
- September 30, 2025
- आब-ओ-हवा
- 1
अतीत की एक याद मधूलिका श्रीवास्तव की कलम से....
"रामराज्य का अर्थ हिन्दू राज्य नहीं"
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल
महात्मा गांधी जी की जयंती पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उनकी भोपाल की यादगार यात्रा का वर्णन करना चाह रही हूँ। आज से तक़रीबन 95 साल पहले 11 सितंबर 1929 को महात्मा गांधी स्वदेशी और हिंदू मुस्लिम एकता की पताका लेकर भोपाल के नवाब श्री हमीदुल्लाह ख़ान के आमंत्रण पर भोपाल आये थे। नवाब साहब देश के उन गिने चुने देशी नवाबों व नरेशों में से एक थे, जिनका आतिथ्य गांधी जी ने स्वीकार किया था। भोपाल नवाब ने गांधी जी को अपने शहर के अहमदाबाद पैलेस स्थित राजप्रासाद की ‘राहत मंज़िल’ नामक कोठी में ठहराया था।
नवाब साहब ने बेनज़ीर मैदान में गांधी जी के सम्मान में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया, जिसकी व्यवस्था उनके विधि सचिव राजा अवध नारायण बिसारिया जी ने की थी। यह सभा भोपाल के इतिहास की अविस्मरणीय घटना थी, पूरा मंच खादी से ही सजाया गया था तथा आने जाने के मार्ग पर भी खादी के बने वंदनवार से ही सजावट की गयी थी।
सबसे पहले इस सभा में गांधी जी को भोपाल के नागरिकों की ओर से खादी कार्य के लिए 1035/- रुपयों की थैली भेंट की गयी। इस सभा में क़रीब-क़रीब दस हज़ार लोग थे।
गांधी जी ने अपने भाषण में नवाब साहब की प्रशंसा करते हुए कहा- भोपाल की जनता का सौभाग्य है कि उन्हें इस प्रकार के शासक मिले हैं। इसके बाद उन्होंने कहा कि “देशी नरेश यदि पूरी तरह प्रयत्नशील हों तो देश में रामराज्य की स्थापना हो सकती है।” गांधीजी ने आगे कहा, “मेरे मुस्लिम भाई इसे गलत न समझें, रामराज्य का अर्थ कदापि हिंदू राज्य नहीं है, मैं अपने मुसलमान भाइयों से कहना चाहता हूं कि रामराज्य से मेरा मतलब है- ‘ईश्वर का राज’ मेरे लिए राम और रहीम में कोई अंतर नहीं है, मेरे लिए तो सत्य और सत्कार्य ही ईश्वर है।”

इस संदेश में गांधीजी ने आगे कहा- “पता नहीं जिस रामराज्य की कल्पना हमें सुनने को मिलती है वह कभी इस पृथ्वी पर था भी या नहीं… लेकिन प्राचीन रामराज्य का आदर्श हमारे प्रजातंत्र के आदर्शों से बहुत कुछ मिलता जुलता है और कहा गया है कि रामराज्य में दरिद्र से दरिद्र व्यक्ति भी कम खर्च में और अल्पावधि में न्याय प्राप्त कर सकता था। यहाँ तक कहते हैं रामराज्य में कुत्ते को भी न्याय मिलता था।” अपने सम्बोधन में आगे गांधी जी ने कहा- “यदि देश में शासक और शासित ईश्वर पर भरोसा रखने वाले हों, तो वह शासन दुनिया की सभी प्रजातंत्रीय व्यवस्थाओं से उत्तम होगा।”
अपनी इस यात्रा में गांधीजी भोपाल के कार्यकर्ताओं से भी मिले और खादी और अस्पृश्यता निवारण की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। वे मारवाड़ी रोड स्थित खादी भंडार भी गये थे।
गांधी जी ने अपने प्रवास के दौरान राहत मंज़िल के सामने ही प्रार्थना सभाएं भी कीं। उनकी इन सभाओं के बारे में माखनलाल चतुर्वेदी जी ने लिखा है- “ज्योंही संध्या का समय हुआ, बापू प्रार्थना करने बैठ गये। उसमें भोपाल के नवाब साहब, डॉक्टर अंसारी और भोपाल रियासत के बड़े-बड़े अमीर, उमराव घुटने टेके वहां की प्रार्थना सुन रहे थे। बापू ध्यानस्थ प्रार्थना में लीन थे। गीता, कुरान शरीफ़, बाइबल जैसे ग्रंथों से संतों की वाणियों में प्रार्थना के शब्द गूंज रहे थे। उस दिन प्रार्थना सभा में मालिक या नौकर, राजा या प्रजा, ग़रीब या अमीर, छोटा या बड़ा, सब भेदभाव जाने कहां विलीन हो गये थे। उस समय सांप्रदायिक भेदभाव मानो कोई चीज़ ही नहीं थी।”
उनका यह प्रवास भोपालवासियों के लिए अविस्मरणीय है। इसके बाद 1933 में भी वे एक बार भोपाल स्टेशन पर गाड़ी बदलने के लिए रुके थे। जैसे ही यह ख़बर, लोगों को मिली, पूरा भोपाल उमड़ पड़ा था। वहां उन्होंने लोगों को संबोधित किया था। बड़ी संख्या में मौजूद भीड़ ने भारत माता की जय व जय हिंद के नारे लगाकर गांधी जी का सम्मान किया था।
गांधी जी की इन दोनों भोपाल यात्राओं की स्मृतियाँ अब इतिहास के पन्नों व चित्रों के माध्यम से भोपाल के लोग अपने हृदय में संजोये हुए हैं।
(चित्र नईदुनिया के आर्काइव से साभार)

मधूलिका श्रीवास्तव
श्री अरविन्दो स्कूल, भोपाल की संस्थापक सदस्य व संचालिका मधूलिका संस्कृत, भाषा शास्त्र एवं पत्रकारिता में दक्ष हैं। उपन्यास, लघुकथा, कथा एवं कविताओं के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। अनेक साझा संकलनों में आपकी रचनाएं शामिल हुई हैं। मप्र हिन्दी लेखिका संघ समेत अनेक संस्थाओं से आप सम्मानित की जा चुकी हैं।
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सच …. यही अर्थ है राम राज्य का …
सबको समान अवसर ,सबको समान न्याय ।
सत्य जी जीत हो ।अहिंसा कायम रहे ।
धन्यवाद लेखिका को …