसाइड, आत्महत्या के कारण, आत्महत्या से कैसे बचें, suicide, suicide reasons, suicidal thoughts

आज आत्महत्या शब्द ख़ौफनाक शब्द बन गया है, जहां मरने वाला तो अपना सब कुछ गंवा देता है मगर जीवित लोगों के लिए मौत से भी बदतर ज़िन्दगी छोड़ जाता है। जहां समस्याएं हैं पर समाधान नहीं, प्रश्न है पर उत्तर नहीं, ज़ख्म है पर मलहम नहीं। बस लोग खोखली ज़िन्दगी जिये जा रहे हैं।

आज के समय में केवल किताबी ज्ञान ही ज्ञान चक्षु खोलने के लिए सक्षम नहीं है। ज्ञान का वास्तविकता से जुड़ना और प्रैक्टिकल होना ज़रूरी है। आज का समय वापस नहीं जा सकता, पर आने वाले कल को तो सँवारा जा सकता है इसीलिए कोशिश यही होनी चाहिए कि घर परिवार के लोगों मे संवाद हो, पारदर्शिता हो और सबके बीच हल्के फुल्के, हंसी मज़ाक के दौर हो, घर में तनाव का माहौल कम से कम हो। अकेलापन कम हो, लोग एक दूसरे की मानसिक परेशानियों को बांटें और दूर करें। ज़िंदगी है तो परेशानियां भी हैं, समस्याएं हैं तो उनके समाधान ढूंढे जा सकते हैं। अपने लिए जीना अच्छी बात है पर अपनों के लिए जीना और अच्छी बात है।

— अर्चना नायडू

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *