
- July 16, 2025
- आब-ओ-हवा
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(शब्द और रंग, दोनों दुनियाओं में बेहतरीन दख़ल रखने वाली प्रवेश सोनी हाल ही, क़रीब महीने भर की यूरोप यात्रा से लौटी हैं। कवि और कलाकार की नज़र से, आब-ओ-हवा के लिए अपनी इस यात्रा के कुछ विशिष्ट अनुभव क्रमबद्ध ढंग से वह दर्ज कर रही हैं। उनके शब्दों में ऐसी रवानी है कि शब्दों से ही चित्र दिखने लगते हैं। साप्ताहिक पेशकश के तौर पर हर बुधवार यहां पढ़िए प्रवेश की यूरोप डायरी - संपादक)
सैर कर ग़ाफ़िल...: एक कलाकार की यूरोप डायरी-7
पेरिस : भाग-2
25/4/2025
एक अच्छी नींद केवल आराम ही नहीं देती बल्कि अगले दिन के लिए शरीर और मन को पूरी ऊर्जा से तैयार करती है। पेरिस में आज हमारा दूसरा दिन था, सुबह जब आंख खुली तो मन और तन ऊर्जस्वित थे। बिटिया और पति जी अभी निद्रासन में थे लेकिन मैं उठ कर बाल्कनी में पेरिस की सुबह देखने का मोह नहीं छोड़ पायी। ठंडी हवा ने ज़्यादा देर बाहर नहीं रुकने दिया, फिर भी उगते सूरज की सुरमई रंगत ने मन को बांध लिया। रोड पर साइकिल सवार नजर आ रहे थे। यहां भी लोग जल्दी उठना पसंद करते हैं। और क्यों न करें, उद्यम करने वाले उतना ही सोते हैं, जितनी शरीर को ज़रूरत है।
भीतर आकर मैंने कॉफ़ी बनायी और मोबाइल पर पेरिस के पर्यटन स्थलों की जानकारी शुरू की। आज हमें जितना ज़्यादा हो सके पेरिस की सुंदरता को देख लेना था क्योंकि कल वापिस फ़्रैंकफ़र्ट पहुंचना है। वैसे डिज़नीलैंड, एफ़िल टावर और ब्रांडेड फ़ैशन शॉपिंग पेरिस की ख़ास पहचान है। और कलाप्रेमियों के लिए यहां बहुत सारे आकर्षण हैं।
लगभग नौ बजे हम बाहर जाने को तैयार हो गये। रेडी टू यूज़ वाला उपमा बनाकर नाश्ता किया। दिन भर का प्रोग्राम बनाया गया, तो लूव्र संग्रहालय को पहले नंबर पर रखा गया।इसके ऑनलाइन टिकिट बंद हो चुके थे, फिर भी इस उम्मीद से कि शायद ऑनस्पॉट टिकिट मिल जाये इसलिए पहले वहीं जाना तय हुआ।
दुनिया का सबसे बड़ा कला संग्रहालय
यहाँ लिओनार्डो दा विंची की प्रसिद्ध पेंटिंग ‘मोनालिसा’ समेत लगभग 38,000 कलाकृतियाँ प्रदर्शित हैं, जबकि कोष में कुल 500,000 से अधिक वस्तुएं संग्रहित हैं। इन्हें विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है- मिस्र, ग्रीक-रोमन, इस्लामी कला, मूर्तिकला, पेंटिंग, आभूषण, ड्रॉइंग इत्यादि।
मोनालिसा दुनिया की सबसे प्रसिद्ध पेंटिंग है। इसकी रहस्यमयी मुस्कान और आँखों की गहराई आज भी शोध का विषय बनी हुई है…
जब हम संग्रहालय पहुंचे तो वहां अच्छी ख़ासी भीड़ थी। टिकिट बुकिंग बंद हो चुकी थी, सीमित संख्या में ही लोग अंदर जा सकते थे इसलिए ऑनलाइन बुकिंग 5 दिन बाद की दिख रही थी। बाहर से बहुत सुंदर और विशाल था यह संग्रहालय, बिल्कुल शाही महल की तरह। प्रवेश द्वार पर कांच का बड़ा-सा पिरामिड बना हुआ था जिसका निर्माण 19वीं सदी में किया गया। सैलानी इसके ऊपरी भाग (कोण) को पकड़ते हुए विभिन्न एंगल्स से फ़ोटो ले रहे थे। हमने भी जगह-जगह से फ़ोटो लिये। सुंदर बाग़ीचा और द्वार बने हुए थे।
गिरजा और अन्य स्थल
बाहर इतनी सुंदरता, तो भीतर के ख़ज़ाने की समृद्ध कल्पना करते हुए हम आगे की मंज़िल नोट्रे-डेम कैथेड्रल देखने चल दिये। यह गोथिक वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है और यूरोप के सबसे प्रसिद्ध गिरजाघरों में से एक माना जाता है।
इसकी रंगीन काँच की खिड़कियाँ और पत्थर की आकृतियाँ (गार्गायल्स) दर्शनीय हैं। भीतर जाने की व्यवस्था क़तार में चलते हुए घुमावदार बेरिकेडिंग में थी। अंदर पहुंचने में हमें लगभग 30 मिनट लग गये। अंदर का भाग एकदम शांत, अंधेरा और बेहद सुंदर था। सभी ओर प्राचीन मूर्तियाँ, मोमबत्तियाँ और कलाकृतियां। बीच में लगी कुर्सियों पर बैठकर लोग प्रार्थना कर रहे थे।
विशाल रंगीन कांच की गोलाकार खिड़कियाँ, जो बाइबिल की कहानियाँ बता रही थीं, बहुत आकर्षक लग रही थीं। ये कैथेड्रल की सुंदरता और आध्यात्मिक ऊर्जा को दर्शा रही थी। यहां से हम गिरजे से लगी सड़क पर ही बने मार्केट की तरफ़ चले गये। यहां हमने थोड़ी शॉपिंग की। चलते-चलते मुझे थोड़ी कमज़ोरी-सी महसूस होने लगी और जी मिचलाने लगा। बहुत सावधानी रखने पर भी शायद बाहर का खाना-पीना मुझे हज़म नहीं हो रहा था। मैं नहीं चाहती थी मेरी वजह से ट्रिप ख़राब हो इसलिए साथ लायी दवाओं में से एंग्ज़ाइटी की दवा ली और आगे बढ़ने लगे।
अगली मंज़िल थी आर्क दे त्रिओंफ (Arc de Triomphe)। इसे नेपोलियन ने अपने विजयी सैनिकों की स्मृति में बनवाया था। यह पेरिस की सबसे प्रमुख सड़कों में से एक “शॉन्ज़ एलीज़े” के छोर पर स्थित है। यह सड़क लग्ज़री और फ़ैशन का हब है। दुनिया भर में मशहूर ब्रांड लुई विटॉं (Louis Vuitton) का फ़्लैगशिप स्टोर, Zara, H&M, Sephora, Nike, Adidas, Cartier, Guerlain (परफ़्यूम ब्रांड) के बड़े-बड़े शोरूम थे यहां।
फ़ैशन की दुनिया में पेरिस की अलग ही पहचान है। जब मैं इस सड़क से गुज़र रही थी तो इन ब्रांडेड कंपनियों के शोरूम की चकाचौंध में खो-सी गयी। बाहर से ही देखा इन्हें, भीतर जाकर विंडो शॉपिंग की भी नहीं सोच पाये। बहुत लोग आ जा रहे थे। इसी सड़क पर मैटेलिक ड्रेस और फ़ेस मेकअप में तीन लोग अपनी कलाकारी से करतब दिखा रहे थे। मैं कुछ क्षण उनके सामने रुक गयी, पतिजी बिटिया के साथ मुझे देखे बग़ैर आगे बढ़ गये।
एक मिनिट का फ़ासला रहा होगा और ये दोनों मेरी आंखों से ओझल हो गये। मेरी तो सांसे ही अटक गयीं, अब क्या होगा! मेले में खोये बच्चे जैसा लगने लगा, क्या करूंगी मैं! जहां तक नज़रें दौड़ सकतीं, वहां तक आठों दिशाओं में भीड़ में दौड़ाया। मेरे पांव वहीं ज़मीन से चिपककर रह गये। लगभग 5 मिनिट में दोनों सामने से आते दिखायी दिये तो लगा जैसे समंदर में डूबते हुए इंसान को कश्ती दिखाई दे गयी। थोड़ी डांट पड़ी कि अभी बिछड़ जाते तो क्या करतीं, न फ़ोन कर सकती हो, न पैसे हैं पास में… मैं उल्टा दोनों पर अपने डर को (जो थोड़ी देर में मुझे एकदम से भयभीत बालक बना गया था) बनावटी ग़ुस्से में बदलकर सवाल कर बैठी कि यहां आये किसलिए हैं! आप साथ क्यों नहीं चलते… ख़ैर बिटिया बीच-बचाव कर लंच करने के लिए एक गुजराती होटल लेकर गयी। मुझे खाने की बिल्कुल इच्छा नहीं थी। लिवर की कमज़ोरी की वजह से मैं अक्सर बाहर के खाने से बचती ही हूं।
भोजन मन भाया, शॉपिंग नहीं
हालांकि होटल बहुत अच्छा और भारतीय ख़ुशबू से सराबोर था। दरवाज़े पर एक गुजराती बालिका ने हिंदी बोलकर स्वागत किया। टेबल पर बैठते ही हमें पानी पीने को दिया। फ़्री का पानी पीकर जो आत्मशांति मिली उसे बता नहीं सकती। अन्य सभी जगह हमें खाने के साथ पानी भी ख़रीदना होता था। दो थालियां मंगवायीं, जिसे देखकर ही मन तृप्त हो गया। लगभग 5 सब्ज़ियां, पापड़, चटनी, स्वीट और चपाती.. विदेश में देशी खाना बहुत याद आता है।
इन दोनों ने मन भर खाना खाया। मैंने ऑरेंज जूस पिया जिसे उन्होंने मेरे सामने ही निकाल कर दिया। जूस पीकर मुझे भी बहुत अच्छा लगा। जूस पूरे दिन के लिए पर्याप्त नहीं था और मन में डर था कि कहीं तबीयत ज़्यादा न बिगड़ जाये।
शॉपिंग कहां से करनी चाहिए, यह जानकारी भी वहीं से ली। गुजराती बालाएं बहुत तहज़ीब से हमारी जिज्ञासाओं का जवाब दे रही थीं। एफ़िल टावर हम लाइट्स में शाम को देखना चाहते थे इसलिए मार्केट घूमना शुरू किया। कुछ शॉप्स देखीं, सामान उलटा-पलटा लेकिन लिया कुछ नहीं। अब आप सोचेंगे ऐसा क्यों! लोग तो स्पेशल शॉपिंग के लिए पेरिस आते हैं, तो भाई हम तो प्राइस टैग देखने के लिए यहां के मार्केट में घूम रहे थे। बिटिया ने बताया यहां का परफ़्यूम बहुत प्रसिद्ध है, कुछ तो ले लो। अब हमें कंजूस कहो तो बेशक कह सकते हो भाई, हम तो इन सबको पैसे की बर्बादी कहेंगे। जहां घर एक अगरबत्ती से महक जाता है, वहां दस तरह के रूम फ्रेशनर की क्या ज़रूरत?
यह ज्ञान मुझे परफ़्यूम शॉप पर हुआ, जहां बिटिया ने बाथरूम, किचन, रूम, बेडरूम और ख़ुद के लिए अलग-अलग ख़ुशबू के सैकड़ों परफ़्यूमों के बारे में बताया, जिनकी क़ीमत हज़ारों में थी।
मैं बाहर आ गयी। पतिजी पहले ही बाहर आकर खड़े हो गये थे। बेटी ने कहा मम्मी आप तो अच्छे से शॉपिंग करो, कौन-सा बार-बार आना होगा। मैंने उसे यही कहा कि बेटा तुम ले लो, जो लेना हो मेरे लिए अब ये काम के नहीं हैं। उसे कैसे कहूं कि मेरा जिगरा नहीं है इस तरह की महंगी शॉपिंग करने का।
शाम एफ़िल टावर के नाम
घूम-फिरकर हम एफ़िल टावर पहुंच गये। जिसे तस्वीरों में और फ़िल्मों में देखा, उसे आज छूकर देखेंगे। उजाले में भी बड़ा आकर्षण था इस टावर में। आस-पास मेले जैसा वातावरण, प्रवेश निःशुल्क लेकिन टावर के ऊपर जाने के लिए टिकिट था। यह तीन मंज़िला है, ऊपर एंटीना है और रेस्टोरेंट वग़ैरह भी। हज़ारों टन लोहा लगा है इसमें।
इसे 1889 में आयोजित “पेरिस विश्व मेले” के लिए बनाया गया था। यह मेला फ़्रांसीसी क्रांति की 100वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित हुआ था। टावर का निर्माण फ़्रांस की तकनीकी और औद्योगिक प्रगति को दिखाने के लिए किया गया था। शुरूआत में इसे अस्थाई ढांचा माना गया, लेकिन बाद में यह पेरिस का स्थाई प्रतिष्ठा प्रतीक बन गया।
चारों तरफ़ घूमते हुए हम वापिस बाहर निकल आये, तब तक इसमें लाइट्स शुरू हो गयी थीं। धीरे-धीरे रोशनी से जगमगाया तो ऐसा लगा जैसे यह अग्नि में से प्रकट हो रहा है। ऊपर तक लाइट्स जलीं तो इसका पूरा स्वरूप दिखायी दिया। बाहर इसके प्रतीक, सेल लाइट्स से जगमगाते हुए छोटे बड़े कई प्रकार के टावर लोग बेच रहे थे। बड़े सुंदर दिख रहे थे ये सब। हमने ख़रीदने का सोचा फिर ध्यान आया कि सामान की वज़न सीमा भी तय है। हम आस-पास के मार्केट जैसी जगहों पर घूम रहे थे, सभी जगह से यह अलग-अलग एंगल में दिख रहा था।
कुछ ही देर में लोगों का उत्साह भरा स्वर सुनायी दिया, देखा तो सभी की गर्दन और नज़रें टावर की ओर थीं। टावर की लाइट्स ब्लिंक कर रही थीं, ये क्षण वाक़ई रोमांचित कर रहे थे। मैंने तुरंत वीडियो बनाया। ऐसा प्रतिदिन रात में एक मिनिट के लिए होता है।
शम्मी कपूर और शर्मिला टैगोर की फ़िल्म “एन ईवनिंग इन पेरिस” जैसे सामने चलायमान हो रही थी। कई जोड़े फूलों से बने दिल के साथ, हाथ में हाथ डाले फोटो खिंचवा रहे थे। कुछ प्रेम में डूबे दुनिया से बेख़बर अपनी ख़बर बना रहे थे। चारों तरफ़ रूमानियत बिखरी पड़ी थी। कहते हैं लोग यहां रात-रात भर बैठे रहते हैं। गाने गूंज रहे थे और हम नज़ारों में डूबे हुए थे-
ये पेरिस की शाम सुहानी
प्यार की नगरी रूप की रानी…
आओ तुमको दिखलाता हूं पेरिस की इक रंगीन शाम
हमें तो लौटना था सो जगमग करता एफ़िल टावर देखकर हम भी होटल आ गये। सुबह हमें ट्रेन से फ़्रैंकफ़र्ट लौटना था।
क्रमशः

प्रवेश सोनी
कविता और चित्रकला, यानी दो भाषाओं, दो लिपियों को साधने वाली प्रवेश के कलाकार की ख़ूबी यह है कि वह एक ही दौर में शिक्षक भी हैं और विद्यार्थी भी। 'बहुत बोलती हैं औरतें' उनका प्रकाशित कविता संग्रह है और समवेत व एकल अनेक चित्र प्रदर्शनियां उनके नाम दर्ज हैं। शताधिक साहित्य पुस्तकों के कवर चित्रों, अनेक कविता पोस्टरों और रेखांकनों के लिए चर्चित हैं। आब-ओ-हवा के प्रारंभिक स्तंभकारों में शुमार रही हैं।
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अनुभूतियों को सुंदर दर्ज किया है। बधाई।