diwali, lights, deepawali celebration
मधूलिका श्रीवास्तव की कलम से....

विदेशों में दीपावली: प्रकाश का वैश्विक उत्सव

                दीपावली केवल भारत का नहीं, बल्कि अब पूरी दुनिया का त्योहार बन चुकी है। जहाँ-जहाँ भारतीय संस्कृति की सुगंध पहुँची है, वहाँ-वहाँ दीपों की यह ज्योति जगमगा उठी है। यह पर्व सीमाओं से परे जाकर मानवता, प्रेम और प्रकाश का वैश्विक संदेश देता है— अंधकार चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, एक छोटा-सा दीप भी उसे मिटा सकता है।

दीवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, भारत का सबसे प्रमुख और उज्ज्वल पर्व है। यह प्रकाश का त्योहार अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक माना जाता है। दीपों की जगमगाहट, मिठाइयों की सुगंध, रंगोली की सजावट और आपसी स्नेह से सारा वातावरण आनंदमय हो उठता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का संदेश भी देता है।

दीपावली को यदि “त्योहारों का त्योहार” कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यह ऐसा पर्व है जिसे भारत का हर धर्मावलंबी बिना भेदभाव के मनाता है। कोई परिवार इसके आनंद से वंचित नहीं रहता। झोपड़ी में रहने वाला भी एक दीप अवश्य जलाता है और बंगले में रहने वाला दीपमालाएं। आनंद का यह प्रकाश हर हृदय में समान रूप से फैलता है।

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भारत में तो दीपावली हर्षोल्लास से मनायी ही जाती है, किंतु विदेशों में भी इसका उत्सव विभिन्न स्वरूपों में दिखायी देता है। विदेशों में बसे भारतीयों के लिए दीपावली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि अपनी मिट्टी, अपनी परंपराओं और अपनी जड़ों से जुड़े रहने का माध्यम है। भले ही वे परदेस की धरती पर हों, पर इस पर्व की उजास उनके हृदयों में उसी तरह जगमगाती है जैसे भारत में।

अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, मॉरीशस, फ़िजी, दक्षिण अफ्रीका और मलेशिया जैसे देशों में दीपावली आज एक अंतरराष्ट्रीय उत्सव का रूप ले चुकी है। यहाँ के भारतीय समुदाय मंदिरों, सामुदायिक भवनों और अपने घरों में दीये जलाते हैं, रंगोली बनाते हैं और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं। अनेक स्थानों पर नगर प्रशासन भी दीपावली के अवसर पर विशेष सजावट और आतिशबाज़ी का आयोजन करता है।

भारत का यह त्योहार विश्व के अन्य देशों में भी भिन्न रूपों में मनाया जाता है।

  • सोवियत संघ (रूस) में नवंबर में एक ऐसा ही उत्सव होता है, जिसमें पूरे देश में रोशनी की जाती है। क्रेमलिन महल की भव्य सजावट और रात की आतिशबाज़ी इस अवसर को विशेष बनाती है।
  • स्वीडन में यह “लूसिया” नाम से जाना जाता है। इस दिन ख़ूब रोशनी की जाती है। हर शहर में “लूसिया सुंदरी” का चयन किया जाता है, जो मोमबत्तियों से सजे मुकुट पहनकर पूरे नगर में परिक्रमा करती है, और अंत में आतिशबाज़ी से आकाश जगमगा उठता है।
  • थाईलैंड में पाँच नवंबर को दीवाली जैसा पर्व “कोचोंग” मनाया जाता है। लोग केले के पत्तों से छोटी नाव बनाकर उसमें जलता हुआ दीप और सिक्का रखकर नदी में प्रवाहित करते हैं। उनका विश्वास है कि इससे उनके पाप जल में बह जाते हैं।
  • चीन में इसे “नई महुआ” कहा जाता है। चीनी व्यापारी इस दिन अपने बहीखाते बदलते हैं। दिन में देवी-देवताओं की सवारियाँ निकाली जाती हैं और रात में रोशनी की जाती है।
  • नेपाल में दीपावली भारत की तरह पाँच दिनों तक हर्ष और श्रद्धा से मनायी जाती है।

भारत में दीपावली धार्मिक और सामाजिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। हिंदू इस दिन भगवान श्रीराम की आराधना करते हैं और माँ लक्ष्मी का आवाहन करते हैं। यह समय ऋतु-परिवर्तन, धान पकने और नयी फसल आने का भी होता है। श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी के साथ-साथ नयी फसल की ख़ुशी भी दीपोत्सव के रूप में झलकती है।

भारत और अन्य देशों में मनायी जाने वाली दीपावली के स्वरूपों का यदि आध्यात्मिक मूल्यांकन किया जाये तो प्रतीत होता है कि इस सबके पीछे एक ही शक्ति कार्यरत है। सभी ने इस पर्व के मूल तत्व — प्रकाश, उल्लास और एकता — को जीवित रखा है, बस अभिव्यक्ति के रूप अपने-अपने समाज और संस्कृति के अनुसार बदल लिये हैं।

दीपों की झिलमिल कतारें,
ज़मीं पर जैसे उतरे सितारे,
ख़ुदा भी हैरान शायद —
दो आसमां कब बनाये मैंने!

मधूलिका श्रीवास्तव, madhulika shrivastav

मधूलिका श्रीवास्तव

श्री अरविन्दो स्कूल, भोपाल की संस्थापक सदस्य व संचालिका मधूलिका संस्कृत, भाषा शास्त्र एवं पत्रकारिता में दक्ष हैं। उपन्यास, लघुकथा, कथा एवं कविताओं के संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। अनेक साझा संकलनों में आपकी रचनाएं शामिल हुई हैं। मप्र हिन्दी लेखिका संघ समेत अनेक संस्थाओं से आप सम्मानित की जा चुकी हैं।

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