यूरोप डायरी, europe diary
(शब्द और रंग, दोनों दुनियाओं में बेहतरीन दख़ल रखने वाली प्रवेश सोनी हाल ही, क़रीब महीने भर की यूरोप यात्रा से लौटी हैं। कवि और कलाकार की नज़र से, आब-ओ-हवा के लिए अपनी इस यात्रा के कुछ विशिष्ट अनुभव क्रमबद्ध ढंग से वह दर्ज कर रही हैं। उनके शब्दों में ऐसी रवानी है कि शब्दों से ही चित्र दिखने लगते हैं। साप्ताहिक पेशकश के तौर पर हर बुधवार यहां पढ़िए प्रवेश की यूरोप डायरी - संपादक)

सैर कर ग़ाफ़िल...: एक कलाकार की यूरोप डायरी-4

                   कुकेनहॉफ़, Keukenhof
                   20/4/2025

उसने लिखी किताब मुहब्बत की स्याही से
हर एक हर्फ़ महककर गुलाब हो गया

बात फूलों की हो और मुहब्बत का ज़िक्र न आये, ऐसा मुमकिन नहीं। फूल सौंदर्य का प्रतिमान होते हैं तो मुहब्बत का पैग़ाम भी बन जाते हैं। जहां फूल होते है वहां हर्ष होता है, उल्लास, उमंग होती है। यानी कि फूलों को देखकर जीवन में प्रेम का इंद्रधनुष खिल उठता है। कहते हैं जन्नत का रास्ता फूलों से सजा हुआ है। ऐसी जन्नत की सैर की हमने कुकेनहॉफ़ में।

द हॉग से हम ट्रेन से एम्स्टर्डम पहुंचे। आज की हमारी मंज़िल थी कुकेनहॉफ़, जिसे “यूरोप का बाग़ीचा” भी कहा जाता है। नीदरलैंड्स और हॉलैंड की दक्षिणी सीमा पर लिस्से (Lisse) नामक शहर में स्थित है यह स्वर्ग, जो एम्स्टर्डम से लगभग 40 किमी दूर है।  

मेरी आदत है, जब भी मैं नयी जगह जाती हूं उसके बारे में पहले से ही अपनी मुट्ठी की दुनिया (इंटरनेट) से थोड़ा बहुत समझ लेती हूं। परदेश में अपने भारतीय इंटरनेट का तो बहिष्कार हो चुका था और मुझे वहां के महंगे इंटरनेट पैकेज को खरीदने में कोई समझदारी नहीं लगी क्योंकि ट्रेन, बस, होटल में इंटरनेट की फ़्री सुविधा मिल रही थी। आपातकाल के लिए पति महोदय ने छोटा रिचार्ज करवा लिया था। परिवार और व्यवसाय से जुड़े रहने के लिए यह बहुत ज़रूरी था।

तो बात यह थी कि थके हारे पिछली रात लगभग 12 बजे होटल पहुंचने के बाद जैसे ही फोन को नेट की कनेक्टिविटी मिली मेरी थकान छूमंतर हो गयी। यह इंटरनेट का जादू है भैया जिसके शिकार हम लगभग दो दशक से होए पड़े हैं, मुक्ति के कोई आसार नहीं दिखते और क़ैद में परमानंद प्राप्त हो रहा है।

नेट सर्चिंग में फोटो देखे, इतिहास खंगाला, भौगोलिक संरचना की जानकारी ली और ट्यूलिप की सुंदर और ख़ुशबूदार दुनिया में सैर करते हुए नींद की सद्गति को प्राप्त किया।

सुबह एम्स्टर्डम पहुंचने के बाद हमें फ़ैरी से नदिया के उस पार जाना था। रोमांच की शुरूआत यहीं से हो गयी। टिकिट बुकिंग का काम बिटिया पहले से कर चुकी थी। टिकिट दिखाया और फ़ैरी में सवार हो गये। यह एक प्रकार की बड़ी सी नाव, जो सवारियों को पार पहुंचाती है। साइकिल प्रिय शहर में ज़्यादातर लोग अपनी साइकल के साथ सवारी कर रहे थे। फ़ैरी की बनावट आगे और पिछले हिस्से से खुले मैदान जैसी थी जिस पर खड़े होकर पानी के सुंदर दृश्यों को निहार सकते हैं। ऐसी कई नावें किनारे पर लगी थीं जो क्रमानुसार आ जा रही थीं। इस पार नीदरलैंड और उस पार हॉलैंड। दो देशों के बीच एक पानी का दरिया। दस मिनिट में हम उस पार पहुंचे और कुकेनहॉफ़ जाने की प्रक्रिया में शामिल हो गये। बुकिंग ऑफिस के बाहर बड़े बड़े गमलों में सुंदर फूल महक रहे थे, करीने से सजे आर्किड, ट्यूलिप जैसे स्वागत में कुमकुम दीप का थाल लिये खड़े हों।

कुकेनहॉफ़ पहुंचने के लिए बस की सवारी करनी थी। सफ़ाई की बात यहां भी करनी होगी क्योंकि बस की हर सीट के साथ गार्बेज बैग लगा हुआ था ताकि बस के फ़र्श को कोई गंदा न करे। समस्या है तो समाधान भी होते हैं करने वालों के लिए।

बस की खिड़की से बाहरी दृश्यों का आनंद लेते हुए मंज़िल पर पहुंचे। रास्ते में हमने फूलों के बड़े बड़े खेत देखे। लाल, नीले, पीले, गुलाबी… क़तार से उगाये हुए, ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे ख़ूबसूरत रंग बिरंगा नक्क़ाशीदार कालीन बिछा हुआ है। बड़ी बड़ी टरबाइन की क़तारें बहुत ही आकर्षक लग रही थीं। यहाँ के ज़्यादातर किसान फूलों की खेती करते हैं, ख़ास तौर पर ट्यूलिप बल्ब, जिन्हें दुनिया भर में निर्यात किया जाता है। अप्रैल में खेत पूरी तरह फूलों से ढंके हुए दिखाई देते हैं। यहां हर साल फूलों की परेड होती है और प्रदर्शनियां लगायी जाती हैं। लिस्से और इसके आसपास के क्षेत्रों में साइकलिंग और ट्रेन से फूलों के खेतों को देखना बहुत लोकप्रिय है।

यूरोप डायरी, europe diary

नयनाभिराम रास्ते से गुज़रते हुए हम कुकेनहॉफ़ के द्वार पर पहुंचे। बस वाले ने कहा आराम से घूमें, लेकिन लौटने के लिए सायं 6 बजे की आख़िरी बस ज़रूर पकड़ लें। जैसे जैसे हम गार्डन में प्रवेश कर रहे थे, ख़ुशबू से हमारी सांसें महक रही थीं। चारों ओर फूल ही फूल।

फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात है या बरात फूलों की
फूल के हार फूल के गजरे
शाम फूलों की रात फूलों की
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की…

ग़ज़ल की पंक्तियां ज़ेह्न में गूंज उठीं। इस जगह आकर विचार आया कि दुनिया कितनी सुंदर है। इसे सुंदर से सुंदरतम बनाया जा सकता है यदि कोई शिद्दत से चाहे तो।

कुकेनहॉफ़ दुनिया के प्रसिद्ध बाग़ीचों में से एक है और हर साल लाखों पर्यटक इसे देखने आते हैं। यह ख़ास तौर पर ट्यूलिप फूलों के लिए ही मशहूर है। इसके अलावा यहाँ डैफोडिल्स, हायसिंथ और वसंत ऋतु के अन्य फूल भी बहुतायत में हैं। मैं फूलों के नाम नहीं जानती ज़्यादा लेकिन उनके रंग मुझे जानते हैं। हर रंग प्यार करता है मुझे। यहां तो कितने रंगों के फूल बिछे हुए थे। जिधर देखो उधर फूल ही फूल।

कृत्रिम झरने उनकी सुंदरता को और निखार रहे थे। फूलों का समंदर था आंखों के सामने, एक लहर फूलों की लाल तो दूसरी पीली, कुसुमल, नीली, ब्राउन… सफ़ेद फूल तो तपस्वी से खड़े थे। एंट्री गेट पर ही हमें नक़्शा दे दिया गया था, उसके साथ साथ हम फूलों की दुनिया में खो रहे थे, हां ऐसी जगह खो भी जाएं तो कोई ग़म नहीं। जिस रस्ते से गुज़र रहे थे वो पिछले रस्ते से ज्यादा आकर्षक लग रहा था।

कैसा जादू बिखरा पड़ा था चारों ओर, कैमरे से फोटो लिये ही जा रहे थे। जहां जहां फूल लगे हुए थे उस क्षेत्र को रस्सी से प्रतिबंधित किया हुआ था, पर्यटक बाहर से ही फोटो ले रहे थे। फूलों को छूना भी मना था। इतनी साज सम्भाल ज़रूरी भी है। हमारे यहां दृश्य दूसरा होता है, पार्क या बाग़ीचे में फूल खिलने से पहले भक्तगण उन्हें तोड़ ले जाते हैं। मॉर्निंग वॉक के समय भगवान के सेवकों को मेहनत से पुष्प अर्जन करते हुए देखा जा सकता है। गली मुहल्ले के गार्डन में भी टहनियां खींच खींच कर ये लोग फूलों को हासिल करने में जी तोड़ मेहनत करते हैं।

एक बात और क़ाबिले तारीफ़ है, यहां मैने किसी भी धार्मिक स्थल पर फूलों का चढ़ावा, सजावट या हार नहीं देखे। ज़्यादातर फूल टहनियों पर महकते हुए मिले। फिर लौट आते हैं बाग़ीचे में, यह बाग़ीचा केवल वसंत ऋतु में ही खुलता है– आमतौर पर मार्च के अंत से मई के मध्य तक। केवल यही समय होता है जब ट्यूलिप और अन्य फूल पूरी तरह से खिले रहते हैं।

कुकेनहॉफ़ की शुरूआत 1949 में हुई थी। इसका उद्देश्य डच फूल उद्योग को बढ़ावा देना था। इस गार्डन में 7 मिलियन से ज़्यादा और 800 से अधिक प्रकार के ट्यूलिप हैं। सुंदर झीलें, झरने और फव्वारे इसकी सुंदरता को और निखार रहे थे। फूलों की प्रदर्शनी, गार्डन डिज़ाइन और गार्डन को सजाने के लिए जगह जगह कई सुंदर कलाकृतियाँ बनी हुई थीं।
फूलों से कौन प्रेम नहीं करता। रंग-बिरंगी प्राकृतिक सुंदरता को क़रीब से देखना कौन नहीं चाहेगा, यहाँ का नज़ारा किसी पेंटिंग से कम नहीं लग रहा।

यूरोप डायरी, europe diary

एक गीत और ज़ेह्न में आया-
हरी हरी वसुंधरा पर नीला नीला ये गगन
के जिसपे बादलों की पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाएं देखो रंग भरी
दिशाएं देखो रंग भरी चमक रहीं उमंग भरी
ये किसने फूल फूल से किया सिंगार है
ये कौन चित्रकार है ये कौन चित्रकार

न चाहते हुए भी लौटना पड़ा, प्रफुल्लित मन से फूलों की ख़ुशबू से सराबोर होकर बस में बैठे और एम्स्टर्डम आये। शाम के 6 बज गये थे और अब बारी थी ओपन बोट में बैठ कर शहर के बीच में बनी नहरों पर घूमने की। थकान होने के बावजूद घूमने और नयी नयी जानकारी हासिल करने का रोमांच कम न था। 7 बजे हम बोट में सवार हुए, बोट चलाने वाले कैप्टन ने सफ़ेद सेना की ड्रेस पहनी हुई थी। उसने अपना परिचय देते हुए सभी यात्रियों को माइक से सम्बोधित किया। बताया कि वह अपनी भाषा चुनकर इयर फ़ोन से उनके द्वारा दी गयी जानकारी सुन सकते हैं, यह एक ऐप के द्वारा सम्भव हुआ, जिसे हमें हमारे फ़ोन में डाउनलोड करना था। इंटरनेट की सुविधा बोट में थी।

नहरों पर घूमना अच्छा लग रहा था। कैप्टन ने ही बताया यहां लगभग 165 नहरें हैं और उन पर बने हुए लगभग 1200 पुल हैं। एक स्थान पर एक साथ सात पुल दिखायी दिये, जो एक के भीतर एक डिब्बे के समान दिख रहे थे। एक पुल को किसिंग पुल भी बताया गया। उसके लिए कैप्टन ने कहा कि इस पुल के नीचे से गुज़रते हुए अपने साथी को किस करें तो कभी बिछड़न नहीं होती, उनका प्रेम लम्बा होता है, इस किंवदंती से जुड़ी कहानी भी बतायी थी लेकिन वो मुझे याद नहीं रही। वेस्टर्न कल्चर में प्रेम प्रदर्शन पर कोई रोक टोक नहीं होती। चुम्बन और आग़ोश में लेना आम बात है। चलते फिरते ऐसे प्रेमालाप के दृश्य ख़ूब देखने को मिले। जैसे ही कैप्टन ने किसिंग बोला सभी जोड़े क्रियाशील हो गये। हम दोनों पति पत्नी शर्म से बगले झांकने लगे। संस्कार आसानी से नहीं बदलते।

इन ख़ूबसूरत नहरों की वजह से एम्स्टर्डम को “नॉर्दर्न वेनिस” भी कहा जाता है, नहरें इस शहर की न केवल सुंदरता बढ़ाती हैं, बल्कि शहर की ऐतिहासिक, आर्थिक और पर्यावरणीय धरोहर का भी हिस्सा हैं। 2010 में एम्स्टर्डम की नहरों को “UNESCO World Heritage Site” घोषित किया गया। एम्स्टर्डम की तीन प्रमुख नहरें हैं, जो शहर के केंद्र में गोलाकार रूप से बनी हैं।

  1. Herengracht (लॉर्ड्स की नहर)– सबसे ख़ास और अमीर लोगों के घर इसी नहर पर हुआ करते थे। अब वो बड़े होटलों में बदल गये हैं।
  2. Keizersgracht (कायज़र की नहर)– सबसे चौड़ी नहर है। यहां हमें ओपन बोट के अलावा क्रूज़ भी मिले, जिन पर पर्यटक रुक भी सकते हैं।
  3. Prinsengracht (प्रिंस की नहर) यह बहुत प्रसिद्ध और लंबी नहर है, “ऐनी फ्रैंक हाउस” इसी पर है। जिसे देखकर मैं थोड़ी भावुक हो गयी थी। अब वहां पर ऐनी की याद में म्यूज़ियम बना हुआ है।

इनके अलावा सैकड़ों छोटी-बड़ी नहरें हैं। कुल नहरों की लंबाई लगभग 100 किलोमीटर है।नहरों के किनारे जो घर बने हैं, वे बहुत पुराने लाल ईंटों से बने सुंदर डिज़ाइन के हैं, ये अधिकतर 17वीं सदी के बने हुए हैं। ये मकान लंबे, पतले और ऊँचे होते हैं क्योंकि ज़मीन की क़ीमत ज़्यादा है। कुछ मकान आगे झुके हुए हैं। सड़क की तरफ़ बड़ी खिड़कियां हैं, जिन पर लोहे की रेलिंग के साथ जालीदार पर्दे लगे हुए हैं। पर्यावरणप्रेमी इन झरोखों में फूलों के सुंदर पौधे लगाकर रखते हैं।

यहां के सभी मकान एक समान तल पर बने हुए हैं। किसी का भी दरवाज़ा ऊंचा नहीं है।जैसे एक ही आर्किटेक्ट/इंजीनियर ने इन्हें डिजाइन किया हो। नहरों पर घूमकर आये तो भूख का आभास होने लगा। स्नैक्स के नाम पर ब्रेड ही ब्रेड। इतनी सुंदर सुंदर वैरायटी होती है पिज़्ज़ा और ब्रेड की, बयान करना मुश्किल। दोनों टाइम रोटी पर मर मिटने वाले प्राणी ब्रेड से कैसे पेट भरें!

तो डिसाइड हुआ कि सुरेश रैना के होटल में डिनर किया जाये। बेटी और पति जी क्रिकेट प्रेमी हैं तो यह लुत्फ़ भी उठाया गया। कैब बुक करायी गयी, जब तक कैब आयी हमने रेड लाइट एरिया को बाहर से देखा क्योंकि हमारी पिकअप की लोकेशन उसी एरिया में थी।सजी धजी सुंदरियां खिड़कियों पर बैठी अपने ग्राहकों को आकर्षित कर रही थीं। कुछ देर इंतज़ार के बाद कैब आयी और हम रैना के होटल पर पहुंचे। यहां बैरे से हिंदी में बात करके जो सुकून मिला उससे आधी भूख शांत हो गयी। वहां दाल चावल रोटी खायी, मैंगो लस्सी पी और ट्रेन में बैठ कर द हॉग वापिस।

हमें अगली सुबह ब्रसेल्स की यात्रा पर निकलना था इसलिए होटल आकर थोड़ी बहुत पैकिंग कर के सो गये। मिलते हैं अब ब्रसेल्स में, तब तक के लिए शुभ रात्रि।
क्रमशः…

प्रवेश सोनी, pravesh soni

प्रवेश सोनी

कविता और चित्रकला, यानी दो भाषाओं, दो लिपियों को साधने वाली प्रवेश के कलाकार की ख़ूबी यह है कि वह एक ही दौर में शिक्षक भी हैं और विद्यार्थी भी। 'बहुत बोलती हैं औरतें' उनका प्रकाशित कविता संग्रह है और समवेत व एकल अनेक चित्र प्रदर्शनियां उनके नाम दर्ज हैं। शताधिक साहित्य पुस्तकों के कवर चित्रों, अनेक कविता पोस्टरों और रेखांकनों के लिए चर्चित हैं। आब-ओ-हवा के प्रारंभिक स्तंभकारों में शुमार रही हैं।

7 comments on “सैर कर ग़ाफ़िल…: एक कलाकार की यूरोप डायरी-4

  1. बहुत खूबसूरत लिखा है यह यात्रा वृतांत। एक साथ अनेक जगहों की जानकारी और वहां के सौन्दर्य का वर्णन प्रभावशाली है।
    आपको बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं प्रवेश सोनी जी।

    1. धन्यवाद आपका हीरालाल जी ,आपकी प्रतिक्रिया मिली अच्छा लगा

  2. फूलों से शब्दों से सजी नैसर्गिक सौन्दर्य से लबालब डायरी का पन्ना…
    बहुत-बहुत बधाई, दीदी

  3. इतना सुंदर लिखना कि किसी को घर बैठे ही यात्रा करवा देना। कमाल है। पढ़कर ही मन में चित्र बन गए। ऐसा लग रहा है इस यात्रा से हम ही लौटे हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद।

    1. धन्यवाद दीक्षा जी आपकी प्रतिक्रिया से मन प्रसन्न हुआ।

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