
- April 25, 2025
- आब-ओ-हवा
- 0
हम बोलेंगे (संपादकीय)
उर्दू, ईदी, शब्दकोष
भवेश दिलशाद
हम भूल हैं या दाग़ हैं उजले वरक़ नहीं
तारीख़ की क़सम तुम्हें दुहराओ मत हमें
अंग्रेज़ों ने रेल दी, डाकख़ाने दिये और न जाने क्या-क्या विकास किये, कुछ तामीरें तो ऐसी कि आज तक क़ायम हैं। लेकिन जिन रास्तों और जिन पुलों की जड़ों में मट्ठा डाल दिया, वो आज भी हरियाने को तरस रहे हैं। ज़रा पनपने को होते हैं कि वही सदियों पुराना ज़हर फिर उन्हें झुलसा जाता है।
आईआईटी के ‘जश्न-ए-रोशनी’ नाम पर वबाल; ‘जश्न-ए-अलविदा’ नाम की वजह से जांच; लेडी श्रीराम कॉलेज के पारंपरिक दीवाली मेले ‘नूर’ के नाम पर ऐतराज़; दिल्ली वि.वि. के बीआरए कॉलेज की थिएटर विंग का नाम ‘इल्हाम’ से बदलकर ‘आरंभ किया गया; और हाल ही, एक कथित लेखक ने हमें लिख भेजा कि आपके पत्र के उर्दू शीर्षक (आब-ओ-हवा) को स्वीकार नहीं कर रहा हूं, इसे ‘जलवायु’ करें तभी…
पिछले एक दशक में हमने सियासत के सर चढ़कर कान में मूतने के जाने कितने वाक़िए देखे। उर्दू के ख़िलाफ़ भद्दी बयानबाज़ी, पुराने बोर्डों से उर्दू लिपि मिटायी जाना, पुलिस और क़ानून की शब्दावली का हिंदीकरण, शहरों/स्थानों के नाम (अलबत्ता आज तक अहमदाबाद का नाम बदलते न बना) बदले जाना… और अब शब्दकोष में कलाबाज़ी हो रही है। कहते हैं मध्य प्रदेश सरकार ‘बेरोज़गार’ को अब ‘आकांक्षी’ युवा पुकारेगी। इसे आप उर्दू शब्द का हिन्दीकरण नहीं बल्कि जनता का जाहिलीकरण ही समझें। रुपया कितना गिरा, दुनिया के सामने ‘भारत’ की गरिमा व सम्मान कितना गिरा, बड़ा सवाल यह है कि ऐसी सियासत की वजह से इस देश का मूल विचार और हमारी जनता का चरित्र कितना गिर गया!
अंग्रेज़ी राज की सोच में कितनी दूरंदेश क्रूरता थी, ऐसे समझना चाहिए कि हम उसी के जंजालों में आज भी फंसे हुए हैं। उन्होंने जान लिया था कि सांप्रदायिक बंटवारे की जड़ भाषा की दुश्मनी में होगी। उन्नीसवीं सदी में हुआ यह कि हिन्दी के लिए हिंदुओं ने, फिर उर्दू के लिए मुसलमानों ने लामबंदी शुरू कर दी। एक साझा ज़ुबान जंग का मैदान बनती चली गयी। यही भाषायी झगड़ा मुल्क को दो-फाड़ करने का पेशलफ़्ज़ बना। गांधी और गांधीवादियों ने भले ही हिंदोस्तानी ज़ुबान की हिमायत की, लेकिन आज भी हम “हिन्दी बनाम उर्दू” का तमाशा लिये बैठे हैं।
बंटवारे और नफ़रत की आग पर जब तक लुटेरे रोटियां सेकेंगे, तब तक कैसे माना जाएगा कि अंग्रेज़ी राज ख़त्म हो गया। सियासत आपके साथ खेल रही है। जिसे आप ‘विचारधारा’ मानते हैं, वही ‘एजेंडा’ किसी चुनाव के समय पाला बदल लेता है। आपको नफ़रत के जंगल में जानवर बनाकर अकेला छोड़ देता है; आप ‘जश्न-ए-अलविदा’ में उलझे रहते हैं और यह ‘सौगात-ए-मोदी’ जैसा तुष्टिकरण लॉन्च कर देता है। एक पूरी ‘फ़ेक’ मुहिम चलाकर जिस समुदाय को भारत के विचार से ही बेदख़ल कर दिया जाता है, जिसकी भाषा, संस्कृति, अधिकार आदि पर बुलडोज़र चला दिया जाता है… अचानक उन्हें ईदी दी जाने लगती है!
यह तुष्टिकरण संपन्न, विचारशील और तरक़्क़ीपसंद मुसलमानों तक पहुंचेगा या लाचार, ग़रीब, बेरोज़गार मुसलमानों तक? भूखे का ज़मीर पर क़ायम रहना आसान नहीं। मॉल में गिफ़्ट वाउचरों से ख़रीदी करने वाले आप, उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि ये मामूली लोग तोहफ़े के डिब्बे क़बूल करने से इनकार कर देंगे? याद यह भी रखना है कि ग़रीब, मोहताजों का कोई मज़हब नहीं होता।
आंकड़े भी सरकारें ही ला रही हैं। एक दावा है कि देश में ग़रीब बहुत कम हो गये हैं। 32 लाख मुसलमान यह ‘ईदी’ लेने से मना कर दें तो शायद इस दावे पर यक़ीन आ जाये। बहरहाल, राष्ट्रीय शब्दकोष की फ़िक्र यह है कि ‘दावा’, ‘गारंटी’, ‘यक़ीन’ जैसे शब्दों से ‘छलावे’, ‘फ़रेब’ वाले मतलब की बू आती है। एक सियासत ‘ग़द्दार’ शब्द को ‘मुसलमान’ और ‘मोदी’ शब्द को ‘भगवान’ की गूंज में तब्दील करने में मुब्तिला है लेकिन इधर दिक़्क़त यह है कि ‘संप्रदाय’ शब्द से ‘दंगा’, ‘संघ’ शब्द से ‘नफ़रत’, ‘सत्ता’ शब्द से ‘धूर्तता’ और ‘जनता’ शब्द से ‘भीड़’ का अर्थ ज़ेह्न में आने लगता है! ऐसे जाने कितने लफ़्ज़ हैं जो मुंह का स्वाद ख़राब करने लगे हैं। अंग्रेज़ हमारी साइकी के साथ खेल गये हैं और हम सदियों के ऐसे नासूरों का इलाज तलाशने के बजाय पत्थर के नीचे पत्थर खोदने, खोजने में मशग़ूल हैं।
वो इत्रदान का अदब वो पानदान का शुऊर
वो ख़ुशबुएं ख़याल की वो ज़ाइक़ा ज़बान का

भवेश दिलशाद
क़ुदरत से शायर और पेशे से पत्रकार। ग़ज़ल रंग सीरीज़ में तीन संग्रह 'सियाह', 'नील' और 'सुर्ख़' प्रकाशित। रचनात्मक लेखन, संपादन, अनुवाद... में विशेष दक्षता। साहित्य की चार काव्य पुस्तकों का संपादन। पूर्व शौक़िया रंगमंच कलाकार। साहित्य एवं फ़िल्म समालोचना भी एक आयाम। वस्तुत: लेखन और कला की दुनिया का बाशिंदा। अपनी इस दुनिया के मार्फ़त एक और दुनिया को बेहतर करने के लिए बेचैन।
Share this:
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Reddit (Opens in new window) Reddit
- Click to share on Pinterest (Opens in new window) Pinterest
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Bluesky (Opens in new window) Bluesky