
- November 30, 2025
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पाक्षिक ब्लॉग डॉ. आज़म की कलम से....
42 भाषाओं में छपा उर्दू का इकलौता नॉवेल!
पहली बार 1958 में प्रकाशित ‘ख़ुदा की बस्ती’ को उर्दू लिटरेचर का एक महत्वपूर्ण नॉवेल माना जाता है। इसके अब तक 50 से ज़्यादा एडिशन आ हो चुके हैं। इसे 1960 में पाकिस्तान का सबसे बड़ा अवॉर्ड, “आदम जी अदबी (लिटरेरी) अवॉर्ड” मिला था। यह 524 पेज का एक बड़ा नॉवेल है। शायद अकेला उर्दू नॉवेल है, जिसका 42 दूसरी भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
यह प्रोग्रेसिव मूवमेंट के असर में लिखा गया था। इसकी थीम सोशल रियलिज़्म, एक बेसहारा समाज की दिक्क़तों और मज़दूर वर्ग की बुरी हालत के आस-पास घूमती है। इस तरह, यह उपन्यास सामाजिक, आर्थिक और मानसिक द्वंद्व को दर्शाता है। यह ग़रीब, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों की ज़िंदगी की कहानी है, जिसमें अलग-अलग तरह के किरदार हैं। अधिकतर पात्र ग़रीबी, बेरोज़गारी और सामाजिक अन्याय से जूझ रहे हैं। यह नॉवेल रियलिस्टिक स्टाइल अपनाता है। एक बस्ती की इतनी सत्याधारित तस्वीर पेश की गयी है कि हम भी इसका हिस्सा बन जाते हैं। क्योंकि यह प्रोग्रेसिव मूवमेंट की आइडियोलॉजी से लिखा गया है, इसलिए रियलिज़्म से भरा है। सामाजिक नाइंसाफ़ी और आर्थिक असमानता पर ज़्यादा ध्यान दिया गया है। इनके अलावा, लैंगिक असमानता (सेक्सुअल इम्मोरैलिटी), अवसाद, बेरोज़गारी, भुखमरी, निर्धनता आदि के प्रकरण इस तरह से लिखे गये हैं, ऐसा लगता है कि हम यह सब अपनी आँखों से देख रहे हैं। समाज में छिपे सफ़ेदपोशाें के चेहरों को अनावरित किया गया है। किरदारों के ज़रिये अच्छाई और बुराई के नक़्शे खींचे गये हैं। एक मुख्य पात्र अच्छाई का प्रतिनिधित्व करता है तो दूसरा बुराई का। नॉवेल लिखने वाले ने उनके ज़रिये न सिर्फ़ उनके कर्मों के परिणाम बताये हैं, बल्कि अच्छाई और बुराई की तरफ़ लोगों के झुकाव की परिस्थितियां भी बतायी हैं। ऐसा लगता है जैसे लेखक ने सिर्फ़ सवाल ही नहीं उठाये हैं, बल्कि उनके कारण और निवारण के तरीक़े भी बताये हैं।
किरदारों पर एक निगाह डालें तो राजा एक आवारा आदमी है, जो भीख मांगता है, जुआ खेलता है और फ़िल्में देखता है। शमी एक पतला लेकिन ग़ुस्सैल लड़का है, जो अपने पिता की दुकान पर बैठता है। नौशा एक अनाथ लड़का है, जिसे चोरी की लत है और वह जेल चला जाता है। नौशा की माँ घर का खर्च चलाने के लिए बीड़ियाँ बनाती है। नौशा का एक छोटा भाई है और सुल्ताना नौशा की बड़ी बहन है। अब्दुल्ला एक मैकेनिक है, जो ऑटो वर्कशॉप चलाता है। सलमान शुरू में आवारा है लेकिन बाद में ग़रीबों के लिए काम करता है। नियाज़ कबाड़ का काम करता है, जो चोरी का सामान खरीदता और बेचता है। एक डॉक्टर है जो अपनी कमाई के लिए झूठे सर्टिफिकेट देता है और बीमार करने वाले टीके लगाता है। ख़ान बहादुर एक रिश्वत लेने वाला, भ्रष्ट सरकारी अधिकारी है, जो शरणार्थियों के नाम पर ज़मीन, सरकारी टेंडर और कॉन्ट्रैक्ट से पैसे चुराता है। ग़रीबों के मुफ़्त इलाज के लिए ख़रीदे गये एक मेडिकल सेंटर की ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेता है और उस पर एक मस्जिद और दुकानें बना देता है।

संक्षेप में कहें तो इसमें दिखायी गयी दुनिया काल्पनिक नहीं है, बल्कि यह उपन्यासकार का निजी अनुभव लगता है। इस उपन्यास का एक अंश यहां देखिए-
“मैं पढ़ना चाहता हूँ लेकिन जारी नहीं रख सकता, मुझे नौकरी चाहिए लेकिन मिल नहीं रही, मैं एक इज्ज़तदार नागरिक के तौर पर जीना चाहता हूँ लेकिन कोई गुंजाइश नहीं है, यह एक सीधी-सादी आर्थिक समस्या है और समाज से अलग कोई आर्थिक समस्या नहीं होती।” (सलमान और प्रोफ़ेसर अहमद अली के बीच बातचीत)
नॉवेल जनता के विचारों को ऐसे दिखाता है जैसे नॉवेल लिखने वाला ख़ुद जनता से जुड़ गया हो। इसे बिना किसी उलझाव भरी भाषा या रूपकों के सीधे-सादे ढंग से लिखा गया है, जिसकी वजह से पूरा वातावरण सामने घटित होता प्रतीत होता है।
शौकत सिद्दीक़ी: एक नज़र में
जन्म 20 मार्च, 1923 को लखनऊ में हुआ था। भारत के बंटवारे के बाद वे पाकिस्तान चले गये। उनकी शिक्षा (एजुकेशनल क्वालिफिकेशन) MA है। एक कहानीकार (शॉर्ट स्टोरी राइटर), उपन्यासकार और पत्रकार (जर्नलिस्ट/ सहाफ़ी) रहे। “ख़ुदा की बस्ती” के अलावा “जांगलूस”, “चार दीवारी” वग़ैरह दूसरे नॉवेल हैं, जिनकी उर्दू लिटरेचर में ख़ास जगह है। प्रोग्रेसिव मूवमेंट से जुड़े शौक़त को “कमाल-ए-फ़न अदब अवॉर्ड” 2001, “आदमजी अवॉर्ड” 1997, “तमग़ा-ए-हुस्न ए कारकर्दगी” अवॉर्ड 1997, “सितारा-ए-इम्तियाज़” 2003, ख़्वाजा ग़ुलाम फ़रीद लिटरेरी अवॉर्ड 2000 वग़ैरह मिले। 1952 में उनकी शादी सुरैया बेगम से हुई थी। एक पत्रकार के तौर पर वे कई पत्र पत्रिकाओं से जुड़े रहे। 18 दिसंबर 2006 को कराची में उनका निधन हो गया और उन्हें वहीं दफ़नाया गया।

डॉक्टर मो. आज़म
बीयूएमएस में गोल्ड मेडलिस्ट, एम.ए. (उर्दू) के बाद से ही शासकीय सेवा में। चिकित्सकीय विभाग में सेवा के साथ ही अदबी सफ़र भी लगातार जारी रहा। ग़ज़ल संग्रह, उपन्यास व चिकित्सकी पद्धतियों पर किताबों के साथ ही ग़ज़ल के छन्द शास्त्र पर महत्पपूर्ण किताबें और रेख्ता से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ग़ज़ल विधा का शिक्षण। दो किताबों का संपादन भी। मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी सहित अनेक प्रतिष्ठित संस्थाओं से सम्मानित, पुरस्कृत। आकाशवाणी, दूरदर्शन से अनेक बार प्रसारित और अनेक मुशायरों व साहित्य मंचों पर शिरकत।
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