डिप्टी नज़ीर अहमद का तौबतुन्नसूह

डिप्टी नज़ीर अहमद का तौबतुन्नसूह

          “मुझको तुम्हारे माँ-बाप होने से इनकार नहीं। गुफ़्तगू इस बात में है कि तुमको मेरे अफ़आल में ज़बरदस्ती दख़ल देने का इख़्तियार है या नहीं। सौ मैं समझता हूँ कि नहीं है। तुम कहती हो कि हम बमजबूरी दख़ल देते हैं इस वास्ते कि माँ-बाप पर औलाद का तालीम करना फ़र्ज़ है। सो अव्वल तो मैं इसको दाख़िल-ए-तालीम ही नहीं समझता और माना कि दाख़िल-ए-तालीम हो भी तो मेरे नज़दीक सिर्फ दस-बारह बरस की उम्र तक औलाद मुहताज-ए-तालीम है। इसके बाद माँ-बाप को उनकी राय में कुछ दख़ल नहीं, वो अपना नुक़्सान और नफ़ा ख़ुद समझ सकते हैं।” (तौबतुन्नसूह पृष्ठ 115)

        “तौबतुन्नसूह”- शमसुलउलेमा (विद्वानों में सूरज की तरह- एक ख़िताब जो अंग्रेज़ों द्वारा विद्वानों को दिया जाता था) डिप्टी नज़ीर अहमद का तीसरा और मास्टरपीस नावेल है, जो 1877 में प्रकाशित हुआ। उर्दू का पहला नावेल “मरातुल उरूस” (प्रकाशन 1869) भी उन्हीं की रचना है।

         ये नावेल संवाद की शैली में लिखा गया है, जिसमें एक ख़ानदान के मुखिया नसूह की तौबा के बारे में बताया गया है। जो हैज़ा की बीमारी से ग्रसित होकर मृत्युशय्या पर ग़शी की हालत में पड़ा हुआ है। उसी हालत में परलोक के हालात देखता है। ख़्वाब में अपनी मौत और अपना हश्र देखता है। जब होश में आता है तब अपने तमाम गुनाहों से तौबा कर लेता है। फिर न दोहराने की क़सम खाता है और अल्लाह की राह में पूरे उत्साह और संकल्प के साथ ज़िंदगी गुज़ारने पर क्रियाशील हो जाता है। वो अपनी बीवी को ग़शी के दौरान देखे गये हालात बताता है। अपने बच्चों को सीधे रास्ते पर लाने की कोशिश करता है। छोटे बच्चे तो बात को मान लेते हैं लेकिन जो बड़े होते हैं वो नहीं मानते क्योंकि उनकी बुरी आदतें काफ़ी पुरानी हो चुकी हैं जिनमें बदलाव नहीं हो पाता। बार-बार की नसीहत से बड़ा बेटा कलीम घर छोड़ देता है और एक रियासत की फ़ौज में भर्ती हो जाता है मगर एक दिन ज़ख़्मी होकर घर आता है और दम तोड़ देता है। इस नावेल में सदाचार और नैतिकता को समझने और समझाने की कोशिश की गयी है। किस तरह अपने बच्चों में अच्छी आदतें डाली जाएं, कैसे उन्हें गुनाहों से दूर रखा जाये, कैसे उनको सीधे रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी जाये आदि। केवल शिक्षा नहीं अच्छी परवरिश भी अनिवार्य है। नेकी और धार्मिकता भी अपरिहार्य है।

          नावेल 12 अध्यायों में बंटा है। कथानक सुधारवादी है। अहम किरदार हैं- नसूह जो घर का मुखिया है। फ़हमीदा उसकी बीवी, कलीम बड़ा बेटा, नईमा बड़ी बेटी, हमीदा मंझली बेटी, सालहा, नईमा की सहेली और ख़ालाज़ाद बहन, अलीम और सलीम छोटे बेटे, मिर्ज़ा ज़ाहिरदार बेग़, कलीम का दोस्त आदि।

           तौबतुन्नसूह- का मतलब है विशुद्ध पश्चाताप। ऐसी तौबा जिसमें मक्कारी शामिल न हो ताकि अपने गुनाहों से तौबा करके अपने आप को बुरे अंजाम से बचाया जाये। इसके केंद्रीय पात्र का नाम इसी नज़रिये से रखा गया है। नसूह के अर्थ हैं- ख़ालिस, सच्चा, विशुद्ध।

परिचय : डिप्टी नज़ीर अहमद

डिप्टी नज़ीर अहमद को उर्दू का पहला नावेलनिगार होने का श्रेय हासिल है। आपका जन्म 6 दिसंबर 1836 को बिजनौर में हुआ। उनके पिता का नाम मौलवी सआदत अली था। प्रारंभिक शिक्षा घर और मदरसे में हासिल की। फिर दिल्ली कॉलेज में दाख़िला ले लिया। तालीम के बाद सरकारी नौकरी मिल गयी और तरक़्क़ी करते हुए डिप्टी इन्सपेक्टर मदारिस (स्कूल) हो गये। मशहूर नावेलों के अलावा क़ुरआन आसान शैली में अनुवाद, उल-हक़ूक़-ओ-अलफ़रायज़, मुबादी अलहकम, कानून-ए-इनकम टैक्स, कानून-ए-शहादत, तर्जुमा ताज़ीरात-ए-हिंद, ज़ाबता फ़ौजदारी दीगर किताबें हैं। इनकी किताबों के तर्जुमे कई भाषाओं में हुए। डिप्टी नज़ीर अहमद पर फ़ालिज का हमला हुआ और 3 मई 1912 को दिल्ली में देहांत हुआ।

azam

डॉक्टर मो. आज़म

बीयूएमएस में गोल्ड मे​डलिस्ट, एम.ए. (उर्दू) के बाद से ही शासकीय सेवा में। चिकित्सकीय विभाग में सेवा के साथ ही अदबी सफ़र भी लगातार जारी रहा। ग़ज़ल संग्रह, उपन्यास व चिकित्सकी पद्धतियों पर किताबों के साथ ही ग़ज़ल के छन्द शास्त्र पर महत्पपूर्ण किताबें और रेख्ता से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग़ज़ल विधा का शिक्षण। दो किताबों का संपादन भी। मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी सहित अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं से सम्मानित, पुरस्कृत। आकाशवाणी, दूरदर्शन से अनेक बार प्रसारित और अनेक मुशायरों व साहित्य मंचों पर शिरकत।

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