
- September 30, 2025
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नियमित ब्लॉग रति सक्सेना की कलम से....
कविता से इलाज : कुछ केस स्टडीज़
हम देखते हैं मध्ययुगीन कवियों में, वे कविता संगीत की तरह अन्तर्मन की आवाज़ से सुन रच रहे थे। उदाहरण के लिए मीरा कृष्णभक्त थीं, लेकिन उनकी जीवनी से प्रतीत होता है कि वे उस व्यवस्था से लड़ रही थीं, जो महिलाओं को अपनी आस्था चुनने की स्वतंत्रता नहीं देती थी। उनके गीत कृष्ण के प्रति गहरी आस्था और प्रेम से भरे थे, जिन्हें उन्होंने पारिवारिक परंपरा के विरुद्ध चुना था। पारिवारिक व सामाजिक आक्षेपों के बावजूद, उन्होंने अपने स्वामी के लिए प्रेमगीत गाना जारी रखा, जबकि उन दिनों शाही परिवार की महिलाओं को सार्वजनिक रूप से गाने की छूट नहीं थी। उनके गीत इतने भावपूर्ण हैं कि वे आगे आम भारतीय महिला की आवाज़ बनते गये। उनके गीतों को आलोचक भक्ति गीत कहते हैं, लेकिन वे मीरा की अंतरात्मा की आवाज़ लगते हैं, जो व्यवस्था के ख़िलाफ़ खड़ी होना चाहती थीं। उन्हें भारतीय काव्य इतिहास के बेहतरीन कवियों में एक के रूप में याद किया जाता है। हम कह सकते हैं मीरा ने कविता के माध्यम से अपनी आवाज़ पायी या शायद कविता ने एक तरह की चिकित्सा के रूप में काम किया, जिसने उन्हें सभी बाधाओं के ख़िलाफ़ मज़बूती से खड़े होने की शक्ति दी।
इसी तरह ललदद या लल्लेश्वरी, जो 14वीं सदी की कश्मीरी संत कवयित्री थीं, जिनका जन्म एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। ससुराल वालों की क्रूर यातनाओं से दुखी होकर घर छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने सभी प्रकार के अनुष्ठानों, जातियों और धर्मों के ख़िलाफ़ अपना अभियान शुरू किया और ‘वाक’ या आध्यात्मिक गीतों का जाप करती घूमती रहीं।
इसी प्रकार दक्षिण भारतीय कवि अक्का महादेवी (12वीं शताब्दी की कन्नड़ कवि) का जीवन कठिन था और उन्हें अकेले ही सभी बाधाओं और प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा। उनकी कविताएं गहरी और हीरे जैसी तराश लिये हैं-
“हीरे की ज़ंजीर भी बेड़ी है;
मोतियों का जाल भी बंधन है;
यदि सोने की तलवार से सिर काट दिया जाये,
तो भी मृत्यु तय है:
हे प्रभु, मुझे बताओ,
जीवन की पूजा में उलझकर,
क्या कोई बच सकता है?
जन्म और मृत्यु के बंधनों से?”
अर्थात इन कवियों के पास दर्द और पीड़ा से राहत के लिए एक स्वाभाविक अभिव्यक्ति के रूप में गीत अथवा कविताएं रची जा रही थीं।
अतीत के ये सारे उदाहरण वर्तमान समय में भी प्रासंगिक हैं, ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ कविताओं ने लोगों को कठिन परिस्थितियों से उबरने में मदद की। ये लोग या कवि, जिन्होंने कविता का उपयोग कर अपने संघर्ष पर विजय प्राप्त की, काव्य चिकित्सा के महत्व को समझने के लिए केस हिस्ट्री के रूप में लिये जा सकते हैं। यहाँ मैं कुछ कवियों के मामलों का हवाला देना चाहती हूँ, जिन्होंने कविता को चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल किया। चूँकि उनमें कुछ मेरे मित्र हैं, इसलिए मैंने उन्हें क़रीब से देखा था।

केस 1: कून वून
मैं कवि कून वून को इंटरनेट कविता पत्रिकाओं के माध्यम से बहुत लंबे समय से जानती हूँ। उनका जन्म चीन में हुआ था और 1960 में वे अमेरिका चले गये थे। उन्होंने कॉलेज में तब तक दर्शनशास्त्र और गणित का अध्ययन किया जब तक वे बाइपोलर डिसऑर्डर नामक मानसिक बीमारी से पीड़ित हो गये। उन्होंने अपनी कठिन भावनाओं और विकट विचारों से निपटने के लिए एक साधन के रूप में कविता लेखन शुरू किया, इसके अलावा साइकोट्रोपिक दवाएं और मनोवैज्ञानिक परामर्श भी साथ चलता रहा। यथार्थ की ज़मीन को पुन: प्राप्त करना उनके लिए कठिन था। इस दौरान कविता लिखने की प्रक्रिया में उन्होंने जाना कि उनका अपना दुःख अलग नहीं है। आत्म-दया से बचने के लिए उन्होंने जीवन के प्रति एक बौद्ध और ताओवादी दृष्टिकोण विकसित किया। उन्होंने न केवल अपने लिए निदान के रूप में बल्कि मानव हृदय को समझने के लिए भी कविता लिखी। वह उन सभी के शुक्रगुज़ार हैं जिन्होंने उनकी स्थिति को समझने की कोशिश करते हुए उनकी मदद की। उनकी दो पुरस्कार विजेता पुस्तकें काया प्रेस (द ट्रुथ इन रेंटेड रूम्स, 1998 और वॉटर चेज़िंग वॉटर, 2013; क्रमशः पेन ओकलैंड पुरस्कार और अमेरिकन बुक पुरस्कार की विजेता) से छपी हैं।
कून वून कविता चिकित्सा के प्रसार में बहुत रुचि रखते थे। उन्होंने 4 मार्च 2018 को मुझे संबोधित ईमेल में अपने अनुभवों के बारे में लिखा, जिसके कुछ अंश इस तरह थे:
“मैंने अपने विचारों को सुलझाने और अपनी कठिन भावनाओं से निपटने के लिए कविता का उपयोग किया। जब परेशानियां बढ़ जाती थीं, मुझे दवा लेने और चिकित्सक से परामर्श करने की भी आवश्यकता पड़ती थी।
जीवन में मैंने एक बात का अनुभव किया कि सफलता सफलता पर टिकी होती है। मैंने कविता लिखना बहुत ही साधारण तरीक़े से शुरू किया और धीरे-धीरे मैंने कविताओं को पत्रिकाओं में भेजना शुरू कर दिया, और कभी-कभी मेरी कविताएँ प्रकाशित भी होती रहीं। कविता लिखना शुरू करने के काफ़ी समय, लगभग 17 साल, बाद मेरी पहली किताब काया प्रेस द्वारा प्रकाशित हुई, जो उस समय न्यूयॉर्क शहर में स्थित था। किताब में कुछ ख़ूबियाँ थीं और इसलिए इसे कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में पाठ्यपुस्तक के रूप में इस्तेमाल किया गया। इससे मुझे कविता लिखते रहने का आत्मविश्वास जगा और प्रेरणा मिली, और 15 साल बाद काया प्रेस ने मुझे 2013 में फिर प्रकाशित किया। मेरा आत्मविश्वास बढ़ता गया और मैं 50 साल की उम्र में वापस पठन की ओर मुड़ा और रचनात्मक लेखन और साहित्यिक कला में स्नातक और मास्टर डिग्री प्राप्त की।
अब मैंने खुद का एक छोटा प्रेस खड़ा किया है, जहाँ मैं अन्य कवियों और लेखकों को उनके काम और प्रयासों के लिए प्रकाशित होने और मान्यता प्राप्त करने का मौक़ा देता हूँ।”
कून वून नें हीन भाव की कविताएं नहीं रची थी, वे स्वीकार करते हैं कि ”मैं ऐसी कविताएँ लिखने की कोशिश करता हूँ जो आत्म-दया ग्रस्त न हों, न ख़ुद पर केंद्रित हों। इसलिए मेरा पाठक एक सामान्य पाठक है और वह अकादमिक लोगों तक सीमित नहीं है। मैं सहज भाषा का उपयोग करने की कोशिश करता हूँ और सरल लिखता हूं, मैं अपने विचारों को सरलता से व्यवस्थित करना और स्पष्ट रूप से लिखना सीख गया हूँ। मैं कम से कम लोगों को प्रेरणा और आत्म की स्थिरता की भावना देना चाहता हूँ। यह कभी पूरा होने वाला काम नहीं है। हमें हर समय अपनी समझदारी से मानवता के लिए संघर्ष करते रहना चाहिए। अतीत और वर्तमान के महान कवियों को पढ़ना मुझे विनम्र बनाता है, और इसलिए मैं अपना सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश करता हूँ और इसे यहीं छोड़ देता हूँ।”
कून वून न केवल कविता लिखते हैं, अपितु कवियों से संपर्क भी रखते हैं, हालांकि समाज में घुलमिल जाना उनके लिए आज भी मुश्किल है। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि कोरोना काल उनके लिए कुछ अलग नहीं था, क्योंकि वे सामान्य जीवन में भी बड़ी मुश्किल से अपना कमरा छोड़ते हैं। वे अब प्रकाशक हैं, और दूसरी ओर वे चाहते हैं कि कविता के शब्दों के माध्यम से एक बड़ी दुनिया खुले।
मेयो क्लिनिक साइट के अनुसार, सिज़ो अफ़ेक्टिव डिसऑर्डर एक मानसिक विकार है, जिसमें व्यक्ति सिज़ोफ्रेनिया के लक्षणों, जैसे मतिभ्रम या भ्रम, और मूड डिसऑर्डर अवसाद या उन्माद के संयोजन का अनुभव करता है। सिज़ो अफ़ेक्टिव डिसऑर्डर के दो प्रकार- जिनमें से दोनों में सिज़ोफ्रेनिया के कुछ लक्षण शामिल हैं- इसमें कभी कभी उन्माद तो कभी अवसाद का अनुभव होता है। अवसाद से बाहर आना आसान नहीं है। कविता लिखने से अवसाद की भावना से उन्हें राहत मिलती है।
कून वून की एक कविता का अनुवाद प्रस्तुत कर रही हूं, जो मैंने ‘कृत्या’ में प्रकाशन के लिए किया था:
आज मैं अपने आप को सबसे उदास पानी की तरह महसूस कर रहा हूँ
जिसे लोगों ने नकार दिया है
पानी की तरह ही मैं भूमिगत कोठरी के सबसे निचले बिंदु तक पहुँच जाता हूँ
मैं ख़ुद को बर्फ़ की तरह सख़्त कर लेता हूँ
तेज़ दवाब डालने पर ही चटखता हूँ
उस भाप शक्ति के बारे में क्या कहूँ, जो मैं कभी था
विशाल टर्बाइनों को चलाता हुआ?
उस मन्दिम वर्षा के बारे में क्या कहूं, जो मैं
प्रेमी के साथ सोते हुए हुआ करता था
जो हुआ है वह परिवर्तन है
जिसे स्वीकारना मुश्किल है
जो जितना ऊपर से आता है
उतनी कठोरता से ज़मीन से टकराता है
आख़िरकार सब कुछ बर्फ़ से ढंका हुआ है
या समन्दर से बंधा हुआ है
पानी का उदास होना, गति की शिथिलता की ओर इंगित करता है। यह अनुभूति के घनत्व की ओर भी इशारा करता है। बाइपोलर मानसिकता, जिसमें कभी जड़ता की, तो कभी उद्वेग की अनुभूति होती है, के लिए इससे बेहतर बिंब क्या हो सकता है। कवि को न जानने वालों के लिए भी यह एक बेहतरीन कविता है।
क्रमश:

रति सक्सेना
लेखक, कवि, अनुवादक, संपादक और वैदिक स्कॉलर के रूप में रति सक्सेना ख्याति अर्जित कर चुकी हैं। व्याख्याता और प्राध्यापक रह चुकीं रति सक्सेना कृत कविताओं, आलोचना/शोध, यात्रा वृत्तांत, अनुवाद, संस्मरण आदि पर आधारित दर्जनों पुस्तकें और शोध पत्र प्रकाशित हैं। अनेक देशों की अनेक यात्राएं, अंतरराष्ट्रीय कविता आंदोलनों में शिरकत और कई महत्वपूर्ण पुरस्कार/सम्मान आपके नाम हैं।
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रति जी ने सही नब्ज़ पकड़ी है ।कविता दुख उभार कर अभिव्यक्त होती है और फिर राहत में बदल जाती है ।
हार्दिक आभार रति जी और आबो हवा .।
कून वून के केस हिस्ट्री और उनकी कविता से उनके आत्मा के विकारों को समझा जा सकता है । उनकी कविता में हीन भावना की कोई जगह नहीं रखना चाहते यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है ।
रति धन्यवाद कून वून को समझने के लिए ।