
आब-ओ-हवा की ओर से श्रद्धांजलि प्रीति निगोसकर की कलम से…
रमेश आनंद छोड़ गये अपना कला संसार
मोहक रंगों और बहुत साधारण-सी लकीरों भरा चित्र ही पहचान है कलाकार रमेश आनंद जी की। प्रकृति-प्रेमी, सरल-सहज स्वभाव की झलक इनके चित्रों में भी स्पष्ट देखी जा सकती है। उज्जैन में लम्बा समय समय बिताने वाले कलाकार के भीतर अनजाने ही वहाँ की हवा, क्षिप्रा तट, पेड़-पौधे और मंदिर के झंडे-शिखर और भगवान के प्रति आस्था का रसायन उतरता गया। पैदल शहर में घूमते-घूमते सारे रंग कागज़ पर उतरने-मचलने लगे।
इसी दौरान शहर की प्रसिद्ध शिक्षण संस्था “भारती कला भवन” से उनका परिचय हुआ। यहाँ के कलागुरु और अंतरराष्ट्रीय ख्याति के पुरातत्ववेत्ता स्व. पद्मश्री वि.श्री. वाकणकर जी का सान्निध्य उन्हें मिला। यहीं से उनके मन के रंगों ने चित्रों मे उतरना शुरू किया। इस गुरुकुल में मिले चित्रकारों के साथ से, उनका कला के प्रति की रुजहान बढ़ता ही चला गया। इस कलाकार के सपनों ने बम्बई की सुप्रसिद्ध कलादीर्घा और दिल्ली की प्रसिद्ध त्रिवेणी कला दीर्घा तक उड़ान भरी।
बड़े-बड़े, नामी-गिरामी कलाकारों के साथ देश भर में समूह प्रदर्शनियों में शिरकत करने वोल आनंद क़दम-दर-क़दम कला क्षेत्र में आगे बढ़ते रहे। प्रकृति का निर्मोही, निरपेक्ष, पवित्र भाव के अद्भुत रंग-आकारों में बिखरे प्राकृतिक सौंदर्य को अपने कैनवास या कैमरे के माध्यम से उतारते कलाकार की संवेदनशीलता कविता और कहानियों के माध्यम से भी व्यक्त हुई है।

इनकी कला की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति इनकी कलाकार बेटी को कहा जा सकता है, जिसे कला जगत में शिवानी के नाम से पहचान मिल रही है। 1 दिसंबर 2025 के दिन रमेश आनंद का न रहना वास्तव में कला जगत की एक ऐसी क्षति है, जिसे जल्द विस्मृत नहीं किया जा सकेगा। हम इस कलाकार को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

बेहद दुःखद ।
सादर श्रद्धांजलि ।