bhavna sonavane, भावना सोनावणे
नियमित ब्लॉग प्रीति निगोसकर की कलम से....

कला में आस्था व उत्साह यानी भावना सोनावणे

              भावना सोनावणे ने अद्भुत भाव-विश्व को कैनवास पर साकार करने के लिए प्रयास और कलानिष्ठा से अपनी स्वतंत्र शैली निर्मित की। कलाप्रेरणा का बीज बचपन में अनजाने ही उनके मन में परिवेश ने बो दिया था। महाराष्ट्र के सोलापुर में जन्मी और बचपन मुंबई में बिताने वाली भावना बचपन में परिवार के साथ स्कूटर पर घूमते हुए रास्तों के किनारे लाल फूलों से लदे गुलमोहर, आम से लदे पेड़ तो कहीं इमली के बड़े घने हिलते-डुलते, इठलाते पेड़ बालमन को आकर्षित करते। बचपन से ही पेड़, हवा, आसमान मन के कोने में कहीं बैठ गये। बड़े होकर बम्बई में शिक्षा लेते हुए लोकल ट्रेन की भागदौड़, भरे बाज़ार की रंगीनी और चहल-पहल, गलियों की रौनक़ लुभाने लगी। ये सब बढ़ती उम्र के साथ मन में अंकित होते चले गये और यही संवेदनाएं एक दिन कैनवास पर रंगों के माध्यम से फूट पड़ीं।

कलाकार का रंग माध्यम से जब जी भर गया, तब मेटल इनैमलिंग और सिरेमिक का अध्ययन किया। भावना के कलाकार मन ने इस नये माध्यम में भी प्रयोग शुरू किये। ज्ञानपिपासु मन देखिए कि अब तिलक यूनिवर्सिटी पुणे से मास्टर ऑफ़ आर्ट्स और इंडोलॉजी की पढ़ाई जारी है। अनीश के रूप में कलाकार जीवनसाथी मिलने पर दोनों ने कुछ समय डोंबिवली कला अकादमी में नौकरी भी की। वह करंदीकर कला अकादमी में सहायक व्याख्याता रही हैं। भावना के कलाकार का एक विस्तार लेखन भी है। तूलिका के साथ लेखनी का उपयोग भी वह बहुत ख़ूब करती हैं। अपनी विचारधारा स्पष्ट करने के लिए शब्द चित्र भी बख़ूबी गढ़ लेती हैं।

bhavna sonavane paintings

देश-विदेश में आप एकल और सामूहिक, सौ से अधिक प्रदर्शनियों का हिस्सा रही हैं। साथ ही देश-विदेश की प्रमुख गैलरीज़ देखीं और जगह-जगह अपने चित्र प्रदर्शित करती रहीं। कई कला कैम्पों में हिस्सेदारी की। विशेष रूप से स्टील और तांबे पर मीनाकारी की मूर्तियां नई दिल्ली, तमिलनाडु, गोवा और मालदीव में प्रदर्शित हुई हैं। देश-विदेश में फैले इनके चित्र, मूर्ति संग्रह में एक नाम वर्ल्ड बैंक, वॉशिंगटन डी.सी. का भी है। यही नहीं, कई कला रेसिडेंसी एवं आर्ट कैम्प में हिस्सेदारी भी कर चुकी हैं और 2007 में पैरिस में तीन महीने आर्ट रेसिडेंसी में रह चुकी हैं। राष्ट्रीय स्तर पर ललित कला अकादमी में महिला कलाकारों की सूची में भी एक नाम भावना सोनावणे का है।

आप प्राचीन मीनाकारी तकनीक से इनैमेल माध्यम का उपयोग कर कलाकृतियां बनाती हैं। रंगीन कांच के पाउडर को चित्रानुसार फैलाकर उसे 730-810 डिग्री पर गर्म कर आकार उभारना, मनचाहे इफ़ेक्ट लाने के लिए इसे दो-तीन बार अलग-अलग तापमान पर गर्म करना… इस तरह कृति के निर्माण में कलाकार की उत्सुकता अंत तक बनी रहती है। अंत तक तकनीकी प्रोसेस कलाकार को आनंद देती है। यहां भी आप दो-तीन शैलियों में काम करती हैं, ग्रैफ़िटो, क्लोज़ोन तकनीक से बने गणेशजी के चित्र दर्शनीय हैं। ये सारी तकनीक प्राचीन काल से सजावटी सामान बनाने उपयोग में आती रही है। इस प्रयोग के दौरान बचे टुकड़ों को भावना कैनवास पर चिपकाकर जो थ्री-डी चित्र बनाती हैं, इनकी बदौलत उन्हें कमर्शियल आर्ट गैलरी और बिक्री का रास्ता मिला।

भावना के उत्साह, कला के प्रति आस्था और प्रयोगधर्मी स्वभाव ने बहुत जल्दी और भी उपलब्धियां और विस्तार अपने नाम किये। बदलापुर आर्ट गैलरी की सोलापुर में स्थापना की। जहां कलाकारों को मुफ़्त प्रदर्शनी की सुविधा है। इस उद्देश्य के साथ कि कला का प्रचार-प्रसार हो। कलाकारों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से भावना ने मां अहिल्या बाई होलकर की 300वी जयंती पर आनलाइन कैम्प आयोजित किया। समय-समय पर आर्ट कैम्प का आयोजन, साथ ही गृहिणी और बच्चों के लिए चित्रकला कक्षाएं भी भावना की दिनचर्या में शामिल है।

भावाभिव्यक्ति को हाल ही नया आयाम मिला, जब बच्चों के भाव-विश्व पर लिखी जाने वाली किताब के कवर बनाने की पेशकश भावना के सामने आयी। मन की कल्पना का, उस भाव-विश्व का रंगों में ढलकर चित्र में ख़ुद सहज ही व्यक्त होना भावना के चित्रों की ख़ासियत है। कलाकृतियों में भड़कीले रंग की जगह आनंद और उल्लास भरते रंग संयोजन दिखायी देते हैं। रंग संयोजन के अलावा, चित्र संयोजन में प्रयोगशीलता, चित्रण विधि और कुल जमा शैली ही भावना सोनावणे का परिचय है।

bhavna sonavane, भावना सोनावणे

अंतत: यह भी कि भावना का कलाकार मन कहता है कि अपनी कलाकृति को बेचते समय कलाकार को अपना दुःख व्यक्त नहीं करना चाहिए। एक कलाकार को किसी भी तरह से ख़ुद को बेचारा या लाचार प्रस्तुत नहीं करना चाहिए। कलाकार के इस कथन को मैं एक कलाकार की हैसियत से सैल्यूट करती हूं। उन्हें शुभकामनाएं।

प्रीति निगोसकर, preeti nigoskar

प्रीति निगोसकर

पिछले चार दशक से अधिक समय से प्रोफ़ेशनल चित्रकार। आपकी एकल प्रदर्शनियां दिल्ली, भोपाल, इंदौर, उज्जैन, पुणे, बेंगलुरु आदि शहरों में लग चुकी हैं और लंदन के अलावा भारत में अनेक स्थानों पर साझा प्रदर्शनियों में आपकी कला प्रदर्शित हुई है। लैंडस्केप से एब्स्ट्रैक्शन तक की यात्रा आपकी चित्रकारी में रही है। प्रख्यात कलागुरु वि.श्री. वाकणकर की शिष्या के रूप में उनके जीवन पर आधारित एक पुस्तक का संपादन, प्रकाशन भी आपने किया है। इन दिनों कला आधारित लेखन में भी आप मुब्तिला हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *