donald trump, peter navarro

‘ब्राह्मण’ से नवारो का मतलब? मीडियाई मूर्खता को समझें

 

                अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पिछले कार्यकाल में व्हाइट हाउस के ट्रेड सलाहकार रहे पीटर नवारो ने जिसमें कहा, “Brahmins were profiteering at the expense of the Indian people” (आम भारतीयों के ख़र्च पर ‘ब्राह्मण’ मुनाफ़ाख़ोरी कर रहे हैं), वह टिप्पणी अब भी ध्यान खींच रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मत शनिवार को मीडिया में हैं, जिसमें वह नवारो की इस टिप्पणी को ब्रिटिश राज की तरह ‘डिवाइड एंड रूल’ का नैरैटिव बता रही हैं और इस टिप्पणी के जो संदर्भ खोजकर लाये गये हैं, उन्हें जबरन की कसरत कह रही हैं। यह टिप्पणी क़रीब पांच दिन पहले नवारो ने की थी और तबसे ही मीडिया का एक बड़ा वर्ग जहालत भरी रिपोर्ट्स परोसने के लिए उतावला नज़र आया। बग़ैर शब्द और बयान का संदर्भ समझे एक से एक नासमझी भरी ख़बरें और स्टोरी पेश करने में इस बार भी मीडिया ने अपनी कमअक़्ली खुलकर ज़ाहिर की। नवारो ने जिस अर्थ में ‘ब्राह्मण’ शब्द इस्तेमाल किया, उससे उनका आशय अंबानी और अडानी जैसे उद्योगपतियों से था। इस बारे में आपको यहां बताएंगे, पहले ये देखिए कि मीडिया किस तरह आम लोगों को बेवकूफ़ी भरा कंटेंट परोसता है।

मीडिया ने इस बयान को ब्राह्मण जाति से जोड़कर अजीब तरह का कंटेंट परोसना शुरू कर दिया। बग़ैर यह समझे कि एक अमरीकी राजनयिक क्या बग़ैर संदर्भ और व्याख्या समझे किसी शब्द का इस्तेमाल करेंगे? क्या वह व्यक्ति जो हार्वर्ड जैसे विश्वविद्यालय से पीएचडी कर चुका है, उच्च​ शिक्षित है और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर भी रह चुका है, वह किसी दूसरी भाषा के शब्द को इतनी लापरवाही से इस्तेमाल कर सकता है? मीडियाई उत्साहियों ने ऐसे किसी भी पहलू पर ग़ौर​ किये और नवारो के बयान में ‘ब्राह्मण’ शब्द के संदर्भ पर शोध किये बग़ैर ही कंटेंट बनाने और बाज़ार में फेंकने का काम किया।

कुल मिलाकर मीडिया इस बार भी सोशल मीडिया की तरह ही पेश आया, जहां लोग अपने पूर्वाग्रहग्रसित और अधकचरी, भ्रामक या तथ्यहीन जानकारियों के आधार पर अपने ओपिनियन सार्वजनिक करने में ज़रा देर नहीं लगाते। मीडिया की ऐसी जहालत के कुछ नमून देखिए:

  • रिपब्लिक भारत के चैनल पर Is Trump Trying To Create Brahmin Divide In India? शीर्षक से चर्चा प्रसारित की गयी। इसमें भारतीय धर्म पार्टी की संस्थापक अनुराधा तिवारी ने बड़े भारतीय उद्योगों के नाम गिनाकर बताया कि ये ब्राह्मणों द्वारा नहीं चलाये जा रहे हैं। उन्होंने पीएसयू के नाम भी गिनाये और कहा कि ये भी ब्राह्मणों द्वारा संचालित नहीं हैं। अनुराधा अपने वक्तव्य में ब्राह्मणों का बचाव करते हुए और भारत व जाति विशेष के प्रति चलाये जा रहे ग़लत नैरैटिव को लेकर काफ़ी उग्रता से बात करती हुई दिखीं। (अनुराधा तिवारी ने आरक्षण के विरोध में और अगड़ी जातियों के पक्ष में यह पार्टी बनायी है। मीडिया रिपोर्ट्स कुछ ही महीने पहले यह पार्टी बनाने के पीछे उनकी कहानी बताती हैं।)
  • ‘ब्राह्मणों ने सदियों से विज्ञान में दिया योगदान… पीटर नवारो के विवादित बयान से सोशल मीडिया पर छिड़ी जंग’ शीर्षक से न्यूज़18 हिंदी पर कुणाल झा की रिपोर्ट कहती है नवारो ने भारतीय ​ब्राह्मणों पर निशाना साधा और इसके बाद यह रिपोर्ट सोशल मीडिया पर नवारो की आलोचना संबंधी पोस्ट का ब्योरा देती है। इस पोस्ट में हिंदू भावनाओं को उजागर किया गया। यह रिपोर्ट 2 सितंबर की है, यानी इन प्रस्तोताओं के पास नवारो के बयान के बाद उसे समझने के लिए पर्याप्त समय तो था।
  • जनसत्ता जैसे समाचार समूह ने भी बग़ैर समझ बूझकर इसी लहर में एक वीडियो कंटेंट तैयार किया ‘अमेरिका में टॉप कंपनियों के सीईओ हैं ये भारतीय ब्राह्मण, पीटर नवारो भी रह जाएंगे हैरान’। और मज़ाक़ यह कि यह कंटेंट 3 सितंबर को पोस्ट हुआ है।

ऐसे और भी कई उदाहरण हैं, टीवी, अख़बार से लेकर इंटरनेट पर कई समाचार समूहों ने नवारो के बयान को ब्राह्मण जाति से जोड़कर ख़ूब हल्ला मचाया। अब आप यह एक्स पोस्ट देखिए…

sagarika ghosh tweet

तृणमूल कांग्रेस सांसद सागरिका घोष ने 1 सितंबर की सुबह क़रीब दस बजे यह पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने ‘बॉस्टन ब्राह्मण’ शब्द के बारे में बताते हुए कहा कि यह शब्द बहुत पहले से संपन्न वर्ग के लिए अमेरिका में इस्तेमाल होता रहा है। उनके पोस्ट के अनुसार, “अंग्रेज़ी भाषी दुनिया में अब भी यह शब्द यानी ‘बॉस्टन ब्राह्मण’ सामाजिक या आर्थिक प्रतिष्ठा के हिसाब से अभिजात्य वर्ग (ताज़ा मामले में अमीरों के संदर्भ में) के लिए इस्तेमाल होता है। एक्स पर निरक्षरता का आलम हैरान करता है।”

सागरिका के इस पोस्ट को ही मीडिया आउटलेटों ने देख लिया होता, तो उनकी समझ बढ़ सकती थी। लेकिन इस मीडिया के स्रोत कहीं और ही हैं। सत्य हिंदी ने 3 सितंबर को एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें ‘बॉस्टन ब्राह्मण’ का भी ज़िक्र है लेकिन इसका प्रमुख विषय और अधिक चौंकाने वाला है। यह रपट नवारो पर कार्रवाई की उस मांग पर आधारित है, जो अमेरिकी हिंदू समूह ने उठायी है। इस रपट का एक पैरा इस तरह है:

“अमेरिका स्थित हिंदू पॉलिसी रिसर्च एंड एडवोकेसी कलेक्टिव यानी HinduPACT की इकाई अमेरिकन हिंदूज अगेंस्ट डिफेमेशन यानी AHAD ने पीटर नवारो के खिलाफ कड़ा रुख़ अपनाया है। संगठन ने नवारो के इस बयान को न केवल सांस्कृतिक अपमान बताया, बल्कि इसे भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को नुक़सान पहुंचाने वाला भी करार दिया।”

तो क्या इसका अर्थ यह है कि अमेरिका में जो हिंदू समाज के ठेकेदार बनी संस्थाएं हैं, उनके कर्णधारों को भी ‘बॉस्टन ब्राह्मण’ शब्द का संदर्भ और इतिहास नहीं पता है! क्या ये संस्थाएं भी नफ़रती एजेंडा चलाने की उपकरण भर हैं? और यह भी कि इस तरह की संस्थाओं से हिंदुओं की छवि दुनिया में कैसी बनती है?

कहां से आता है नैरैटिव?

भारत में मीडिया वास्तव में अपना एजेंडा या नैरैटिव अपने अपने ख़ेमे के नेताओं के सुर में सुर मिलाकर चलाता हुआ नज़र आता है। सागरिका घोष के एक पोस्ट के बाद कुछ मीडिया आउटलेटों ने इस तथ्य पर रिसर्च की और ‘बॉस्टन ब्राह्मण’ संबंधी शोध कर जानकारों के हवाले से यह जानकारी जुटायी कि अमेरिका में ‘बॉस्टन ब्राह्मण’ शब्द 19वीं सदी में लेखक ओलिवर वेंडेल होम्स सीनियर द्वारा गढ़ा गया था। 1860 में उन्होंने अपने उपन्यास ‘एल्सी वेनर’ में यह शब्द इस्तेमाल किया था, जो न्यू इंग्लैंड के धनी, प्रोटेस्टेंट और अंग्रेज़ी मूल के अभिजात वर्ग का बोध देता है।

दूसरी ओर, कथित ‘गोदी’ मीडिया ने दूसरा नैरैटिव पकड़ा। एक्स पर जब यूज़रों ने ‘ब्राह्मण’ जाति के संदर्भ में नवारो के बयान पर आलोचना और गाली गलौज शुरू की, तब सागरिका ने उपर्युक्त पोस्ट किया और उसके घंटे भर के भीतर शिवसेना की सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने एक्स पर लिखा:

“हां मुझे पता है बॉस्टन ब्राह्मण का संदर्भ क्या है, लेकिन यह ‘ब्राह्मण’ शब्द अचानक ऐसे ही उछलकर अमरीकी प्रशासन की ज़ुबान पर नहीं आ गया है, भारत के संदर्भ में इसका इस्तेमाल जान बूझकर किया गया है इसलिए मेहरबानी करके इसकी व्याख्या न कीजिए।”

गोदी मीडिया को शायद यह वाला नैरैटिव जंच गया हो। वैसे ज़्यादा संभावना इसी बात की है कि उतावले मीडिया ने ये दोनों पोस्ट देखे ही न हों और अपनी समझ से ही कंटेंट क्यूरेशन की दुकान लगा ली हो।

तो कौन हैं ये ‘ब्राह्मण’?

“होम्स सीनियर ने जानबूझकर ब्राह्मण शब्द हिंदू धर्म से उधार लिया था, जहाँ ब्राह्मण पारंपरिक वर्ण व्यवस्था में सर्वोच्च जाति है, जिसका ऐतिहासिक संबंध पुजारियों, शिक्षकों और विद्वानों से रहा है। इस शब्द के प्रयोग से वह बॉस्टन के कुलीन परिवारों और हिंदू पुरोहित वर्ग के बीच साम्य दिखा रहे थे-दोनों ही समूहों का सामाजिक स्तर ऊँचा था, वे शिक्षा और संस्कृति से जुड़े थे और उन्होंने अपना दर्जा आनुवंशिकता और परंपरा के माध्यम से बनाये रखा था।” ऐसी जानकारियां खोजी पत्रकार लेकर आये हैं।

अंतत: मूल प्रश्न पर लौटते हैं। नवारो ने जो बयान दिया है, उसके और उस बयान में आये ‘ब्राह्मण’ शब्द के संदर्भ में कैसे समझा जाये कि अमरीकी प्रशासन किसे निशाने पर ले रहा है। अगर अभिजात्य या संपन्न वर्ग के अर्थ में रूस के साथ तेल कारोबार की बात की जा रही है, तो यक़ीनन भारत के बड़े औद्योगिक घरानों को ही टारगेट किया गया है। नवारो ने अपने बयान में ‘भारत को रूस का धोबीघाट’ भी कहा है और भारत को सबसे ज़्यादा टैरिफ़ वसूलने वाला देश भी। ये गंभीर आरोप हैं। क्या अंबानी जैसे समूह रूस से सस्ते दामों पर तेल ख़रीदकर आम भारतीयों और शेष दुनिया को महंगे दामों पर बेच रहे हैं? क्या देश में आर्थिक असमानता भयावह होती जा रही है? नवारो के इस पूरे बयान को आसान शब्दों और तमाम फ़ैक्ट्स के साथ राजीव सिंह ने अपने वीडियो में समझाया है।

इस पूरे विश्लेषण का मक़सद यही है कि पाठक तथ्यपरक सूचनाओं और सूचनाओं की नीयत को समझने की दिशा में आगे बढ़ें।

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