
- May 15, 2025
- आब-ओ-हवा
- 0
हर कवि के लिए सबसे बड़ा प्रश्न
मानव जाति की लाखों वर्षों की विकास-यात्रा के दौरान उसमें अड़चनों का बड़ा महत्व है। इन अड़चनों ने, चुनौतियों ने कई बार ही नहीं बल्कि बार-बार उसके अस्तित्व पर भी संकट खड़ा कर दिया होगा। कई प्रजातियां इन्हीं चुनौतियों से न निपट पाने के कारण समाप्त हो गयीं। दरअसल चुनौतियां ही विकास का एकमात्र रास्ता हैं। ये चुनौतियां कभी स्वयं पैदा होती हैं, लेकिन प्रायः उन्नति के लिए हम स्वयं भी इनको पैदा करते हैं। जो इन चुनौतियों के पार जाते हैं, वे विकास का नया सोपान गढ़ते हैं। जो नहीं जा पाते, या तो मिट जाते हैं या पूर्ववत् पिछड़ेपन के साथ रहते हुए अस्तित्व के संकट से जूझते रहते हैं। यह सिद्धांत सिर्फ़ जीव प्रजातियों के लिए ही सत्य नहीं है, बल्कि उन्नति के हर पक्ष के लिए सही है। कला-साहित्य, उद्योग, कृषि, विज्ञान इत्यादि सबके लिए बराबर मात्रा में सही है।
इस संदर्भ में हम देखें, तो भाषा से लेकर लोक कलाओं, लोक-पर्वों, परिधानों और साहित्य की विभिन्न विधाओं तक यही सिद्धांत उनके अस्तित्व, विकास और ज़रूरत की कुंजी प्रमाणित होता है। जिन प्रारंभिक छंदों में पहले कविता लिखी गयी थी, अब उस रूप में नहीं लिखी जा रही। गद्य का भी प्रारंभिक रूप जैसा था, अब ठीक वैसा नहीं है। साहित्य में जैसी और जिस भाषा का उपयोग किया जाता था, ठीक वैसी ही भाषा अब नहीं लिखी जा रही। तो जहाँ भी चुनौतियों से पार पाया गया, वहाँ वह विधा एक नवीनता के साथ अपने और उन्नत रूप में अस्तित्व में आयी। कविता, जो ऋग्वेद में अपने मंत्रों में गीतात्मक रुप में थी, वह विविध छंदों की यात्रा करते हुए गीत और नवगीत तक पहुँची और अपने इन रूपों में भी नित्य नवीनता की पक्षधर बनी हुई है।
चुनौतियाँ विकास का पथ हैं और पथ कभी समाप्त नहीं होता। उन्नति का कोई भी पथ जहाँ समाप्त होता है, वहाँ शिखर है। शिखर पर सदैव बने रहना असंभव है। उसे वहाँ से अपदस्थ होना ही है क्योंकि कोई और उसी उन्नति पथ पर चला आ रहा होता है।शिखर पर कोई एक ही रह सकता है,तो किसी एक का गिरना तय है। दरअसल पथ की मंज़िल नहीं पथिक का मुकाम हो सकता है, पथ तो आगे जाता ही है। तात्पर्य यह है कि गीत के नवगीत तक आकर, स्थापित होने के बाद बने रहने की चुनौती और कठिन हो गयी है।
कविता जहाँ रहती है, जहाँ वह बनी रहती है या बनी रह सकती है, वह स्थान लोक है और लोक में सब कुछ लय और लावण्यता के साथ ही रह पाता है। लोक में बोली-बानी से लेकर मुहावरे और गालियाँ तक लय और लावण्यता के साथ ही जीवित हैं। ऐसी दशा में नवगीत के लिए यह चुनौती बहुत बड़ी है कि वह वहां कैसे पहुँचे और ठहरे, जहाँ उसे जीवन मिल सकता है। जहाँ नवगीत बना रह सकता है। नवगीत ही नहीं, हर तरह की कला, शिल्प और साहित्य के रहने और बने रहने की जगह लोक ही है। लोक के बाहर रहने का अर्थ मिटने की दिशा में बढ़ते हुए अंततः मिट जाना ही है। मुक्तछंद ने इसकी परवाह नहीं की। वह मुक्तछंद से गद्य में बदल गया, आज जहाँ है, सब जानते हैं। नवगीत को भी इस चुनौती से पार पाना होगा।
आज हर कवि के लिए यह प्रश्न बहुत बड़ा है कि वह लोक के बीच कैसे पहुँचे? वास्तव में यह प्रश्न बड़ा नहीं बल्कि बुरी तरह से उपेक्षित प्रश्न है। यह उपेक्षा प्रश्न की ही नहीं, बल्कि लोक की उपेक्षा है। इसी उपेक्षा ने साहित्य को उसके जीवित बने रहने के योग्य आवास से उसे दूर कर रखा है। लोक तो बहुत सहज है। वहाँ नकार है ही नहीं, स्वीकार ही स्वीकार है। किन्तु वहाँ वही स्वीकार है, जो सहज होता है। बनावटीपन, कृत्रिमता, जटिलता वहाँ रह नहीं पाती। लोक तक पहुँचने के प्रश्न को ध्यान से देखें, तो वहाँ पहुँचने का जो रास्ता दिखता है, वह यह कि कविता को लोक तक लेकर कवि को ही जाना होगा और वहाँ जाने का जो सफल और प्राथमिक रास्ता है, वह मंच है। यानी कविता को लोक तक प्रथमत: उसके वाचिक रूप में ही ले जाना होगा क्योंकि लोक में जो कुछ भी जुड़ता और जीवित रहता है, वह व्यवहार रूप में ही रहता है और कविता का व्यवहार-रूप उसका वाचिक रूप है।

राजा अवस्थी
सीएम राइज़ माॅडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कटनी (म.प्र.) में अध्यापन के साथ कविता की विभिन्न विधाओं जैसे नवगीत, दोहा आदि के साथ कहानी, निबंध, आलोचना लेखन में सक्रिय। अब तक नवगीत कविता के दो संग्रह प्रकाशित। साहित्य अकादमी के द्वारा प्रकाशित 'समकालीन नवगीत संचयन' के साथ सभी महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय समवेत नवगीत संकलनों में नवगीत संकलित। पत्र-पत्रिकाओं में गीत-नवगीत, दोहे, कहानी, समीक्षा प्रकाशित। आकाशवाणी केंद्र जबलपुर और दूरदर्शन केन्द्र भोपाल से कविताओं का प्रसारण।
Share this:
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Reddit (Opens in new window) Reddit
- Click to share on Pinterest (Opens in new window) Pinterest
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Bluesky (Opens in new window) Bluesky