'बोलने' के पक्ष में शीर्ष न्यायालय, बड़े काम के बोल

तख़्तीसरोकार

'बोलने' के पक्ष में शीर्ष न्यायालय, बड़े काम के बोल

आब-ओ-हवा प्रस्तुति

“कहे या लिखित शब्दों का असर उन लोगों के मानकों से नहीं आंका जा सकता जिनमें हमेशा असुरक्षा की भावना है या जो आलोचना को हमेशा अपनी सत्ता या पोज़ीशन के लिए ख़तरा मानते हैं।”

और भी महत्वपूर्ण बातें उच्चतम न्याया-लय ने कही हैं। जबकि हास्य कलाकार कुणाल कामरा का मामला सुर्ख़ियों में है, कवि-सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के वीडियो के मामले में उच्च न्यायालय के नज़रिये को असंगत बताते हुए शीर्ष न्यायालय ने अभिव्यक्ति की आज़ादी पर कुछ मूल्यवान टिप्पणियां कीं, न्यायपालिका और पुलिस की समझ पर भी। लाइव लॉ ने न्यायमूर्ति अभय ओका द्वारा पठित ये टिप्पणियां प्रकाशित कीं, हिंदी अनुवाद यहां प्रस्तुत है…

विचार का जवाब विचार

“व्यक्तियों/समूहों द्वारा विचारों और दृष्टिकोणों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति एक स्वस्थ व सभ्य समाज का अभिन्न अंग है। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जिस गरिमापूर्ण जीवन की गारंटी दी गयी है, विचारों और दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बग़ैर, उस तरह जीना असंभव है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में, किसी व्यक्ति या समूह द्वारा व्यक्त किये गये दृष्टिकोण का विरोध किसी और दृष्टिकोण को व्यक्त करके ही किया जाना उचित है।

किसी व्यक्ति द्वारा व्यक्त किये गये विचार को भले ही बहुत से लोग नापसंद करते हों, तब भी उस व्यक्ति को विचार व्यक्त करने का जो अधिकार है, उसका सम्मान और संरक्षण होना ही चाहिए। कविता, नाटक, फ़िल्म, व्यंग्य और कला सहित साहित्य मनुष्य के जीवन को और अधिक सार्थक बनाता है।”

अदालतों का कर्तव्य

“भारत के संविधान के तहत मौलिक अधिकारों की गारंटी सुनिश्चित करने और उन्हें लागू करने के लिए अदालतें कर्तव्यबद्ध हैं। कभी-कभी हम न्यायाधीशों को बोले गये या लिखे गये शब्द पसंद न भी आएं, तब भी, अनुच्छेद 19 (1) के तहत मौलिक अधिकारों को क़ायम रखना हमारा कर्तव्य है।

विशेष रूप से, संवैधानिक अदालतों को नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में सबसे आगे रहना चाहिए। यह सुनिश्चित करना न्यायालय का परम कर्तव्य है कि संविधान और संविधान के आदर्शों का उल्लंघन न हो। हमेशा मौलिक अधिकारों की रक्षा और संवर्धन अदालतों का प्रयास होना चाहिए, जिसमें अभि-व्यक्ति की स्वतंत्रता भी शामिल है, जो उदार संवैधानिक लोकतंत्रों में नागरिकों का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है।”

पुलिस का कर्तव्य

“पुलिस अधिकारी को संविधान का पालन और और उसके आदर्शों का सम्मान करना चाहिए। संविधान की प्रस्तावना में यह निर्धारित है कि भारत के लोगों ने भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने और सभी नागरिकों के लिए विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सुरक्षित करने का निर्णय गंभीरता से लिया है। इसलिए विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे संविधान के आदर्शों में से एक है।
भारत का नागरिक होने के नाते पुलिस अधिकारी संविधान का पालन करने और अपने अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए बाध्य हैं।”

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