
- April 30, 2025
- आब-ओ-हवा
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ललिता-रफ़ी के सुरों की देसी मिठास
किशोर साहू निर्देशित “नदिया के पार” में नायिका कामिनी कौशल और नायक दिलीप कुमार पर एक बड़ा ही दिलकश दोगाना फ़िल्माया गया था- ‘मोरे राजा हो ले चल नदिया के पार’। भोजपुरी अंचल की देसी मिठास लिये इस दोगाने में मो. रफी के साथ जिस गायिका ने अपने मधुर कंठ से शहद भरा, उनका नाम है ललिता देऊलकर। चालीस के दशक में अनेक हिंदी और मराठी गानों में ललिता ने आवाज़ दी। वह बाद में मराठी के सुप्रसिद्ध गायक-संगीतकार बाबूजी यानी सुधीर फड़के की अर्धांगिनी बन ललिता फड़के कहलाने लगीं और विवाह के बाद स्वयं ही पार्श्व संगीत से हटकर गृहस्थी में रम गयीं। परंतु याद रखना होगा कि स्वरकोकिला के आगमन के दौर में जिन अनेक गायिकाओं का फ़िल्मी पार्श्व संगीत में दबदबा था, उनमें ललिता देऊलकर भी एक थीं।
ख़ैर, इस गीत को परदे पर देखना आज भी बड़ा सुखद है। बालों के बड़े से जूड़े में पंखों और सीपी का सिंगार किये और बड़ी सी बिंदी माथे पर सजाये, गले में सीपियों की माला धारण किये फुलवा (कामिनी) महाभारत कालीन मत्स्यकन्या से कम नहीं लगती। बस महाराज शांतनु के स्थान पर नायक कुँवर (दिलीप कुमार) है, जो एक सजीले शहरी युवक का प्रतिनिधित्व है। गाना आलाप से शुरू होता है जिसे दिलीप और कामिनी ने ही स्वर दिये हैं। फिर सी.रामचंद्र की तर्ज़ पर रिदम के साथ ललिताबाई (‘बाई’ मराठी में आदरसूचक संबोधन है) की आवाज़ में आलापी सुरीली होकर गूंजती है, जिसे रफ़ी अपनी नैसर्गिक मधुरता से रूमानियत के शीर्ष पर ले जाते हैं। परदे पर कुँवर के हाथ पकड़, बल खाती फुलवा पहली नज़र में ही दर्शकों के दिलों में समा जाती है।
गीत के आंचलिक पुट लिये शब्दों का कमाल भी ललिता, रफ़ी के गायन में रंग भरता है। गीत लिखा भोजपुरी के वरिष्ठ साहित्यकार मोतीलाल उपाध्याय, जिन्होंने अपना नाम रखा था मोती बी.ए.। ये उन दिनों की बात है (1938) जब यह पदवी बहुत बड़ी सामाजिक प्रतिष्ठा होती। प्रसंगवश बता दें मोतीजी के लिखे गीत “कठवा के नईया बनईहे मल्हवा, नदिया के पार दे उतार” को बॉलीवुड के पहले भोजपुरी गीत का श्रेय जाता है। यह गीत भी इसी फ़िल्म में ही था।
गीतकार मोती बी.ए. ने बड़ी चतुराई से हिंदी और भोजपुरी का मेल किया। यूं गाना बोलचाल की भाषा में है पर “सुरतिया तोहार, हमको देहो ना बिसार” जैसे शब्दों से गाने का लोकरंग खिल उठता है। सबसे विशेष बात यह कि ललिताजी से “मोरे राजा” गवाते समय ‘जा’ पर अतिरिक्त वज़न डलवाया गया। वो गाती हैं “मोरे राज्जा हो” और इस तरह नायिका फुलवा अपना प्यार और लड़ियाव एक अक्षर भर से व्यक्त कर देती है।
अंतरा देखें- “तूने ऐसा जादू डाला, बिक गई तेरे हाथ, जनम जनम तक संग रहूंगी, कभी न छोड़ूं साथ”। यहाँ तक गायन वैसा ही है जैसे हम कवित्त पढ़ते हैं। पर फिर तबले और ढोलक की उठान के साथ मनुहार भरे स्वर में नायिका कह उठती है- “मोरे राज्जा हो, हमको तू देहो ना बिसार” और बस, खल्लास! नायक के दिल पर प्यार का तीर चल जाता है। इस फ़िल्म में शमशाद बेगम, चितलकर, सुरेंदर कौर के साथ स्वयं लता मंगेशकर भी हैं। मगर उनको बारात में वधु के साथ नृत्य करते सहयोगी कलाकार के लिए स्वर देना पड़ा है। गाना है- “ओ गोरी, ओ छोरी कहाँ चली हो”। ये गाने बताते हैं लता को भी महान गायिका के रूप में लोहा मनवाने के लिए किन कठिन चुनौतियों से गुज़रना पड़ा था। रफ़ी साहब भी “मोरी रानी हो” गाते समय बहुत संभलकर गाते सुनायी देते हैं। कारण लाहौर से तब के बंबई में उनके करियर की शुरूआत हुए मात्र तीन साल ही तो बीते थे। भिंडी बाजार के भीड़भड़क्के वाले इलाके में दस बाय दस की खोली लेकर रहने वाला युवा गायक अपने सुरों को साधने में रत था। साथ ही अपने नये स्नेहसंबंध भी बना रहा था।ललिताबाई के साथ पार्श्व गायन के दौरान भी दोनों के बीच इतने सौहार्द्रपूर्ण संबंध बन गये थे कि ‘नदिया के पार’ प्रदर्शित होने के एक साल बाद जब सुधीर फड़के जी के साथ ललिता जी का विवाह महाराष्ट्रीय रीति रिवाज से हुआ तो वह न केवल समारोह में शामिल होते हैं बल्कि मराठी में एक पारंपरिक मंगलाष्टक भी गाते हैं।

विवेक सावरीकर मृदुल
सांस्कृतिक और कला पत्रकारिता से अपने कैरियर का आगाज़ करने वाले विवेक मृदुल यूं तो माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्ववियालय में वरिष्ठ अधिकारी हैं,पर दिल से एक ऐसे सृजनधर्मी हैं, जिनका मन अभिनय, लेखन, कविता, गीत, संगीत और एंकरिंग में बसता है। दो कविता संग्रह सृजनपथ और समकालीन सप्तक में इनकी कविता के ताप को महसूसा जा सकता है।मराठी में लयवलये काव्य संग्रह में कुछ अन्य कवियों के साथ इन्हें भी स्थान मिला है। दर्जनों नाटकों में अभिनय और निर्देशन के लिए सराहना मिली तो कुछ के लिए पुरस्कृत भी हुए। प्रमुख नाटक पुरूष, तिकड़म तिकड़म धा, सूखे दरख्त, सविता दामोदर परांजपे, डॉ आप भी! आदि। अनेक फिल्मों, वेबसीरीज, दूरदर्शन के नाटकों में काम। लापता लेडीज़ में स्टेशन मास्टर के अपने किरदार के लिए काफी सराहे गये।
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