
प्रणाम दुष्यन्त की श्रंखला-7 के तहत भोपाल के कवियों ने गाये दुष्यन्त कुमार के गीत
‘दुष्यंत को समझने के लिए प्रेम करना ज़रूरी’
भोपाल। ‘जिन भी रचनाकारों ने दुष्यन्त के गीत पढ़े, मैं उनका आभारी हूं क्योंकि इन गीतों को सुनते हुए अपने पिता को नये तरीके से मैं महसूस कर रहा था। उन्होंने कहा कि दुष्यन्त के गीतों, ग़ज़लों को समझने के लिए जीवन में प्रेम करना ज़रूरी है।’ यह बात दुष्यन्त कुमार के बेटे आलोक त्यागी ने उस आयोजन में कही, जिसमें दुष्यंत के गीतों को सस्वर प्रस्तुत किया गया।
दुष्यन्त कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय के राज सदन में प्रणाम दुष्यन्त की श्रंखला-7 के तहत दुष्यन्त के गीतों के गायन की प्रस्तुति हुई। डॉक्टर विजय बहादुर सिंह की अध्यक्षता, नरेंद्र दीपक के मुख्य आतिथ्य और आलोक त्यागी के विशिष्ट आतिथ्य में सम्पन्न इस गोष्ठी में दुष्यन्त के सोलह गीत गाये गये। कार्यक्रम का संयोजन ऋषि श्रृंगारी का था। संचालन धर्मेंद्र सोलंकी ने किया। आभार डॉ विशाखा राजुरकर ने व्यक्त किया।
इस अवसर पर ऋषि श्रृंगारी सहित भोपाल के अनेक कवियों ने दुष्यंत की गीत रचनाओं का सस्वर पाठ किया। इन रचनाकारों में ममता वाजपेयी, राजेंद्र गट्टानी, दिनकर पाठक, मनोज जैन मधुर, संतोष खिरवड़कर, अनूप धामने, दिशा मिश्रा, मधु शुक्ला, करुणा राजुरकर और रामराव वामनकर आदि प्रमुख रूप से शामिल रहे।
इस अवसर मुख्य अतिथि की आसंदी से नरेन्द्र दीपक ने कहा, मैं एक साल दुष्यन्त के साथ रहा, हर हफ़्ते उनसे मेरी मुलाक़ात होती थी। दुष्यन्त की ख़ासियत यह थी कि वे भीड़ बनकर कभी नहीं रहे बल्कि उन्होंने भीड़ इकट्ठा की।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ विजय बहादुर सिंह, जिन्होंने दुष्यन्त समग्र का चार खंडों में सम्पादन किया, कहा कि कविता हमेशा छंद में होती है, यानी जो लय में है वह छंद में है। उन्होंने कहा कि दुष्यन्त जी ने लगभग चार सौ गीत लिखे, परंतु उन्हें आज ग़ज़लों के लिए जाना जाता है। उन्होंने कहा कि आज का आयोजन इस मायने में अनूठा है कि आज दुष्यन्त संग्रहालय में दुष्यन्त के गीत गाये गये। उन्होंने गीतों की प्रासंगिकता पर कहा कि हर गीत में ख़ास प्रकार का भाव होता है और उसके मूड को समझकर गाने पर ही गीत श्रोताओं तक प्रेषित होता है।
—प्रेस विज्ञप्ति