
- October 15, 2025
- आब-ओ-हवा
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नियमित ब्लॉग डॉ. आज़म की कलम से....
बानो की जादूगरी, जादुई यथार्थवाद का मशहूर उपन्यास
“राजा गिद्ध”, ये बानो क़ुदसिया और उर्दू अदब का बहुत मशहूर नॉवेल है, जो पहली बार 1981 में प्रकाशित हुआ। अब तक इसके चौदह से ज़्यादा एडीशन आ चुके हैं। इस नॉवेल में मुस्लिम और पाकिस्तानी माहौल को दिखाया गया है। नयी नस्ल के ज़रिये भारी-भारी फ़लसफ़े पेश किये गये हैं। प्रेम, हरामकारी (यानी बलात्कार, व्यभिचार, परस्त्री-गमन), उपदेश, मनोविज्ञान, मेटाफ़िज़िकल पहलू, अध्यात्मविज्ञान, ब्रह्मज्ञान… और काफ़ूर/कपूर का वृक्ष बोधि वृक्ष का प्रतीक है, जिसके नीचे किरदारों को एक से एक ज्ञान के पहलू सूझते हैं।
नॉवेल में मुख्य पात्र क़य्यूम का है, जो फ़लसफ़े गढ़ता रहता है। मनोविज्ञान पर इसकी अपनी दलीलें हैं। आध्यात्मिक समस्याओं पर बातें करता है। कई लड़कियों, औरतों, तवाइफ़ से रिश्ते बनाकर ख़ुद के लिए कुँवारी बीवी चाहता है। आख़िर में उसे राह-ए-नजात (मोक्ष मार्ग) मिलती नज़र आती है।
अन्य महत्वपूर्ण पात्रों में आफ़ताब, सिमी, लेक्चरर सुहेल, ज़ेबा (आफ़ताब की बीवी) आदि हैं। बानो क़ुदसिया ने कहानी में हराम और हलाल के फ़लसफ़े को समझाने के लिए पक्षियों की एक काल्पनिक दुनिया का सहारा लिया है। पक्षियों की एक कान्फ़्रेंस बुलायी जाती है। अध्यक्षता सीमुर्ग़ (एक कल्पित पक्षी जो आकार में बहुत बड़ा माना जाता है, जिस में तीस चिड़ियों के बराबर शक्ति है तथा तीस चिड़ियों के रंग मिलते हैं) करता है। चील की अपील पर गिद्ध जाति के ख़िलाफ़ मुक़द्दमा दायर किया जाता है। चील की शिकायत है कि गिद्ध जाति में भी इन्सानों जैसी दीवानगी पायी जाती है। उसी दीवानगी की वजह से इन्सानों ने एक से एक ख़तरनाक हथियार बना डाले हैं, जिनसे दुनिया का वजूद ख़तरे में आ गया है। इसी तरह गिद्ध जाति के अंदर भी पायी जाने वाली दीवानगी तमाम पक्षियों की प्रजाति के लिए बर्बादी का कारण बन सकती है इसलिए इस जाति को जंगल से निष्कासित किया जाये। यह पाठ, लेखिका ने बड़े दिलचस्प ढंग में लिखा है और पाठक बहुत आनंदित होता है। आलोचक इसकी व्याख्या के लिए जादुई यथार्थवाद जैसे शब्द गढ़ चुके हैं।

इस नॉवेल का मूल आधार मनुष्यों के नैसर्गिक स्वभाव से जुड़ा हुआ है। उसकी प्रकृति, उसके क्रियाकलापों को बताता है, जिसमें हलाल और हराम की अवधारणा को और इसके अनेक पहलुओं को प्रस्तुत किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि इन्सान अपने अच्छे और बुरे कर्मों के लिए किसी हद तक ख़ुद भी ज़िम्मेदार, स्वतंत्र व निरंकुश भी है। यह इन्सानों के मनोविज्ञान और आध्यात्मिक पहलुओं पर रोशनी डालता है। इन्सान के बहुत से रूप होते हैं, अलग अलग स्वभाव होते हैं, अलग अलग आदतें होती हैं। इस तरह हर किरदार को किसी न किसी मानवी लक्षण चाहे पाप हो, चाहे पुण्य, के साथ प्रस्तुत किया गया है। गिद्ध के हवाले से ये बताया गया है कि जिस तरह गिद्ध सिर्फ़ मुर्दार खाता है, इसी तरह समाज में बहुत से लोग हैं, जो सिर्फ हरामख़ोरी ही करते हैं। मुख्य पात्र क़य्यूम उन लोगों में से है, जो सिर्फ़ हराम को ही अपनाये रखते हैं। इसलिए लेखिका ने उसे राजा गिद्ध से उपमा दी है। वो हलाल और हराम के अंतर का ध्यान नहीं रखता। जो हराम है, वो भी अपना लेता है। इसकी ज़िंदगी में आयी कई औरतों के रिश्ते नाजायज़ हैं, मगर वो हरामकारी करता रहता है। प्राकृतिक संरचना के आधार पर उसे मानसिक रोगी या कामुक नहीं बताया गया है बल्कि उसका किरदार ही ऐसा है बल्कि वह आदतन व्यभिचारी है। उसकी अंतरात्मा जैसे मर चुकी है। इस तरह नॉवेल में समाज की कुछ वीभत्स सच्चाइयों को यथार्थवादी शैली में प्रस्तुत किया गया है।
बानो क़ुदसिया: एक नज़र में
28 नवंबर 1928 को पूर्वी पंजाब के ज़िला फ़िरोज़पुर में पैदा हुईं और भारत विभाजन के बाद लाहौर चली गयीं। पिता का नाम बदरुज़मां और माता का नाम ज़ाकिरा बेगम था। पहला अफ़साना “दरमांदगी ए शौक़” 1950 में प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका “अदब-ए-लतीफ़” में प्रकाशित हुआ। 1956 में शादी उनके क्लास फ़ेलो और साहित्यिक मार्गदर्शक मशहूर नॉवेल निगार अशफ़ाक़ अहमद से हुई। दोनों ने एक अदबी रिसाला “दास्तानगो” जारी किया था, चंद साल बाद ही जिसकी दास्तान ख़त्म हो गयी। वो रेडियो के लिए ड्रामे लिखने लगीं। फिर टेलीविज़न के लिए भी ड्रामे लिखे। राजा गिद्ध उपन्यास उनकी पहचान बन गया।

डॉक्टर मो. आज़म
बीयूएमएस में गोल्ड मेडलिस्ट, एम.ए. (उर्दू) के बाद से ही शासकीय सेवा में। चिकित्सकीय विभाग में सेवा के साथ ही अदबी सफ़र भी लगातार जारी रहा। ग़ज़ल संग्रह, उपन्यास व चिकित्सकी पद्धतियों पर किताबों के साथ ही ग़ज़ल के छन्द शास्त्र पर महत्पपूर्ण किताबें और रेख्ता से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग़ज़ल विधा का शिक्षण। दो किताबों का संपादन भी। मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी सहित अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं से सम्मानित, पुरस्कृत। आकाशवाणी, दूरदर्शन से अनेक बार प्रसारित और अनेक मुशायरों व साहित्य मंचों पर शिरकत।
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एक रोचक प्रशंसनीय उपन्यास से परिचित करवाया । बहुत सुलझी हुई सरस समीक्षात्मक शैली में ।
बहुत सुंदर।