
- May 15, 2025
- आब-ओ-हवा
- 1
मात्रा पतन : कुछ विशेष तथ्य
ग़ज़ल और अन्य काव्य विधाओं में एक बड़ा अंतर लय को लेकर है। छंदमुक्त कविता में भी आंतरिक लय होती है जिसके छूटने पर वह मात्र एक बयान रह जाती है। लय प्राप्त करने का सरल उपाय छंद है किंतु छंद साधना कठिन है। ग़ज़ल का छंद चूंकि अरबी-फ़ारसी से आया, फलस्वरूप इसे समझने में अतिरिक्त कठिनाई है। यहाँ मात्रा पतन अर्थात दीर्घ को लघु की तरह उच्चारण करने में बरती जानी वाली सावधानियों के बारे में कुछ तथ्य प्रस्तुत हैं।
ग़ज़ल का छंद निरूपण उच्चारण के आधार पर होता है। किसी दीर्घ को दबाकर या हल्के में पढ़कर आगे बढ़ जाना, यह छूट ग़ज़लकार को मिलती है। इसका प्रयोग करते समय जाने अनजाने कहाँ चूक होती है, उसे देखते हैं।
ऐ मेरी माँ, तेरी सूरत से बेहतर
जहां भर में कोई सूरत नहीं है
इस शे’र में “ऐ” पर ध्यान दीजिए। इस शे’र में “ऐ” लघु के स्थान पर है। “ऐ” किसी को पुकारने और उसका ध्यान खींचने के लिए होता है। इस शब्द को आप दबाकर क्यों पढ़ेंगे? इसे तो ज़ोर देकर ही उच्चारित करना बेहतर होता है। होता यह है कि एक अक्षरीय शब्दों की मात्रा गिराने का सामान्य नियम व्याकरण की पुस्तकों में है इसलिए प्रायः यह ग़लती हो जाती है। ध्यान यह रखना है कि अगर एक अक्षरीय शब्द अपने मंतव्य के लिए दीर्घ समय मांगता है तो उसे दिया जाना चाहिए। इसी क्रम में दो शे’र देखिए:
वो काम हम करें ही क्यों जिससे समाज में
सौहार्द्र के बिगड़ने की संभावना भी हो
क्यों बेकार की ख़ाक दुनिया में छानी
जहाँ शांति भी चाहिए तो समर है
दोनों अशआर की पहली पंक्ति में “क्यों” की स्थिति पर ध्यान दीजिए। यहाँ “क्यों” लघु की तरह उच्चारित करना पड़ रहा है। जो शब्द पूरी पंक्ति को एक प्रश्न में परिवर्तित कर रहा है उसे दबाकर क्यों पढ़ना चाहिए? पढ़ेंगे तो ध्वनि निकलेगी “कूं”। इस टूटी-फूटी ध्वनि से पूरी पंक्ति गरिमा खो बैठेगी। “क्यों” को एक दीर्घ के बराबर समय मिलेगा। दूसरे तरीक़े से समझते हैं। “क्यों” और “यों” को सामने रखकर देखिए। दोनों दीर्घ हैं। हम देखते हैं कि “यों” को दबाकर पढ़ने की परंपरा है और उसे पढ़ा भी जा सकता है लेकिन “क्यों” को नहीं। उर्दू शायरी में ऐसी कोई मिसाल मेरे देखने में नहीं आयी जहाँ “ऐ”, “क्यों”, “क्या” जैसे शब्दों को दबाकर पढ़ा जाता हो।
“क्या” और “या” भी विशिष्ट शब्द हैं। “क्या” को दबाकर न पढ़ने के कारण वहीं हैं जो “क्यों” के हैं। अब “या” पर विचार करते हैं। “या” को दबाकर पढ़ने पर ध्वनि क्या होगी, “य”। इसी तरह “ये” की मात्रा हटने पर भी “य” सुनायी देगा। इस ग़फ़लत से बचने के लिए संभवतः “या” की मात्रा नहीं गिरायी जाती। किसी को इस कारण पर संदेह हो सकता है कि इसी आलोक में फिर “ये” की मात्रा क्यों गिरायी जाती है। इस संदर्भ में ध्यान रखा जाये कि सबसे सहजता से “ए” और “ई” की मात्रा गिरती है। “आ” की मात्रा गिराने पर अटकाव आता ही है। अब अन्य दृष्टि से विचार किया जाये। “या” जब भी आता है वह विकल्पों के मध्य आता है। उसे दबाकर पढ़ने से बात के अस्पष्ट रहने का अंदेशा रहता है। ‘राम या श्याम’ इसमें “या” को दबाकर पढ़ने से “राम य श्याम” जैसी ध्वनि ग़फ़लत में डाल सकती है। ऐसे संकट के समय “कि” को याद रखिए। कभी कभी “या” की समस्या “कि” के द्वारा हल की जा सकती है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं:
तेज़ बारिश हो या हल्की भीग जाएंगे ज़रूर
हम मगर अपनी फटी छतरी उठाएंगे ज़रूर
इस शे’र की पहली पंक्ति में “या” लघु के स्थान पर आया है। इस “या” को “कि” से बदलकर पढ़िए। अंतर स्पष्ट हो जाएगा। इसी तरह के अन्य शब्दों पर विचार करते हैं। एक शे’र देखिए :
मेरा सच से तआल्लुक अब नहीं है
हाँ ख़ुद से है मेरी तक़रार, फिर क्या
यहाँ “हाँ” जिस जगह आया है वह लघु के लिए है। “हाँ” एक दीर्घ है। “हँ” की तरह पढ़ने से शब्द अपना अर्थ खोये न खोये, अपना प्रभाव अवश्य खो बैठेगा। फिर “हाँ” के बाद एक पॉज़ आ सके तो वह अधिक प्रभावशाली होता है। यह पॉज़ किसी दीर्घ के बाद ही संभव होता है, लघु के बाद पॉज़ की जगह नहीं बनती।
ऐसे अनेक शब्द हैं जिनका प्रयोग करते समय लघु दीर्घ की यांत्रिक गणना काम नहीं आती। एक और शब्द देखते हैं। यह शब्द भी रंग बदलता है और उसके वैध कारण हैं। दो शे’र देखिए :
नहीं एक दिन सर पे आवे क़यामत
“हो” जाओगे तुम सख़्तो ग़म धीरे धीरे
ये कोई डर है ज़रूरत है या है मजबूरी
जो उनके सामने बैठे “हो” सर झुकाये हुए
दो जगह “हो” शब्द आया है। एक जगह ठीक है दूसरी जगह नहीं। अगले अंक में इस महत्वपूर्ण पहलू पर चर्चा।

विजय कुमार स्वर्णकार
विगत कई वर्षों से ग़ज़ल विधा के प्रसार के लिए ऑनलाइन शिक्षा के क्रम में देश विदेश के 1000 से अधिक नये हिन्दीभाषी ग़ज़लकारों को ग़ज़ल के व्याकरण के प्रशिक्षण में योगदान। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग में कार्यपालक अभियंता की भूमिका के साथ ही शायरी में सक्रिय। एक ग़ज़ल संग्रह "शब्दभेदी" भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित। दो साझा संकलनों का संपादन। कई में रचनाएं संकलित। अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
Share this:
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Reddit (Opens in new window) Reddit
- Click to share on Pinterest (Opens in new window) Pinterest
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Bluesky (Opens in new window) Bluesky
बहुत सराहनीय, बहुत उपयोगी लेख है।
लिखना सीखने वालों के अतिरिक्त यह तो शिक्षकों के भी बहुत काम है।
धन्यवाद