
- June 5, 2025
- आब-ओ-हवा
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हरियाली पर विकास की कुल्हाड़ी बस अब चली कि अब... इंदौर की आब-ओ-हवा पर विकास माफ़िया की नज़र ऐसी गड़ी है कि पर्यावरण की किसे पड़ी है! एक तरफ़ जब विश्व पर्यावरण दिवस का हल्ला है तब यहां कुएं-बावड़ी बंद होने के कगार पर हैं, जैव-विविधता को धक्का लग रहा है और क्या कोई सुन रहा है?
महाविनाश की तरफ़ इंदौर, आप बचाएंगे?
पर्यावरण दिवस पर इस बार इंदौर की बात से शुरू करते हैं। बात एक शहर की लेकिन दास्तान कई शहरों की। मप्र के औद्योगिक शहर इंदौर की जनता भीषण गर्मी से परेशान है। पारा लगातार 42 डिग्री के पार है और दिन हो या रात, लोग पसीने में तर हैं। शहर की 25 प्रतिशत जनता पानी के लिए तरस रही है और आधे से अधिक हिस्से के बोरिंग सूख चुके हैं। इन सबके बीच शहर के बीचो-बीच बने हुकुमचंद मिल के मिनी फॉरेस्ट को खत्म करने की शुरूआत हो चुकी है। यह ज़मीन हाउसिंग बोर्ड को दे दी गयी है, जहां कई बड़े प्रोजेक्ट बनाये जाएंगे। हाउसिंग बोर्ड ने दो हज़ार से अधिक पेड़ों को काटने के लिए सूचीबद्ध कर लिया है और यह काउंटिंग जारी है। यहां पीपल, बरगद, नीम, चंदन के हज़ारों पेड़ हैं। शहर की जनता सोशल मीडिया पर विरोध प्रदर्शन कर रही है और कई संस्थाएं अब विधिवत आंदोलन की तैयारी में हैं।
हुकुमचंद मिल में हाउसिंग बोर्ड ने दो हज़ार से अधिक पेड़ों को काटने के लिए नंबरिंग कर दी है। सभी पेड़ों पर नंबर लिख दिये गये हैं। अभी हाउसिंग बोर्ड सूची बना रहा है फिर यह सूची नगर निगम के उद्यान विभाग को देगा। यहां पर छोटे-बड़े पांच हज़ार से अधिक पेड़ हैं लेकिन बड़े पेड़ों की सूची में सिर्फ़ छह सौ से एक हज़ार पेड़ों को माना जा रहा है। जिनके तने एक निश्चित मोटाई से अधिक के हैं। इसमें भी उद्यान विभाग मौक़ा-मुआयना करने के बाद तय करेगा कि कितने पेड़ कटेंगे।
मिनी फ़ॉरेस्ट उजड़ने के नुक़सान?
1. शहर का प्रमुख ऑक्सीज़न ज़ोन ख़त्म होगा
2. यहां के कुएं, बावड़ी बंद किये जाएंगे
3. हज़ारों पक्षियों का बसेरा उजड़ जाएगा
4. इंदौर में बोरिंग का पानी और नीचे चला जाएगा
5. शहर के तापमान में वृद्धि और होगी
अभ्यास मंडल की मांग अनसुनी
अभ्यास मंडल के शिवाजी मोहिते ने कहा कि हमने हुकुमचंद मिल का दौरा किया था और प्रशासन से मांग की थी कि इसे मिनी फ़ॉरेस्ट के रूप में डेवलप करें। अब उसे हाउसिंग बोर्ड को दे दिया गया है और वह वहां प्रोजेक्ट लाएगा, जहां शहर का सबसे ख़ूबसूरत हरियाली से भरा क्षेत्र है।
शहर में शुरू हुआ आंदोलन
जनहित पार्टी ने शहर में इन पेड़ों को बचाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया है। जनहित पार्टी के संस्थापक अभय जैन ने बताया कि हम लोगों से अपील कर रहे हैं कि वे इन पेड़ों को बचाने के लिए आगे आएं। हम आंदोलन करेंगे, धरना देंगे और क़ानूनी लड़ाई भी लड़ेंगे। सोशल मीडिया के माध्यम से भी मुहिम छेड़ी जा रही है। इंदौर इनिशिएटिव चैनल का यह वीडियो एक सार्थक प्रयास के रूप में देखा गया है।
https://www.youtube.com/watch?v=-gzu2KswDDc
हाउसिंग विभाग की कवायद
उद्यान विभाग के दरोगा आशीष चौकसे ने बताया कि यहां पर छोटे-बड़े पांच हज़ार से अधिक पेड़ हैं। हाउसिंग बोर्ड अभी पेड़ों की सूची बना रहा है। दो हज़ार से अधिक पेड़ों पर नंबर लगाये गये हैं। अभी हमें फ़ाइनल सूची नहीं दी गयी है। सूची मिलने के बाद उद्यान विभाग की टीम मौक़ा-मुआयना करेगी और फ़ाइनल करेगी कि कितने पेड़ काटे जाएंगे।
संरक्षित करने का प्रयास
पर्यावरणविद् ओपी जोशी ने कहा कि शहर के बीच में बने ये ऑक्सीज़न ज़ोन बेहद क़ीमती हैं। सैकड़ों साल पुराने पेड़ों का विकल्प नये पौधे नहीं हो सकते। विदेशों में पेड़ों को बचाना सरकारों की प्राथमिकता होती है। इंदौर में भीषण गर्मी बढ़ रही है और भूमिगत जलस्तर ख़त्म हो चुका है। इसके बावजूद जंगलों को उजाड़ा जाना! प्रशासन को प्रयास करना चाहिए कि इन बेशक़ीमती पेड़ों को बचाया जाये। यही शहर की असली संपत्ति हैं।
- (आब-ओ-हवा पर विकास की भेंट चढ़ रहे नगरों का मुआयना जारी रहेगा। अगर आप भी अपने शहर की बदहाली, पर्यावरण की चिंता से जुड़े मुद्दों पर तथ्यात्मक बात करना चाहते हैं तो लिख भेजिए हमें अपने शहर का दर्द [email protected] पर।)
चार पीढ़ी से सेवा
यहां एक राम हनुमान मंदिर भी बना है। इस मंदिर में विजय रामदास महाराज चार पीढ़ियों से सेवा कर रहे हैं। हुकुमचंद सेठ ने उन्हें यहां मंदिर बनाने की ज़मीन दी थी। उन्होंने बताया कि यहां सैकड़ों मोर, कबूतर, गिलहरी, गाय, बकरी आदि जानवर रहते हैं। यहां हज़ारों पेड़ हैं और कई पेड़ सैकड़ों साल पुराने हैं। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में गर्मी से परेशान लोग ठंडक और सुक़ून के लिए आते हैं।
इंदौर की बदलती तस्वीर
इंदौर, एक ऐसा शहर, जिसके इलाक़ों के नाम आज भी प्रकृति आधारित हैं जैसे भंवरकुआं, गोराकुंड जैसे नाम हों या पलासिया, नवलखा, इमली बाज़ार जैसे बड़े मोहल्लों के नाम, ये सब पेड़-पौधों, कुओं-बावड़ियों के महत्व को दर्शाते रहे हैं। उदाहरण के रूप में नवलखा के बारे में बताते हैं कि यहां नौ लाख पेड़ हुआ करते थे या पलासिया नाम पलाश के पेड़ों से घिरे इलाक़े का नाम था। लेकिन अब ट्रैफ़िक के शोर, सीमेंट कंक्रीट की आड़ और कचरे व गाड़ियों के धुएं के दमघोंटू माहौल में इंदौरवासियों को भी शायद ही इन नामों से क़ुदरती ख़ुशबू आती हो।

अर्जुन रिछारिया
पिछले 15 सालों से अधिक समय से मीडिया की दुनिया में एक पहचान बनाने वाले अर्जुन सरोकार आधारित पत्रकारिता के लिए प्रतिबद्धता रखने की बात कहते हैं। प्रिंट और वेब के साथ ही डिजिटल मीडिया का अनुभव रखने वाले अर्जुन को पत्रकारिता के लिए कुछ महत्वपूर्ण पुरस्कार मिल चुके हैं। इसके साथ ही वह सामाजिक कल्याण, पर्यावरण संरक्षण आदि मुद्दों पर बतौर एक्टिविस्ट भी सक्रिय हैं।
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“विकास” और “वहनीयता” के बीच का संतुलन बनाए रखना महत्वपूर्ण है, लेकिन आक्रामक विकास के इस युग में, हम इस महीन रेखा की गणना करने में चूक रहे हैं। अगर यह जारी रहा, तो चीजें सुखद नहीं दिख रही हैं।