
- June 30, 2025
- आब-ओ-हवा
- 2
स्त्री-पराधीनता का प्रामाणिक दस्तावेज़
इन दिनों बुकर पुरस्कार से सम्मानित कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक़ का कहानी-संग्रह ‘हार्ट लैम्प’ चर्चा में है। बानू मुश्ताक़ कन्नड़ भाषा की जानी-मानी प्रतिष्ठित लेखिका हैं। इस संग्रह में शामिल कहानियाँ पिछले तीस-पैंतीस वर्षों में लिखी गईं और इनका अनुवाद दीपा भास्ती ने किया है। बानू मुश्ताक़ लेखिका होने के साथ अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं, बंदया-प्रगतिशील साहित्यिक आंदोलन का हिस्सा भी रही हैं। एक विद्रोही साहित्य आंदोलन के रूप में बंदया दलित, मुस्लिम और हाशिये के वंचित समाज की आवाज़ बना। बानू मुश्ताक़ ने सामाजिक-आर्थिक अन्याय, असमानता, महिला और वंचित वर्ग के शोषण को लेखन का विषय बनाया।
पिछली सदी में आज़ादी के आन्दोलन के बाद सातवें दशक से एक बार फिर हिंदुस्तानी समाज में स्त्री और दलित चेतना का ज्वार उठा, जिसने जनमानस को उद्वेलित किया और सामाजिक वातावरण के साथ समकालीन साहित्यिक-सांस्कृतिक परिदृश्य का निर्माण भी किया। हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में यह साहित्यिक आंदोलनों का दौर था। मराठी में दलित आत्मकथाओं का लेखन शुरू हुआ, जिसने हिन्दी तथा अन्य भाषाओं में भी उत्प्रेरक का काम किया। बड़ी संख्या में दलित और स्त्री आत्मकथाओं के साथ अब दलित और स्त्री-विमर्श साहित्य के केंद्र में थे।
1975 में ललितांबिका अंतर्जनम का बेहद चर्चित उपन्यास ‘अग्निसाक्षी’ मलयालम में प्रकाशित हुआ, जो घर की चारदीवारी के भीतर नम्बूदिरी महिलाओं की यातना-गाथा थी। अन्य भाषाओं के भी अनेक उदाहरण हैं। मुस्लिम समाज में स्त्रियों की पर्दे के पीछे की त्रासद स्थितियाँ लेखकों की चिंता और लेखन का विषय रही हैं। 1922 में बांग्ला (और अंग्रेज़ी) में लिखने वाली रुक़ैया सख़ावत हुसैन की पुस्तक ‘अवरोध वासिनी’ पर्दे के विभिन्न रूपों में घुटने वाली स्त्रियों की करुण गाथा है। 1932 में उर्दू के चार युवा कहानीकारों के संग्रह ‘अंगारे’ में डाॅ. रशीद जहाँ के नाटक ‘पर्दे के पीछे’ और कहानी ‘दिल्ली की सैर’ ने इतना हंगामा खड़ा किया कि.. उनके नाक-कान काटने का फतवा दे दिया गया। उन्होंने भी बंद घरों में त्रासद जीवन जीने वाली उच्च और मध्यवर्गीय औरतों की दशा को उजागर किया था।
लगभग एक सदी बाद भी इन महिलाओं का जीवन धर्म आधारित उन्हीं पितृसत्तात्मक नियमों से चल रहा है। आज भी वे बंद समाज की घुटन, असहायता और अन्याय में जी रही हैं, ये बानू मुश्ताक़ की कहानियाँ बताती हैं। लगभग सभी कहानियों में लड़कियों की छोटी उम्र में शादी, थोड़े समय के भीतर ढेर सारे बच्चे, गिरता स्वास्थ्य और युवावस्था में ही बुढ़ा जाना.. और फिर पति की उपेक्षा और तलाक़ का भय.. ये दबी-छिपी सच्चाइयाँ हैं। ‘शाइस्ता महल के पत्थर’ की मध्यवर्गीय परिवार की शाइस्ता सैंतीस साल की उम्र में छह बच्चों की माँ है। बड़ी बेटी आसिफ़ा दसवीं पास करने के बाद स्कूल नहीं जाती। उसे छोटे भाई-बहन संभालने हैं। न चाहते हुए भी शाइस्ता फिर माँ बनती है और ठीक से देखभाल न होने के कारण मृत्यु को प्राप्त होती है। उसका पति जो पत्नी प्रेम में ताजमहल जैसा शाइस्ता महल बनाने की बात करता था, चालीस दिन बाद ही दूसरी शादी कर लेता है। बेटी आसिफ़ा के हिस्से में अब एक नवजात भी है, पालने के लिए। ‘अग्निवर्षा’ कहानी में मस्जिद का मुतवल्ली मौलवी उस्मान बहनों को जायदाद में हिस्सा नहीं देना चाहता। ‘ब्लैक कोबरा’ में मुतवल्ली से न्याय मांगने गई आशरफ़ को न्याय नहीं मिलता और पति की उपेक्षा के कारण उसकी संतान दम तोड़ देती है। शीर्षक कहानी ‘हार्ट लैम्प’ की मेहरून की भी यही कहानी है। उसके पति को ढेर सारे बच्चों की माँ मेहरून में कोई दिलचस्पी नहीं है। उसके संपन्न माँ-बाप और भाई उसकी कोई मदद नहीं करते और न उसके पति से कुछ कहते हैं। ‘लाल लुंगी’ कहानी मुस्लिम परिवारों में होने वाली सुन्नत प्रथा का वर्णन करती है।
इन कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि लेखिका ने पारिवारिक वातावरण का बहुत विस्तार और बारीक़ी से चित्रण किया है। अन्याय, शोषण की शिकार स्त्रियों और पितृसत्तात्मकता के आदिम रूप को जिस साहस के साथ लेखिका उजागर करती हैं, वह सराहनीय है। यथार्थ को जोखम उठाकर सामने लाना भी क्रांतिकारी काम है। बानू मुश्ताक़ निश्चित रूप से इसलिए भी इस सम्मान की हक़दार हैं। यह भी कहना है कि अनुवाद ने कहानियों के प्रवाह को और मूल आत्मा को ज्यों का त्यों बनाये रखा है।

नमिता सिंह
लखनऊ में पली बढ़ी।साहित्य, समाज और राजनीति की सोच यहीं से शुरू हुई तो विस्तार मिला अलीगढ़ जो जीवन की कर्मभूमि बनी।पी एच डी की थीसिस रसायन शास्त्र को समर्पित हुई तो आठ कहानी संग्रह ,दो उपन्यास के अलावा एक समीक्षा-आलोचना,एक साक्षात्कार संग्रह और एक स्त्री विमर्श की पुस्तक 'स्त्री-प्रश्न '।तीन संपादित पुस्तकें।पिछले वर्ष संस्मरणों की पुस्तक 'समय शिला पर'।कुछ हिन्दी साहित्य के शोध कर्ताओं को मेरे कथा साहित्य में कुछ ठीक लगा तो तीन पुस्तकें रचनाकर्म पर भीहैं।'फ़सादात की लायानियत -नमिता सिंह की कहानियाँ'-उर्दू में अनुवादित संग्रह। अंग्रेज़ी सहित अनेक भारतीय भाषाओं में कहानियों के अनुवाद। 'कर्फ्यू 'कहानी पर दूरदर्शन द्वारा टेलीफिल्म।
Share this:
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Reddit (Opens in new window) Reddit
- Click to share on Pinterest (Opens in new window) Pinterest
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Bluesky (Opens in new window) Bluesky
स्त्री की स्थिति , उत्पीड़न असहाय अवस्था, और उसका संघर्ष अलग-अलग समाजों में, इस पर जो लिखा गया है इसका संक्षिप्त ब्यौरा हार्ट लैंप की समीक्षा को विशिष्ट प्रभावशाली बना रहा है।
अलग -अलग समाजों में स्त्री की चिंतनीय स्थिति, उत्पीड़न उनके पोषण, स्वास्थ्य और कुछ मूल आवश्यकताओं के प्रति व्याप्त घोर उदासीनता के बारे में, विभिन्न भाषाओं के साहित्य में जो लिखा गया है उसका संक्षिप्त किन्तु सारवान् ब्यौरा नमिता जी द्वारा की गई हार्ट लैंप की समीक्षा को विशिष्ट बनाता है।